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विकास दर के हालिया आंकड़ों पर यकीन करना मुश्किल क्‍यों है?

सीएसओ के मुताबकि, तीसरी तिमाही में देश में प्राइवेट कंजंप्‍शन 10.1% बढ़ गया, जो काफी अजीब है.

क्‍व‍िंट कंज्यूमर डेस्‍क
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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल बहलाने को गालिब ख्याल अच्छा है.

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन- सीएसओ के चीफ स्टैटिस्टिशियन टीसीए अनंत जब मंगलवार को जीडीपी के आंकड़े पेश कर रहे थे, तो शायद उनके मन में यही शेर आ रहा होगा. दरअसल, सीएसओ ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के जैसे जीडीपी आंकड़े पेश किए हैं, उन पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है.

यही वो तिमाही थी, जिसके दो महीने नवंबर और दिसंबर नोटबंदी से प्रभावित हुए थे. जब पूरे देश में जगह-जगह से फैक्ट्रियों में कामकाज ठप होने, मजदूरों की छंटनी होने और कैश की किल्लत की वजह से लोगों की शॉपिंग में कमी आने जैसी खबरें आ रही थीं.

लेकिन सीएसओ के आंकड़े दिखाते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में भी आर्थिक गतिविधियां बदस्तूर जारी रहीं.

जब सारी एजेंसियां और अर्थशास्त्री ये आशंका जता रहे थे कि दिसंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5-6% के बीच रह सकती है, सीएसओ का दावा है कि ये 7% रहेगी. और यही दावा सारे विवाद की जड़ है. और सीएसओ के दावे पर यकीन ना करने की कई वजहें भी हैं.

पहली वजह

पहली वजह तो यही है कि सीएसओ के मुताबकि, तीसरी तिमाही में देश में प्राइवेट कंजंप्‍शन 10.1% बढ़ गया, जो काफी अजीब है. खासकर इसलिए कि ऐसे देश में जहां रोजाना के खर्चे ज्यादातर कैश में किए जाते थे, वहां नोटबंदी के बाद लोगों ने अपनी खपत में कटौती कर दी थी. अगर हम मान लें कि अक्टूबर के महीने में शादी और त्योहारों की शॉपिंग ने कुछ बढ़ोतरी दिखाई होगी, तो क्या ये अगले दो महीने की कटौती की भरपाई के लिए पर्याप्त थी, इसका स्पष्टीकरण सीएसओ नहीं देता. देश की बड़ी एफएमसीजी और टू-व्हीलर कंपनियों की दिसंबर तिमाही के बिक्री आंकड़े भी ऐसी कोई तस्वीर पेश नहीं करते जो इस अवधि में खपत में बढ़ोतरी के पक्ष में हों.

सिटीग्रुप का मानना है कि जब ये जीडीपी आंकड़े रिवाइज किए जाएंगे, इस आंकड़े में बदलाव जरूर देखने को मिलेगा. नोमुरा ने तो एक कदम आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि ये बता पाना मुश्किल है कि भारत की ग्रोथ के आंकड़े “फैक्ट हैं या फिक्शन” मतलब इन आंकड़ों में सच्चाई कितनी है और कल्पना कितनी.

नोमुरा का मानना है कि सीएसओ दिसंबर तिमाही की वास्तविकताओं को नजरअंदाज कर रहा है और आंकड़ों को तैयार करने में सिर्फ संगठित क्षेत्र की सूचनाओं का इस्तेमाल किया गया है.

इस बात पर कमोबेश सभी अर्थशास्त्री एकमत हैं कि नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर देश के असंगठित क्षेत्र और छोटे-मझोले उद्योगों पर पड़ा था, जिसका योगदान जीडीपी में अच्छा खासा है, लेकिन सीएसओ के आंकड़ों में नोटबंदी के असर का कोई जिक्र नहीं होना संदेह पैदा करता है.

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का 20% से ज्यादा योगदान असंगठित क्षेत्र से आता है और हर महीने आने वाले आईआईपी यानी इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के आंकड़ों से काफी हद तक इसका अंदाजा मिल जाता है कि उद्योग-धंधों में काम कैसा चल रहा है.

दिसंबर तिमाही के दो महीनों- अक्टूबर और दिसंबर में आईआईपी ने निगेटिव ग्रोथ दर्ज की थी.(देखें ग्राफिक्स) और तो और, कंस्ट्रक्शन और फाइनेंस सेक्टर की ग्रोथ भी निगेटिव रही है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर जहां 7 तिमाहियों के निचले स्तर पर है, वहीं फाइनेंस सेक्टर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है. फिर इसका असर ग्रोथ के आंकड़ों पर कैसे नहीं दिख रहा.

इंफोग्राफिक्स: रोहित मौर्य/क्विंट हिंदी
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दूसरी वजह

एक और बात है जो सरकारी दावों पर संदेह पैदा करती है. वित्त वर्ष 2015-16 की तीसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े में रिवीजन कर उसे नीचे लाया गया है (देखें ग्राफिक्स). हालांकि बाकी तीनों तिमाहियों के आंकड़े उनमें पॉजिटिव बदलाव दिखाते हैं.

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, मौजूदा कारोबारी साल की तीसरी तिमाही के आंकड़े बेहतर दिखने की एक वजह ये भी है. एसबीआई के इकोनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट का मानना है कि 2015-16 की तीसरी तिमाही के आंकड़े में तेज गिरावट ने 2016-17 की तीसरी तिमाही के आंकड़ों में नोटबंदी के असर पर पर्दा डाल दिया है. सीएसओ ने 2015-16 की तीसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े में 0.3% की गिरावट दिखाई है, जिसका बेस इफेक्ट इस साल के आंकड़ों पर दिखा है.

इंफोग्राफिक्स: रोहित मौर्य/क्विंट हिंदी

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का ये भी मानना है कि जीडीपी की बजाय जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) के आंकड़े शायद बेहतर और वास्तविक तस्वीर पेश कर रहे हैं. तीसरी तिमाही में जीवीए में 6.6% ग्रोथ का अनुमान सीएसओ ने जताया है. इस साल की पहली और दूसरी तिमाही के मुकाबले इनमें गिरावट दिख रही है, जो आर्थिक गतिविधियों की वास्तविकता पर आधारित माना जा सकता है.(देखें ग्राफिक्स)

इंफोग्राफिक्स: रोहित मौर्य/क्विंट हिंदी

अर्थशास्त्रियों ने सीएसओ के ताजा पेश किए आंकड़ों में कृषि विकास दर पर खुशी जताई है, जिसमें 6% की ग्रोथ का अनुमान तीसरी तिमाही में है. हालांकि सिर्फ कृषि के बल पर पूरी इकोनॉमी में जीडीपी आंकड़े सुधर नहीं सकते हैं.

अनुमान है कि इस पूरे साल में कृषि विकास दर 4.4% रहेगी, जो पिछले साल सिर्फ 0.8% थी. इसका फायदा जीडीपी के आंकड़ों में जरूर दिखेगा. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि जब सीएसओ ने जनवरी में तीसरी तिमाही के अनुमानित आंकड़े पेश किए थे, तो बिना नोटबंदी के असर के उसके 7% रहने की उम्मीद की थी, और अब जो आंकड़े बताए वो भी 7% है, तो क्या मान लिया जाए कि नोटबंदी का कोई नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था पर नहीं हुआ? हम चाहेंगे कि ऐसा ही हुआ हो, लेकिन क्या हमारी चाहत और हकीकत एक जैसी हैं? इसका जवाब तो सिर्फ टीसीए अनंत ही दे सकते हैं.

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