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टाटा संस वाले विवाद पर बीते दिनों आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सायरस मिस्त्री केस हार गए थे, अब मिस्त्री ने टिप्पणी की है. साइरस मिस्त्री का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से निराश हैं. 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में रतन टाटा, सायरस मिस्त्री के खिलाफ केस जीत गए. सायरस मिस्त्री का आरोप था कि उन्हें टाटा संस से गलत तरीके से हटाया गया.
उद्योगपति साइरस मिस्त्री ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बयान जारी किया. इसमें उन्होंने लिखा-
सायरस मिस्त्री ने भावुक अंदाज में लिखा- 'जिंदगी में हमेशा अच्छा नहीं होता है, लेकिन मैं फिर भी भाग्यशाली हूं कि मुझे मेरे परिवार, दोस्तों और सहयोगियों का साथ मिला. मैं अपनी लीगल टीम का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूं. मेरे और मेरे परिवार के जीवन के विकास के क्रम में ये एक और कदम है.'
साइरस मिस्त्री ने जो बयान जारी किया है उसका शीर्षक है- "Grateful for the opportunity – My conscience is clear."
भारत के दो बड़े बिजनेस ग्रुप टाटा ग्रुप और शापूरजी पलोनजी (SP) ग्रुप ने दशकों तक साथ-साथ कारोबार किया, अब दोनों की राहें जुदा होने वाली हैं. टाटा-मिस्त्री झगड़े का बैकग्राउंड ये है कि जब से साइरस मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की कमान संभाली तब से टाटा ग्रुप की कंपनियों को लेकर उनका नजरिया अलग था और फैसलों में रतन टाटा को शामिल ना करने की वजह से टाटा और मिस्त्री के बीच संवाद काफी बिगड़ गया था. इसलिए अचानक टाटा संस के बोर्ड ने 2016 में ये फैसला किया कि सायरस मिस्त्री को हटा दिया जाए. सायरस मिस्त्री ने तब से एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू की जो 26 मार्च 2021 के दिन खत्म हो रही है.
इस पूरे विवाद में आगे मुद्दा ये है कि दोनों का सेपरेशन कैसे हो? सायरस मिस्त्री के पास टाटा संस के करीब 18% शेयर हैं. मिस्त्री का कहना है कि वो कंपनी को ये शेयर बेचना चाहते हैं और वो बाहर हो जाएंगे. लेकिन इसके पहले उन्होंने शेयरों को गिरवी रखने की कोशिश की थी, जिसे टाटा संस ने गैरकानूनी बताया था.
टाटा संस में मिस्त्री परिवार की एंट्री को लेकर कई कहानियां सामने आ चुकी हैं. इनमें से कुछ कहानियां उन जानकारियों से अलग हैं जो SP ग्रुप के एक लेटर से सामने आईं. चलिए, एक-एक कर हर कहानी पर नजर दौड़ाते हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में HDFC के चेयरमैन दीपक पारेख के हवाले से कहा गया है, ''पलोनजी (मिस्त्री) के पिता (शापूरजी पलोनजी मिस्त्री) ने टाटा मोटर्स और टाटा स्टील के लिए फैक्ट्रियों का निर्माण किया था, टाटा के पास उनका भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने (टाटा ने) इसके बदले शेयर दे दिए थे.''
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट में इस मामले पर अलग-अलग वक्त के दो वर्जन का जिक्र किया गया है.
पहला यह है कि जेआरडी टाटा के भाई-बहनों ने टाटा संस में अपने शेयरों को मिस्त्री परिवार को बेच दिया था, यह 60-70 के दशक में हुआ था.
दूसरे वर्जन में एक धनी वकील और जमींदार फ्रेमरोज एडुल्जी दिनशॉ का भी जिक्र है, जो 1920 के दशक में जाना-माना नाम थे. टाटा ने संभावित वित्तीय दबाव के चलते दिनशॉ से संपर्क किया था. दिनशॉ ने टाटा को 2 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था, जो बाद में टाटा संस में 12.5 की एक्विटी में बदल गया. वकील के निधन के बाद, उनके वंशजों ने साल 1936 में टाटा संस की ये हिस्सेदारी शापूरजी को बेच दी
रिपोर्ट में आगे इन दोनों वर्जन को जोड़ दिया गया है और कहा गया है कि 12.5 फीसदी की यह हिस्सेदारी 17 फीसदी से ज्यादा हो गई, जब 1970 के दशक में जेआरडी टाटा के भाई-बहनों ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी. इसके बाद 1996 में यह 18 फीसदी से ज्यादा हो गई.
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