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कोविड-19 (Covid-19) महामारी के प्रकोप से खाली हो चुके सार्वजनिक खजाने को फिर से भरने के लिए भारत में अब तक की सबसे बड़ी आईपीओ लिस्टिंग (IPO listings) में से एक पर विचार किया जा रहा है.
सरकार द्वारा संचालित भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने 13 फरवरी को पूंजी बाजार नियामक सेबी (SEBI) को अपना एक मसौदा रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस प्रस्तुत किया. एलआईसी में सरकार की 100 फीसदी की हिस्सेदारी है. वहीं सेबी में की गई फाइलिंग के अनुसार सरकार कंपनी (LIC) के 31.62 करोड़ इक्विटी शेयर या आईपीओ में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी की पेशकश कर रही है.
पिछले साल लॉन्च किए गए आईपीओ को रिटेल इंवेस्टर्स से अनुकूल प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन एलआईसी आईपीओ लिस्टिंग को लेकर माहौल कैसा बन रहा है?
COVID-19 के प्रकोप के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका लगा है. ऐसे दौर में इससे सरकार के लिए लाभ स्पष्ट हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट्स (NISM) में सहायक प्रोफेसर और लेखिका मोनिका हलन ने क्विंट को बताया कि "सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और कोविड महामारी की वजह से बढ़े हुए अन्य खर्चाें के लिए विनिवेश (disinvestment) की आय की आवश्यकता है."
क्योंकि यह पूरी तरह से एक बिक्री की पेशकश है, ऐसे में सभी आय सीधे सरकार के पास जाएगी, जिसने इस साल के केंद्रीय बजट में 78,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया है. भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के माध्यम से कार्य करते हुए भारत के राष्ट्रपति इस बिक्री के प्रमोटर हैं.
हालांकि ऑफर प्राइस को सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन विश्लेषकों का अनुमान है कि इसका संभावित मूल्यांकन लगभग 10-15 लाख करोड़ रुपये हो सकता है.
ब्लूमबर्ग क्विंट के मार्केट्स एडिटर नीरज शाह के अनुसार, "प्रस्ताव पर शेयरों के आधार पर, इससे सरकार को विनिवेश की आय के रूप में एक अच्छी राशि मिलेगी."
1956 में अपनी स्थापना के बाद से ही LIC मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच एक घरेलू नाम बन गया है. अपेक्षा के अनुसार इसके आईपीओ की चर्चा काफी ज्यादा है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार माधवन नारायणन ने चेताते हुए कहा कि "बाजार की चहल-पहल के साथ नीति की चर्चा को भ्रमित न करें."
हलान कहती हैं कि "एलआईसी का आईपीओ कई मायनों में सही है. एक ऐसी कंपनी जो भारत में जीवन बीमा का पर्याय बन गयी है उसके शेयर्स के साथ बुल मार्केट में आने वाला सबसे बड़ा आईपीओ है और इसमें पॉलसीधारकों के लिए डिस्काउंट भी है."
फाइलिंग के अनुसार, पॉलिसीधारकों और कर्मचारियों को कुछ छूट मिलेगी. इसके अलावा, एलआईसी के 10 प्रतिशत शेयर पॉलिसीधारकों के लिए और 5 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए रिजर्व होंगे.
नीरज शाह का कहना है कि "यह एक बड़ा मुद्दा है और अधिकांश घर इसके कस्टमर हैं. लेकिन इसकी निवेश क्षमता अभी तक अनिश्चित है. इसमें कई समायोजन किए जाने की जरूरत है और यह तय करने से पहले कि यह निवेश योग्य है या नहीं इसका विश्लेषण करने में समय लगेगा."
नारायणन ने यह भी उल्लेख किया कि बाजार का मिजाज और समय निवेश की योग्यता निर्धारित करेगा.
एलआईसी की एम्बेडेड वैल्यू 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है. मीडिया रिपोर्टों ने एलआईसी के बाजार मूल्यांकन को एम्बेडेड मूल्य के लगभग चार गुना पर अनुमानित किया है, जो एलआईसी को देश की सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनी यानी लिस्टिंग कंपनी बना देगा.
एलआईसी के लगभग 30 करोड़ पॉलिसीधारक हैं. कंपनी विज्ञापन चला रही है जिसमें वह अपने पॉलिसीधारकों से अपने पैन को पॉलिसी से जोड़ने के लिए कह रही है. इसके साथ ही रियायती मूल्य पर शेयर खरीदने के लिए एक डीमैट खाता खोलने के बारे में भी कह रही है.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अल्पावधि में एलआईसी पॉलिसीधारकों को कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिल सकता है.
इस पर मोनिका हलान का नजरिया था कि "लंबे समय में, पूंजी बाजार नियामक की बढ़ी हुई निगरानी पॉलिसीधारकों के लिए फायदेमंद है. यह IRDAI की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह प्रोडक्ट स्ट्रक्चर, कमीशन, डिस्क्लोजर्स और उपयुक्तता उपायों में दुनिया भर की बेस्ट प्रैक्टिसेस को स्थापित करे."
नारायणन के अनुसार, इस लिस्टिंग ने इस बारे में एक बहस छेड़ दी है कि क्या पॉलिसीधारकों को शॉर्टचेंज किए जाने का खतरा है?
बिजनेसवर्ल्ड और बिजनेस टुडे के पूर्व संपादक प्रोसेनजीत दत्ता को लगता है कि बीमा कंपनी के लिए बुनियादी तौर बहुत कुछ नहीं बदलेगा.
नीरज शाह कहते हैं कि "सूचीबद्ध होने के बाद, अगर भारतीय बीमा बाजार में तेजी आती है, तो इसका मतलब कंपनी से जुड़ा एक अच्छा, निश्चित मूल्य हो सकता है, जो हमेशा उपयोगी होता है."
केंद्र सरकार मार्च 2022 तक आईपीओ को पूरा करना चाहती है. नारायणन के मुताबिक सरकार को इसकी कीमत और आकार, दोनों में सावधानी बरतनी होगी.
"चूंकि यह एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, इसलिए मूल्य निर्धारण की स्थिति कैच -22 है. अगर वे इसे अधिक कीमत देते हैं तो बाजार इसे पसंद नहीं कर सकता है वहीं यदि वे कम कीमत देते हैं, तो लोग कह सकते हैं कि परिवार के गहने सस्ते बेचे जा रहे हैं." वे आगे कहते हैं कि "यूक्रेन संकट, अमेरिकी फेडरल रिजर्व में बढ़ोतरी कर रहा वहीं भारत में मुद्रास्फीति पहले से ही मूड को खराब कर रही है."
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