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इकनॉमी के ताजा आंकड़ों के पीछे की भयावह तस्वीर देखिए

ढ़ाई ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी तक पहुंचने में दो से तीन साल तक लग सकते हैं

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

भारत सरकार ने जीडीपी के आंकड़े जारी किए, जो दिल दहला देने वाले हैं. जिनता अनुमान था उससे भी खराब नंबर आए हैं और ये नंबर भी बाद में रिवाइज हो सकते हैं. इस नंबर से जो खबर सामने आई है, वो काफी दर्दनाक है. हमारी इकनॉमी इतनी ज्यादा गिर गई है कि इसे रिकवर करने में दो-चार क्वॉर्टर नहीं बल्कि दो से तीन साल तक लगेंगे. अगर प्री कोरोना दौर में हमारी इकनॉमी ढ़ाई ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी थी, तो वहां लौटकर आने का वक्त दो से तीन साल तक का हो सकता है.

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ग्रीन शूट इकनॉमी की बात बेमतलब

तो अगर ग्रीन शूट्स को लेकर जरा भी शोर था तो वो लोग जमीन पर खड़े होकर नहीं देख रहे थे. कुंएं के अंदर गिर जाने के बाद वहां उन्हें ग्रीन शूट नजर आ रहा था. ये कहानी अब बेमतलब की निकली है. अब ये पता लगा है कि क्रेडिट ग्रोथ और लिक्विडिटी उपलब्ध करा देने में जो इलाज ढूंढ़ रहे थे, वो इलाज था ही नहीं. इसे एक आंकड़े से समझ लीजिए. इस पूरे लॉकडाउन में क्रेडिट ग्रोथ 4% है और जो क्रेडिट गारंटी वाला फंड था, उसमें 40% कर्ज ही उठा है, बाकी पैसा उठा ही नहीं. यानी पैसे हैं तो उसका करें क्या? इसका मतलब है कि मूल बीमारी लेबर, सप्लाई चेन, डिमांड न होने और लॉजिस्टिक्स के तहस-नहस हो जाने में थी. इस बीमारी का इलाज अभी भी नजर नहीं आ रहा है.

कोरोना के आंकड़ों के चलते अब लॉकडाउन और अनलॉक का प्रोसेस चलता रहेगा, लेकिन जब तक इन चीजों को फिक्स नहीं किया जाएगा, तब तक इकनॉमी वापस पटरी पर लौटे ये सफर काफी लंबा और दर्दनाक होने वाला है.
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GDP के अलावा दूसरे आंकड़ों पर डालनी होगी नजर

जीडीपी के आंकड़े तो हमारे सामने हैं, लेकिन कुछ और आंकड़ों को समझना जरूरी है, जैसे अभी आपको क्रेडिट ग्रोथ का आंकड़ा बताया. दूसरा आंकड़ा है कि चार शहरों में जो ट्रैफिक कंजेशन जो आमतौर पर 90 फीसदी तक रहता था वो लॉकडाउन के वक्त 50 फीसदी हुआ और गिरने के बाद अब वो 37 फीसदी पर है.

वहीं जो बिजली की मांग को लेकर कहा जा रहा था कि वापस बढ़ने लग गई है, वो पहले प्रतिदिन 3700 मेगावॉट की बिजली खपत हो रही थी, वहीं अब वो गिरकर 3400 मेगवॉट प्रतिदिन तक पहुंच चुकी है. इसी तरह से फिस्कल डेफिसिट पहले से ही 100 फीसदी के ऊपर जा चुका है, यानी सरकार के पास खर्च करने के लिए न गुंजाइश है और न ही पैसे हैं.

एक जो आंकड़ा आपको दिया जा रहा है कि खेती में 3.4% की ग्रोथ हाई है, सिर्फ यही एक पॉजिटिव समाचार है. तो अब समझ लीजिए कि खेती की ग्रोथ और जो पब्लिक एक्सपेंडिचर है, उसके बल पर जो जीडीपी का कंपोजिशन बदलने वाला है, उसमें खजाने पर क्या खतरा आएगा. खतरा ये होगा कि उनके पास टैक्स का कलेक्शन कम होगा, यानी फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा. वहीं दूसरी तरफ एक आंकड़े पर नजर डालना जरूरी है. टोटल मनी सप्लाई जिसे कहते हैं, वो बढ़कर 11-12 फीसदी तक हो चुका है. यानी इंफ्लेशन और ज्यादा बढ़ सकता है. हम और आप देख रहे हैं कि इनकम गिर गई है और महंगाई कितनी बढ़ गई है.

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खेती की अगली तिमाही के डेटा में गिरावट मुमकिन

कृषि उत्पादन के आंकड़े में एक और बात समझना जरूरी है. जीडीपी का ये आंकड़ा प्राइज के आधार पर है, वॉल्यूम के आधार पर नहीं. तो जो ये नंबर बढ़ा हुआ नजर आ रहा है, इसे पुश करने में जो कीमतें बढ़ी हैं उसका बड़ा रोल है. इसका मतलब ये हुआ कि खेती की अगली तिमाही में जो डेटा आए हो सकता है वो गिरा हुआ आए. यानी ये नंबर हमारी दर्दनाक हाल का पूरा चित्रण सही-सही नहीं बताते हैं. अब इसके बाद इस साल के दूसरे क्वॉर्टर का इंतजार लोगों को रहेगा. वहां के लिए थोड़ी रिकवरी दिखेगी. इसके बाद त्योहार खत्म हो चुके होंगे तो क्यू-3 कैसा रहेगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. रिकवरी के लेवल तक लौटने के लिए क्यू-4 का इंतजार करना होगा.लेकिन अभी रास्ते की मुश्किलें बड़ी और काफी गहरी हैं.

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