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Yes बैंक संकट से गुजर रहा है. आरबीआई की सिफारिश पर YES BANK पर सरकार ने बैन लगा दिया है. अब बैंक का कोई भी खाताधारक 3 अप्रैल तक अपने अकाउंट से 50 हजार रुपये से अधिक रकम नहीं निकाल सकता. इस पूरे मामले में सरकार की भी किरकिरी हो रही है. साफ है कि अगर ये बैंक फेल होता तो भारत की रेटिंग पर असर पड़ता. ऐसे में इकनॉमिक स्लोडाउन के इस दौर मे सरकार ने मजबूरी में ये कदम उठाया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि बैंकों का ये संकट यूपीए सरकार की देन है. वहीं यूपीए सरकार में वित्तमंत्री रहे पी चिदंबरम का कहना है कि यस बैंक की विफलता वित्तीय संस्थानों के कुप्रबंधन का हिस्सा है, गड़बड़ियां मौजूदा सरकार में हुई है.
सीतारमण ने यूपीए सरकार पर कई आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा है कि संकट में फंसे Yes बैंक द्वारा कई बड़ी कंपनियों को 2014 से काफी पहले कर्ज दिया गया था. ये सब पहले से ही सार्वजनिक है.
वहीं पी चिंदबरम ने कहा है कि भारत के पांचवें सबसे बड़े निजी क्षेत्र के बैंक की स्थिति बीजेपी सरकार के तहत वित्तीय संस्थानों के कुप्रबंधन के कारण चरमराई है. चिदंबरम ने कुछ आंकड़े भी दिए हैं, इसके मुताबिक, Yes बैंक का जो आउटस्टैंडिंग लोन (फंसा हुआ कर्ज) 2014 में 55,633 करोड़ रुपये था, वो मार्च, 2019 में बढ़कर 2,41,499 करोड़ रुपये हो गया है. यानी सिर्फ पांच सालों में यस बैंक का फंसा हुआ कर्ज चार गुना से भी अधिक बढ़ गया है.
निर्मला ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यस बैंक संकट 5 मार्च को ही सामने नहीं आया. सरकार को इसकी ओर से नियमों के उल्लंघन के बारे में पहले से पता था. बैंक का गवर्नेंस खराब था और यह 2017 से ही हो रहा था. सीतारमण ने कहा कि लोगों का बैंक में डिपोजिट सुरक्षित है.
चिदंबरम ने कहा कि साल 2017 से सरकार यस बैंक की निगरानी कर रही है, इसके बावजूद बैड लोन (फंसा हुआ कर्ज) बढ़ता गया. पी चिदंबरम ने पूछा है कि ऐसे डिफॉल्ट कर रहे बैंक को 2014 के बाद लोन देने के लिए कौन सी कमिटी या अथॉरिटी परमिशन दे रही थी. क्या सरकार या RBI को बैंक के इस डिफॉल्ट के बारे में पता नहीं था?
सीतारमण ने जुलाई, 2014 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के संकट और आईडीबीआई बैंक में समस्या के लिए चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराया. आईडीबीआई बैंक में 2006 में लगभग बंद होने जा रहे यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का विलय हुआ था. कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार मई, 2004 में सत्ता में आई थी. चिदंबरम तब वित्त मंत्री थे.
वहीं पी चिदंबरम का Yes बैंक मामले पर कहना है कि सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस कहानी को मीडिया से गायब करना चाहेंगी. कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके बेहतरीन प्रयासों के बावजूद बीजेपी की ओर से वित्तीय संस्थानों का कुप्रबंधन एक ऐसा मुद्दा होगा, जो सार्वजनिक तौर पर सभी के सामने रहेगा और इस पर बड़े पैमाने पर बहस होगी.
वित्त मंत्री ने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर इस केस को देख रही हूं और आरबीआई ने भरोसा दिया है कि जल्द ही इस मामले का निपटारा कर लिया जाएगा. सीतारमण ने कहा कि आरबीआई इससे निपटने के लिए काम कर रहा है. बता दें कि RBI ने SBI के पूर्व CFO प्रशांत कुमार को यस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया गया है.
चिदंबरम के मुताबिक, यस बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) पर दबाव डाला जा रहा है. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
RBI से बैंकिंग लाइसेंस मिलने के बाद 2004 में राणा कपूर और अशोक कपूर ने मिलकर यस बैंक बनाया था. दोनों मिलकर बैंक चलाया करते थे. अशोक कपूर बैंक के चेयरमैन थे और राणा कपूर बैंक के MD और CEO थे. लेकिन 26/11 के हमले में अशोक कपूर का निधन हो गया. इसके बाद बैंक के सर्वेसर्वा हो गए राणा कपूर.
राणा कपूर ने जब से बैंक की पूरी कमान संभाली उन्होंने अंधाधुंध कर्ज देना शुरू किया. जब सारे बैंक कर्जदारों को NO कहते थे तब राणा कपूर का बैंक YES कहता था. और कर्ज देता था. यस बैंक ने बड़े-बड़े कर्ज दिए वो भी बाजार में चल रहे ब्याज से ज्यादा रेट पर. शुरुआत में बैंक के कारोबार में गजब की तेजी देखने को मिली.
बैंक के कारोबार में जितनी तेजी उछाल देखने को मिला, उससे भी ज्यादा तेजी से बैंक के बुरे दिन भी आ गए. बैंक का हर तरह के कर्ज के लिए YES कहने की प्रवृत्ति ने उसे भारी नुकसान पहुंचाया.
इनमें अनिल अंबानी का रिलायंस ग्रुप, IL&FS, DHFL, जेट एयरवेज, एस्सार शिपिंग, कॉक्स एंग किंग्स, कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियां शामिल हैं.
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