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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव और लेनदेन में तेजी के बीच अर्थव्यवस्था में कैश का चलन एक बार फिर से तेजी से बढ़ा है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह नोटबंदी से पहले के स्तर पर पहुंच गया है. जापानी ब्रोकरेज नोमूरा की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नकदी की मांग बढ़ने की प्रमुख वजह लेनदेन में तेजी और आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव है.
ब्रोकरेज कंपनी ने निराशा जताते हुए कहा कि उसे उम्मीद थी कि अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद के 12 फीसदी के बराबर नकदी की कभी जरूरत नहीं होगी, जो स्थिति नोटबंदी से पहले थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि नकदी की जमाखोरी कम होने और डिजिटल भुगतान बढ़ने से अर्थव्यवस्था में नकदी घटाने में मदद मिलेगी, लेकिन मौजूदा में जो रुख दिख रहा है उससे ऐसी उम्मीदें पूरी होती नहीं दिख रही हैं.
रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़े बताते हैं कि इस साल फरवरी के आखिरी दिनों में सर्कुलेशन में उतना ही कैश है, जितना नोटबंदी से पहले नवंबर, 2016 में था. रिजर्व बैंक के मुताबिक, 23 फरवरी 2018 को अर्थव्यवस्था में करेंसी का कुल सर्कुलेशन 17.82 लाख करोड़ है, नवंबर 2016 में ये आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था. अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का कहना है कि करेंसी में इस उछाल का कारण राजनीतिक पार्टियों की तरफ से कैश की जमाखोरी हो सकती है.
ये कहा जा सकता है कि कैश का प्रवाह एक बार फिर से अपने पुराने रंग में लौट आई है. रिपोर्ट कहती है कि अप्रैल में चलन में कैश जीडीपी के 11.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो नोटबंदी से पहले का स्तर है. उस समय नकदी जीडीपी का 11.5 से 12 प्रतिशत थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में अर्थव्यवस्था में कैश डालने की वजह से इसमें इजाफा हुआ. मौजूदा समय में कर्नाटक विधानसभा चुनाव की वजह से कैश का फ्लो बढ़ रहा है.
बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 12 मई को होना है. ये रिपोर्ट ऐसे समय आई है जबकि कुछ दिन पहले नकदी संकट के हालात पैदा हो गए थे. जिसकी वजह से कई मूल्य के नोटों की छपाई पांच गुना बढ़ाई गई थी.
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