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कोरोना वायरस संकट के दौर में इकनॉमी में एक नया बदलाव देखने को मिला है. पहले के मुकाबले अब लोग ज्यादा करेंसी कैश के रूप में अपने पास रखने लगे हैं. मार्च 2020 में करेंसी सर्कुलेशन 24.13 लाख करोड़ रुपये था, जो मार्च 2021 तक बढ़कर 28.31 लाख करोड़ के पार चला गया. करेंसी सर्कुलेशन में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी के पीछे एक्सपर्ट कोरोना संकट को मान रहे हैं और दूसरी लहर से साथ इस ट्रेंड में और तेजी देखने को मिली है.
"लोग दो कारणों की वजह से करेंसी अपने पास रखते हैं. एक ट्रांजैक्शन के लिए और दूसरा सावधानी के तौर पर. महामारी में संकट के बादल कभी भी फट सकते हैं. इसलिए हर कोई अपने पास जरूरत का कैश रखता है. महामारी के दौरान मेडिकल उपकरणों और अलग-अलग मेडिकल सुविधाओं की कालाबाजारी की काफी खबरें मिली. कालाबाजारी का पूरा खेल कैश में ही होता है. इसलिए अगर आपको इमरजेंसी में स्वास्थ्य संबंधी कोई खर्च करना है तो उसके लिए आपके पास कैश होना जरूरी है. पहली लहर में तो ये ट्रेंड दिखा ही था लेकिन दूसरी लहर में ये और मजबूत हुआ है."
इकनॉमी के जानकार विवेक कौल ने मिंट में लिखा है- "बाजार में कैश बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है कोरोना वायरस महामारी. लोगों ने बैंकों से खूब पैसा निकाला और अपने घर में ही रखा ताकि वो इमरजेंसी में काम आ सके. इसका साफ मतलब है कि कैश में ज्यादा लेन-देन हो रहा है. कोरोना संकट की शुरुआत में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों को घर वापस लौटने के लिए कैश की सख्त जरूरत पड़ी, ट्रक, टैक्सी, ठेले वालों को देने के लिए कैश की ही मांग की गई. इससे लोगों का कैश के प्रति भरोसा ज्यादा बढ़ा. इसके अलावा मेडिकल फैसेलिटी पाने में भी कैश की जरूरत अहम हो गई."
बिजनेस स्टैंडर्ड में अनूप रॉय लिखते हैं- 'लोग अपनी सेविंग को करेंसी के रूप में घर में रखते हैं, ये एक तरह से सिस्टम का लीकेज है. मतलब लोग इसे जमा नहीं करना चाहते, बल्कि कैश ट्रांजैक्शन चाहते हैं. कुल मिलाकर डिपॉजिट रेट घट रहा है और ये किसी भी इकनॉमी के लिए अच्छा नहीं होता. अगर आरबीआई डिपॉजिट रेट बढ़ाती है, तो कर्ज देने वाला लेंडिंग रेट भी बढ़ेगा. इसलिए जब तक इकनॉमी रिकवरी के रास्ते पर नहीं लौटती, आरबीआई ये कदम नहीं उठाएगी. इसलिए मार्केट में आगे आने वाले कुछ वक्त तक कैश बना रहेगा.'
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