8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटों के चलन पर पाबंदी लगा दी थी. कहा गया था कि इस फैसले के बाद से देश को कैशलेस बनाने में मदद मिलेगी, साथ ही डिजिटल इंडिया के सपने को बढ़ावा मिल सकेगा. अब नोटबंदी के करीब 15 महीने बाद ये तर्क कमजोर साबित हो रहा है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि नोटबंदी से ठीक पहले जितना कैश था, उससे ज्यादा कैश सर्कुलेशन में आ चुका है.
सर्कुलेशन में कितना कैश आया?
रिपोर्ट के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में 9 मार्च 2018 तक करेंसी का कुल सर्कुलेशन 18.13 लाख करोड़ पहुंच गया है, जबकि नोटबंदी के ठीक पहले यानी 8 नवंबर 2016 से पहले ये आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था. नोटबंदी के वक्त 15.44 लाख करोड़ कीमत के नोटों को बैन कर दिया गया था.
पिछले महीने आई एक रिपोर्ट में SBI के चीफ इकनॉमिस्ट सौम्य कांति घोष के हवाले से कहा गया था कि करेंसी में इस उछाल का कारण राजनीतिक पार्टियों की तरफ से कैश की जमाखोरी हो सकती है. उन्होंने कहा था कि करेंसी में इजाफा पिछले दो महीनों (जनवरी-फरवरी) से ज्यादा देखने को मिला है. जनवरी में 0.45 लाख करोड़ कैश में बढ़ोतरी हुई तो फरवरी में 0.51 लाख करोड़. जबकि पिछले साल इन्हीं महीनों में ये ग्रोथ 0.1 लाख करोड़ और 0.2 लाख करोड़ था.
डिजिटल इकनॉमी का क्या है हाल?
प्वाइंट-ऑफ-सेल का इस्तेमाल कर डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड के जरिए पेमेंट में थोड़ी गिरावट है. अक्टूबर, 2017 में ये 53 हजार करोड़ रुपये रहा जो फरवरी,2018 में घटकर 46.5 हजार करोड़ हो गया. वहीं UPI यानी यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस के जरिए पेमेंट की रफ्तार थोड़ी बढ़ती दिख रही है. ये साफ संकेत है कि इकॉनामी में कैश का सर्कुलेशन जस का तस बना हुआ है, ये भी कहा जा सकता है कि लोग कैश और डिजिटल दोनों प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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