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GDP में गिरावट उम्मीद से भी खराब, अब रिकवरी कैसे हो?: एक्सपर्ट राय

कंस्ट्रक्शन, माइनिंग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर बेहद बुरा असर पड़ा है

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कंस्ट्रक्शन, माइनिंग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर बेहद बुरा असर पड़ा है
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कंस्ट्रक्शन, माइनिंग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर बेहद बुरा असर पड़ा है
(फोटो: द क्विंट)

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जून तिमाही के जीडीपी आंकड़े 31 अगस्त को आ गए और इन आंकड़ों ने इकनॉमी के मोर्च पर काफी निराश किया है. फाइनेंशियल ईयर की पहली तिमाही में -23.9 जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े साफ गवाही दे रहे हैं कि कोरोना वायरस संकट ने भारत की इकनॉमी को तोड़कर रख दिया है. सेक्टर के लिहाज से कंस्ट्रक्शन, माइनिंग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर बेहद बुरा असर पड़ा है. लेकिन इन आंकड़ों पर दिग्गज अर्थशास्त्रियों की प्रतिक्रिया जानना अहम होगी.

ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीडीपी आंकड़े उम्मीद के मुताबिक या फिर उससे खराब ही रहे हैं. एजेंसियों के पोल में भी पहले से ही 15 से लेकर 25 फीसदी नेगेटिव ग्रोथ रेट की उम्मीद जताई गई थी.

ICRA की प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट अदिति नायर ने रॉयटर्स को बताया है कि 'ये साफ है कि इकनॉमी में इतनी बड़ी गिरावट कोरोना संकट की वजह से लगे लॉकडाउन की वजह से आई है. हमने अनुमान जताया था कि इकनॉमी में करीब 25 फीसदी का कॉन्ट्रेक्शन देखने को मिलेगा और वही हुआ है.'

हालांकि MSME और इन फॉर्मल सेक्टर का जब डेटा आएगा तो तस्वीर और साफ होगी और ये आंकड़े और नीचे जा सकते हैं. हमारा अनुमान अभी भी यही है कि फाइनेंशियल ईयर 2021 में इकनॉमी -9.5% ही रहेगी.
अदिति नायर, ICRA की प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीनियर इकनॉमिस्ट सुवोदीप रक्षित कहा कहना है कि हमने जो अनुमान लगाया था रियल जीडीपी के आंकड़े उससे भी खराब रहे हैं.

अब सरकार को तय करना होगा कि इन्वेस्टमेंट को पुश देना है या फिर कंज्म्प्शन बढ़ाने के लिए कदम उठाने हैं. अभी सरकारी खजाने की जो हालत है उसके हिसाब से ग्रोथ की पटरी पर लौटने के लिए फाइनेंशियल ईयर 2022 की पहली छमाही तक का वक्त लग सकता है.
सुवोदीप रक्षित, कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीनियर इकनॉमिस्ट
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एडेलवाइज सिक्योरिटी की लीड इकनॉमिस्ट माधवी अरोड़ा बताती हैं कि जीडीपी के आंकड़े हमारे अनुमान से बहुत खराब रहे हैं. हमारा अनुमान -18% का था.

अगर ढूंढा जाए तो रियल एस्टेट और फाइनेंस सेक्टर ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है. लेकिन सरकारी खर्च की गवाही देने वाले पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन सेक्टर ने उम्मीद से बहुत खराब प्रदर्शन किया है. अगर अगली तिमाहियों में भी ऐसी ही तस्वीर रहती है तो सरकार को अपनी फिस्कल प्लानिंग में थोड़ी ढील देनी होगी.
माधवी अरोड़ा, एडेलवाइज सिक्योरिटी की लीड इकनॉमिस्ट

HDFC बैंक की इकनॉमिस्ट साक्षी गुप्ता का कहना है कि पहली तिमाही में लॉकडाउन की वजह से सारे आंकड़ों की रिपोर्टिंग नहीं हुई है. 'हमारा मानना है कि अभी इन आंकड़ों में और गिरावट देखने को मिलेगी. अगर एग्रीकल्चर को भी हटा दें तो पहली तिमाही में जीवीए 27 फीसदी नेगेटिव रहा है.'

इकनॉमिक रिकवरी के संकेत इस फाइनेंशियल ईयर के आखिर तक देखने मिलेंगे या नहीं ये रूरल सेक्टर के सुधार पर तय करेगा. लेकिन जिस तेजी से कोरोना वायरस फैल रहा है उससे रूरल सेक्टर में भी आने वाले दिनों में अनुमान से ज्यादा खराब प्रदर्शन देखने को मिल सकता है. हमारा अभी भी मानना है कि पूरे साल में जीडीपी में 7.5 फीसदी की गिरावट देखने को मिलेगी.
साक्षी गुप्ता, HDFC बैंक की इकनॉमिस्ट

नाइट फ्रैंक इंडिया की चीफ इकनॉमिस्ट रजनी सिन्हा का मानना है कि जीडीपी के आंकड़े उम्मीद के मुताबिक ही रहे हैं. पहली तिमाही के दो महीनों में लॉकडाउन के दौरान इकनॉमी का 70 से 80 फीसदी हिस्सा बंद रहा. लेकिन अब पिछले कुछ महीनों से अनलॉक की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है.

इकनॉमी के ज्यादातर हिस्से पिछले साल के मुकाबले 70 से 90 फीसदी पटरी पर लौट चुके हैं. स्थायी बेहतरी की उम्मीद तभी की जा सकती है जब कोरोना वायरस के केस की संख्या कम होगी. अब जरूरत है सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करे और इकनॉमी में डिमांड जनरेट करने की कोशिश करे.
रजनी सिन्हा, नाइट फ्रैंक इंडिया की चीफ इकनॉमिस्ट

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