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शशि अरोड़ा, संजय शर्मा और सैयद मोहम्मद अनवर को ये लड़ाई पहले मुश्किल लग रही थी. लेकिन यूपी रेरा के फैसले ने उनकी दिक्कत आसान कर दी. तीनों ने आईवीआर प्राइम डेवलपर्स (आवादी) प्राइवेट लिमिटेड,-अजनारा इंडिया लिमिटेड ) के खिलाफ यूपी रेरा में शिकायत कर वक्त पर फ्लैट न देने पर बिल्डर बायर एग्रीमेंट के तहत अपना पैसा वापस मांगा था. सात शिकायतकर्ताओं में से कुछ ने अजनारा के एम्ब्रोशिया प्रोजेक्ट में फ्लैट का कब्जा देने में होने वाली देरी के एवज में बिल्डर को किए गए पेमेंट पर ब्याज की डिमांड की थी और कुछ ने प्री ईएमआई की.
शिकायतकर्ताओं के इस मामले में जो बिल्डर बायर एग्रीमेंट (BBA) है उसके मुताबिक 31.7.2017 और छह महीने के साथ ग्रेस पीरियड के साथ जनवरी 2018 तक फ्लैट का कब्जा देना तय हुआ था. इन शिकायतों के एवज में बिल्डर्स का कहना था कि यूपी रेरा में रजिस्ट्रेशन के वक्त उसने नोएडा में चल रहे अपने एम्ब्रोशिया (फेज-1) प्रोजेक्ट को पूरा करने की डेडलाइन 31.12.2019 दी थी. इसलिए उसके खिलाफ अभी देरी की कोई शिकायत प्री-मेच्योर है. लिहाजा कब्जा देने में देरी करने, इसके एवज में बायर को ब्याज समेत कम्पनसेशन देने या फिर प्री ईएमआई का सवाल नहीं उठता. लेकिन यूपी रेरा ने बिल्डर्स की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह ठीक है कि उसने रजिस्ट्रेशन के वक्त प्रोजेक्ट पूरा करने की डेडलाइन 31.12.2019 दी थी. लेकिन इस संबंध में बिल्डर की जिम्मेदारी बिल्डर और बायर (खरीदार) के बीच एग्रीमेंट के आधार पर तय होगी.
लिहाजा इस मामले में यूपी रेरा ने फ्लैट के कब्जे में देरी की अवधि तक ब्याज देने का आदेश दिया. रेरा ने कहा कि ब्याज जनवरी 2018 से ही देना होगा. उसने बिल्डर बायर एग्रीमेंट के तहत देरी की स्थिति में 5 रुपये वर्ग फुट के हिसाब से क्षतिपूर्ति देने की बिल्डर की दलील नहीं मानी. यूपी रेरा ने कहा कि इस मामले में रेरा के प्रावधान मान्य होंगे.
यूपी रेरा ( UP Real Estate Regulatory Authority) ने कहा कि इस मामले में रेरा के प्रभाव में आने से पहले (यानी दिनांक 15.2.2016) क्षतिपूर्ति का रेट बिल्डर बायर एग्रीमेंट (यानी 5 रुपये वर्ग फुट) के हिसाब से हो सकता है. लेकिन 15.2.2016 से यह इसके प्रावधान के मुताबिक तय होगा. यूपी रेरा का यह फैसला राज्य में हजारों फ्लैट खरीदारों के मामले में नजीर बन सकता है.
यह फैसला अहम है क्योंकि बिल्डर ने BBA के हिसाब से पांच रुपये प्रति वर्ग फुट के हिसाब से भुगतान का वादा किया था. लेकिन यूपी रेरा ने MCLR+1 फीसदी एनुअल रेट के हिसाब से फ्लैट खरीदारों को ब्याज देने को कहा. MCLR यानी Marginal cost of fund based landing rate वह दर होती है, जिससे कम पर बैंक लोन नहीं देते हैं. इसमें एक फीसदी जोड़ कर फ्लैट खरीदारों को ब्याज देने के लिए कहा गया है.
इसके साथ ही फ्लैट के निर्माण के दौरान जमा की जाने वाली ईएमआई को बायर के आखिरी पेमेंट में एडजस्ट करने को कहा गया है. यूपी रेरा ने कहा कि अगर खरीदार ईएमआई का भुगतान कर रहे हैं और फ्लैट का कब्जा नहीं मिला है तो बिल्डर को ईएमआई आखिरी पेमेंट में एडजस्ट करना होगा.
