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मोदी सरकार का कार्यकाल खत्म होने की तरफ है. इस सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर नोटबंदी, जीएसटी, मेक इन इंडिया, रेरा जैसे बड़े कदम उठाए. सवाल उठता है कि इन कदमों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा?
आइए, 3 बिजनेस अखबारों की रिपोर्ट्स के जरिए इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.
नौकरियां पैदा करने में मौजूदा सरकार की नाकामी की चर्चा समय के साथ बढ़ती गई. इसी बीच हाल ही में एक खबर आई कि बेरोजगारी दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी है. इसके अलावा अभी आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि शिक्षित और स्किल्ड लोगों के बीच बेरोजगारी की दर बढ़ी है.
इसी तरह, साल 2011-12 से 2017-18 के बीच स्किल्ड लोगों की बेरोजगारी दर भी दोगुनी हो गई है.
सर्वे से पता चलता है कि शिक्षित लोगों में बेरोजगारी दर 2017-18 में ग्रामीण पुरुषों के बीच सबसे तेज बढ़कर 10.5 प्रतिशत हो गई, जबकि 2011-12 में यह 3.6 प्रतिशत थी.
महिलाओं के बीच, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर लगभग इसी अवधि के दौरान दोगुनी हो गई.
एनएसएसओ ने अपने सर्वे में उस व्यक्ति को शिक्षित माना है, जिसने कम से कम माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-10) तक स्कूली पढ़ाई पूरी कर ली है.
इस सर्वे में व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोगों में बेरोजगारी के बारे में बताया गया है. 2017-18 में प्रशिक्षित व्यक्तियों की बेरोजगारी दर दोगुनी होकर 12.4 फीसदी हो गई, जबकि 2011-12 में ये दर 5.9 फीसदी थी.
बड़े पैमाने पर सरकार के मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाने के बावजूद, मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में इन्वेस्टमेंट के मामले में NDA सरकार ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है.
रिपोर्ट बताती है कि सरकार की महत्वाकांक्षी स्कीम 'मेक इन इंडिया' वास्तव में मैन्यूफेक्चरिंग ग्रोथ और देश की जीडीपी को बढ़ावा देने के अपने उद्देश्यों को पूरा करने में नाकाम रही है.
कई विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि इस साल के बजट में सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है.
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट ने हाल ही में बताया कि देश के टॉप आठ शहरों में बिना बिके घरों की कीमत अब सालाना बिक्री से चार गुना ज्यादा हो गई है.
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