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गुड़गांव, फरीदाबाद..ये वो जगहें हैं जहां कई मल्टी नेशनल कंपनियां हैं. यहां देश ही नहीं दुनिया भर के लोग काम करते हैं. अब इन निजी कंपनियों के लिए फरमान आया है कि 50 हजार से कम सैलरी की नौकरियों में 75 फीसदी सिर्फ हरियाणा के लोगों को दी जाएं. नए कानून से कंपनियां सकते में हैं. कई सवाल हैं. क्या हरियाणा में इतने ट्रंड लोग मिलेंगे? हरियाणा में काम करने वाले दूसरे राज्यों के लोगों के सामने भी भविष्य को लेकर संकट खड़ा हो गया है.
हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहां उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे कई सारे राज्यों से आकर लोग काम करते हैं. ऐसे में इन दूसरे राज्य से आकर काम करने वालों को यहां रोजगार पाने में दिक्कत होगी. जो लोग पहले से रोजगार में लगे हुए हैं, उनकी नौकरियां भी जा सकती हैं.
दूसरी तरफ कंपनियों की अपनी समस्या है. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, टीसीएस, इंफोसिस जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों में हजारों ऐसे कर्मचारी काम करते हैं, जिनकी सैलरी 50 हजार से कम होती है. अब जो कानून राज्य सरकार लेकर आई है, उसके तहत इन कंपनियों को 4 में से 3 नौकरियां हरियाणा के लोगों को देना होगा. ऐसी कंपनियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. कंपनियों के सामने चुनौती है कि वो अचानक इतने सारे लोगों को कैसे बदलेंगी? उसी तरह के नए स्किल्ड लोग कैसे तैयार होंगे?
इंडस्ट्री के लोगों का मानना है कोटे के इस कानून के कारण कोरोना के कारण आई मंदी से रिकवरी में और वक्त लग सकता है. साथ ही इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा.
इंडस्ट्री के दिग्गजों ने एक स्वर में राज्य सरकार के इस कदम की आलोचना की है और इसे पीछे ले जाने वाला कानून बताया है. एक्सर्ट्स का कहना है कि ये पूरी तरह से अव्यवहारिक है. ऑटो कार मैन्यूफैक्चरर सोना कोमस्टार के चेयरमैन संजय कपूर का कहना है कि
कपूर CII के हरियाणा चैप्टर के चेयरमैन भी रह चुके हैं. उन्होंने कहा कहा कि इंडस्ट्री हरियाणा सरकार को सलाह दे रही थी कि वो कानून पर फिर से विचार करें. 'इससे हरियाणा की प्रतियोगी क्षमता पर असर पड़ेगा.'
इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि इंडस्ट्री के 60-70% लोगों की सैलरी 50 हजार रुपये से कम होती है. ऐसे में कंपनियों को अगर इस नए कानून को अमल में लाना है तो उन्हें इतनी बड़ी तादाद में लोगों की अदला-बदली करनी होगी. इसकी वजह से कंपनियों के कामकाज पर असर पड़ सकता है और प्रोडक्शन में भी गिरावट आ सकती हैं. ऐसे में कंपनियां दूसरे राज्यों में कारोबार शिफ्ट करने पर भी विचार कर सकती हैं.
नीति आयोग के चेयमैन राजीव कुमार का कहना है कि- 'हम यही आशा करते हैं कि सरकार ने ये कानून बनाने के पहले प्राइवेट सेक्टर से चर्चा की हो.' लेकिन रिपोर्ट्स में सामने आया है कि सरकार ने CII या फिर दूसरे किसी भी इंडस्ट्री संगठन से चर्चा नहीं की.
गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष जेएन मंगला का कहना है कि- 'ये इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देने जैसा हुआ. ये संभव नहीं है कि स्थानीय लोग तेजी से स्किल्ड और सेमी स्किल्ड हो जाएं.'
MSME से जुड़े एक उद्योग पति का कहना है कि - 'इसकी वजह से नौकरियां पैदा नहीं होंगी, बल्कि नौकरियां खत्म होंगीं.कोई भी राज्य में अपना कामकाज नहीं करना चाहेगा.'
प्राइवेट कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण के कानून में दो बड़े लीगल सवाल खड़े होते हैं.
पहला सवाल ये है कि क्या नौकरियों में 'आप कहां रहते हैं?' इस आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है? शिक्षा में इस तरह का आरक्षण प्रचलित है. लेकिन कोर्ट पब्लिक सेक्टर के रोजगारों में ये करने की अनिच्छुक रही हैं. पिछले साल मध्य प्रदेश राज्य ने तय किया था कि वो राज्य के युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करेंगे. इसके बाद सवाल नागरिकों की समानता को लेकर सवाल उठे थे.
दूसरा सवाल और भी ज्यादा विवादित है कि क्या प्राइवेट सेक्टर को आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य किया जा सकता है? सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू करने के लिए राज्यों को संविधान के आर्टिकल 16(4) से अधिकार मिलते हैं.
संविधान में ऐसे किसी प्रावधान का जिक्र नहीं है, जिससे राज्य प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण लागू कराने की शक्ति प्राप्त करता हो.
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