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Cryptocurrency Bill: लोकसभा वेबसाइट पर उपलब्ध क्रिप्टोकरेंसी बिल के विवरण के अनुसार इस बिल से सभी 'प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी' पर प्रतिबंध लगाया जाएगा और इसी समय रिजर्व बैंक खुद की डिजिटल करेंसी लाने पर काम करेगा. लेकिन बिल के पूरे ड्राफ्ट की गैर-मौजूदगी में लोग क्रिप्टो बिल के विवरण का अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं. ऐसे में क्विंट हिंदी ने इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर दीपांशु मोहन से इस विषय पर खास बातचीत कर बिल के विभिन्न पहलुओं को डिटेल में समझने की कोशिश की.
आइए नजर डालते हैं ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर और Carleton यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर दीपांशु मोहन की क्विंट हिंदी से खास बातचीत के प्रमुख बिंदुओं पर-
क्विंट हिंदी के सवाल 'क्या भारत सभी क्रिप्टो पर बैन लगाने जा रहा है?' प्रोफेसर कहते हैं कि ये अभी साफ नहीं है क्योंकि अभी उपलब्ध जानकारी में यह बात मिसिंग है कि सरकार 'प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी' को कैसे डिफाइन कर रही है. 'प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी' को डिफाइन करना काफी मुश्किल है. यह बात पूरी तरीके से इस पर निर्भर करता है कि सरकार इस बिल में 'प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी' को कैसे समझाना चाह रही है.
उन्हें लगता है गवर्नमेंट शायद बिटकॉइन, इथेरियम (Ethereum) जैसे क्रिप्टो पर रोक नहीं लगाए, क्योंकि ये कॉइन्स पब्लिक ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं और इस वजह से इनके द्वारा किए जाने वाले ट्रांजैक्शन ट्रांसपेरेंट होती हैं और इनको ट्रेस किया जा सकता है.
वहीं, दूसरी तरफ मोनेरो (Monero), Zcash और Dash जैसे प्राइवेट क्रिप्टो जिसको ट्रेस करना नामुमकिन है, सरकार उसे बैन कर सकती है.
कई लोग ये भी तर्क दे रहे हैं कि सरकार उन सभी डिजिटल करेंसी पर बैन लगा देगी जो RBI की तरफ से जारी नहीं होता और गवर्नमेंट केवल सेंट्रल बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की तरफ से जारी होने वाली डिजिटल करेंसी को मान्यता देगी.
रेगुलेशन वाले मुद्दे पर दीपांशु ने कहा कि- अमेरिका सहित दुनियाभर में क्रिप्टो पर रेगुलेशन की बात हो रही है लेकिन इसे रेगुलेट करना किसी भी सेंट्रल बैंक या अथॉरिटी के लिए काफी मुश्किल काम है. प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी द्वारा किए गए ट्रांजेक्शन काफी गोपनीय होते हैं, आप ये पता नहीं लगा सकते कि कौन लोग इस कॉइन्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, इस पैसे को कहा भेजा जा रहा है और इसका इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए हो रहा है. इसी वजह से हमें ऐसे कई केस देखने को मिल रहे हैं जिसमें इस तरह के टोकन्स का इस्तेमाल ब्लैक मार्केट ट्रेडिंग, स्मगलिंग जैसे गैर-कानूनी चीजों में किया जा रहा है.
मोनेटरी पॉलिसी के नजरिए से कोई लॉजिकल सेंस नहीं बनता कि कोई भी सरकार किसी ऐसे करेंसी को लीगल टेंडर का मान्यता देकर अपने 'सोवेरेन पॉवर ऑफ क्रिएशन और डिस्ट्रीब्यूशन' के पॉवर को कम करना चाहेगी. चूंकि कोई भी सरकार उसे रेगुलेट नहीं कर सकती, इसी वजह से उस पर कंट्रोल भी नहीं रख पाएगी.
प्रोफेसर बताते हैं भारत की अर्थवयवस्था पर सरकार के इस कदम का कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा.
हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर सरकार सभी क्रिप्टो पर पूरी तरीके से बैन लगाती है तो क्रिप्टो निवेशक अपने पैसे खो देंगे. लेकिन इसकी पूरी उम्मीद है कि सरकार अगर क्रिप्टो पर प्रतिबंध लगा भी देती है तो क्रिप्टोहोल्डर्स को एग्जिट करने के लिए समय जरूर देगी.
अगर लोग US डॉलर बैक्ड डॉजकॉइन (dogecoin) जैसी क्रिप्टोकरेंसी में सेल ऑफ करने लगते हैं, जैसा कि हमने बिल के खबर आने के बाद क्रिप्टो मार्केट में सेल ऑफ देखा, तो शॉर्ट टर्म में डॉलर के सप्लाई और डिमांड प्रोसेस पर कुछ असर दिख सकता है.
वो मानते हैं प्राइवेट क्रिप्टो का मार्केट एक 'स्पेकुलेटिव बबल' है, आसान शब्दों में इस तरह के क्रिप्टो के वैल्यूएशन के पीछे कोई ठोस वजह नहीं है.
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