इस मामले में यूपी रेरा ने फ्लैट खरीदारों के पक्ष में फैसला दिया. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या आईवीआर प्राइम फ्लैट खरीदारों को यूपी रेरा की बताई दर पर क्षतिपूर्ति देगी. यूपी रेरा क्या इसके लिए अजनारा इंडिया और आईवीआर प्राइम को बाध्य कर पाएगा. अजनारा के खिलाफ मामला जीतने वाले फ्लैट खरीदारों का भी यही सवाल है कि क्या उन्हें MCLR+1 फीसदी के हिसाब से ब्याज मिलेगा.
पिछले दिनों कई ऐसे फैसले आए हैं, जहां शिकायतकर्ताओं की जीत हुई है. यूपी रेरा ने हाल ही में नोएडा में ही उन्नति फॉर्च्यून होल्डिंग्स के तीन अहम प्रोजेक्ट डी-रजिस्टर्ड कर दिए. इस डेवलपर ने नोएडा के सेक्टर 119 में अरण्या 2,3 और 4 प्रोजेक्ट शुरू किया था. लेकिन इसमें फ्लैट बुक करने वालों को 12 साल के बाद भी अपना आशियाना नहीं मिल सका था.
शिकायत मिलने के बाद रेरा ने साइट का दौरा किया और पाया कि डेवलपर ने भारी धोखाधड़ी की है. फ्लैट खरीदारों के गबन के साथ, कई वित्तीय अनियमितताओं और यहां तक कि डबल अलॉटमेंट जैसी कारगुजारियों का खुलासा हुआ. इसके बाद यूपी रेरा ने अभूतपूर्व कदम उठाया. उसने यह पूरा प्रोजेक्ट डी-रजिस्टर्ड कर दिया. अब प्रोजेक्ट इसमें फ्लैट खरीदने वालों के हाथ में है. रेरा में प्रावधान है कि फ्लैट खरीदार अपना एसोसिएशन बना कर अपना फ्लैट पूरा कर सकते हैं. अगर वह इसमें नाकाम रहते हैं तो यूपी रेरा अपने मैकेनिज्म के तहत इन्हें पूरा कराएगा. अब इसका मॉडल क्या होगा, ये अभी तक साफ नहीं है.
यूपी रेरा ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में उन प्रोजेक्ट्स को एडॉप्ट करने का भी फैसला किया है, जिन्हें उनके डेवलपर्स में बीच में ही छोड़ दिया और जो कंप्लीशन डेट के बावजूद पूरे नहीं हुए हैं. यूपी रेरा का कहना है कि ऐसे कम से से कम 100 प्रोजेक्ट होंगे, जिन्हें उनके डेवलपर्स ने बीच में ही छोड़ दिया है. यूपी रेरा जल्द ही इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने का मैकेनिज्म लागू करेगा.
नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ और कानपुर जैसे रियल एस्टेट हब में जिस बड़ी तादाद में प्रोजेक्ट फंसे हुए हैं, उन्हें देखते हुए लगता नहीं था कि यहां के फ्लैट खरीदारों को जल्दी कोई राहत मिल पाएगी. लेकिन 1 मई 2017 को रेरा एक्ट के सारे प्रावधानों के लागू होने के बाद अगस्त 2018 में यूपी रेरा ने काम करना शुरू कर दिया. एक महीने के भीतर इसने शिकायतों का निपटारा करना शुरू कर दिया और अब यूपी रेरा के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 13,000 शिकायतों में से लगभग 7000 निपटा दिए गए हैं. ज्यादातर मामले में प्रोजेक्ट में देरी के हैं.
फैसले देने और शिकायतों का निपटारा करने के मामले में यूपी रेरा की रफ्तार अच्छी है. लेकिन इसके सामने एक बड़ी चुनौती बरकरार है. और यह है फैसलों को लागू करवाने की धीमी रफ्तार. यूपी रेरा के सामने बिल्डरों को तुरंत क्षतिपूर्ति देने के लिए बाध्य करना एक बड़ी चुनौती है. जब तक इसके फैसले सीधे फ्लैट खरीदारों को राहत नहीं दिलाएंगे, रेरा प्रावधानों के मकसद अधूरे रहेंगे.
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