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म्यूचुअल फंड में निवेश करने का चलन बढ़ता जा रहा है. ये नए मिडिल क्लास के लिए निवेश का सबसे पसंदीदा विकल्प बनकर उभरा है. लेकिन बिना जाने निवेश करना खतरे से खाली नहीं है. यहां हम बता रहे हैं आपको म्युचुअल फंड से जुड़ी सात बड़ी बातें जिन्हें जानकर अच्छा पैसा कमा सकेंगे.
अल्फा फंड मैनेजर की ओर से आपके फंड के लिए जोड़े जाने वाले वैल्यू को कहते हैं. उदाहरण के लिए अगर निफ्टी 10 फीसदी का रिटर्न देता है और फंड मैनेजर आपको इससे ज्यादा रिटर्न दिला रहा है तो यह बढ़ा हुआ रिटर्न ही अल्फा है. कहने का मतलब है कि बेंचमार्क रिटर्न से ज्यादा मिलने वाला फायदा ही अल्फा है.
अगर आपका बीटा 1 फीसदी से ज्यादा है तो यह ज्यादा माना जाएगा. अगर एक फीसदी से कम है तो यह कम माना जाएगा. मार्केट के पास एक फीसदी बीटा है. अगर किसी फंड या स्ट्रेटजी का बीटा 1.2 है तो इसका मतलब है जब मार्केट एक फीसदी ज्यादा चढ़ेगा तो आपका फंड 1.2 फीसदी चढ़ेगा. अगर मार्केट एक फीसदी नीचे जाता है तो आपका फंड 1.2 फीसदी नीचे जाएगा.
अगर आपके फंड की एंट्री दो फीसदी है तो इसका मतलब यह है कि किसी फंड में एक लाख के आपके निवेश पर 2000 रुपये कट जाएंगे. आपका निवेश सिर्फ 98 हजार का ही माना जाएगा. दरअसल Portfolio Management Services को 25 लाख या Alternative investment funds Scheme के लिए न्यूनतम निवेश बेंचमार्क एक करोड़ रुपये है. इसलिए जब आप 25 लाख वाले Portfolio Management Services में निवेश करते हैं और यह बताता है कि आपके फंड पर 2 फीसदी का एंट्री लोड है तो इसका मतलब है 50 हजार कट जाएगा और आपका साढ़े चौबीस लाख रुपये ही इसमें इनवेस्ट होगा.
लिक्विड फंड स्कीमों के लिए कोई एग्जिट लोड . लेकिन अल्ट्रा शॉर्ट, कम या मध्यावधि के फंड में निवेश करते हैं तो एग्जिट लोड बढ़ता जाता है. तीन महीने का एग्जिट लोड है तो इसका मतलब है निवेश के बाद तीन महीने से पहले पैसा निकालने पर आपको रिडम्पशन मनी का एक फीसदी पैसा काट कर मिलेगा.
फंड प्रोडक्ट्स से जुड़े ग्राफ होते हैं जिनमें एक ओर कम जोखिम वाले प्रोडक्ट होते हैं तो दूसरी ओर ज्यादा जोखिम वाले. कम जोखिम वाले फंड. कम जोखिम वाले फंड में लिक्विड फंड शामिल हैं जिनकी औसतन मेच्योरिटी 60 दिनों की होती है. जैसे बेहद छोटी अवधि के फंड यानी एक दिन के निवेश में कोई निगेटिव रिटर्न नहीं होता.
जैसे-जैसे आप लार्ज कैप की ओर बढ़ते हैं तो जोखिम बढ़ता चला जाता है. मिड और स्मॉल कैप के शेयर वाले फंड में जोखिम ज्यादा होता है क्योंकि इन शेयरों में काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है. फंड का जोखिम इसके प्रोफाइल पर पड़ता है. इसलिए फंड की अवधि पर गौर करना चाहिए. अगर आप दस साल तक फंड में इनवेस्ट करते हैं तो लिक्विड फंड में आपका निवेश सेफ नहीं हो सकता है.
टर्नओवर रेश्यो का मतलब म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो में होल्डिंग्स का वह हिस्सा है जिसमें एक निश्चित अवधि के दौरान बदलाव दिखता है. कुल परिसंपत्तियों के औसत से कुल खरीद या कुल बिक्री मूल्य, जो भी कम हो, में भाग दिया जाता है. इसे अमूमन 12 महीने की अवधि के लिए बताया जाता है. अगर पोर्टफोलियो का टर्नओवर रेश्यो कम है फंड बाय एंड होल्ड की स्ट्रेटजी अपना रहा है. फंड मैनेजर को कंपनियों को चुनने में अपनी पसंद पर काफी ज्यादा भरोसा है.
म्यूचुअल फंड में निवेश करने का बढ़िया तरीका है यह है कि जब मार्केट डाउन हो तो ज्यादा इनवेस्ट करें. इस समय आपको कम कीमतें में फंड की ज्यादा यूनिटें मिलेंगी. चढ़ते हुए मार्केट में आपको उसी निवेश पर कम यूनिट मिलती है. चूंकि आको मार्केट के हाई और लो के बारे में अंदाजा नहीं होता तो इसलिए आप एक निश्चित रकम इनवेस्ट करते जाते हैं लेकिन चढ़ते मार्केट में आपको फंड की यूनिटें कम मिलती है. लेकिन एक निश्चित अवधि के बाद यूनिट खरीदने की लागत कम हो जाती है. यानी आपको एक निश्चित अवधि में यूनिटें सस्ती पड़ती हैं. इसी को rupee cost averaging कहते हैं.
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