मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी ने महिलाओं को क्यों दिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट,ये हैं 3 कारण

मोदी ने महिलाओं को क्यों दिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट,ये हैं 3 कारण

बीजेपी को मिलती रही चमत्कारिक जीत में उनका महिलाओं के बीच लोकप्रिय होना महत्वपूर्ण कारणों में एक माना जाता रहा है.

प्रेम कुमार
नजरिया
Updated:
महिलाओं को केंद्र में रखकर सियासत का युग शुरू हो चुका है.
i
महिलाओं को केंद्र में रखकर सियासत का युग शुरू हो चुका है.
(फोटोः PTI)

advertisement

महिला दिवस पर सोशल मीडिया महिलाओं के हवाले कर देना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नायाब पहल है. महिलाओं में यह नरेंद्र मोदी को और भी अधिक लोकप्रिय बनाएगी. यह ऐसी पहल है जिससे विरोधी ईर्ष्या तो कर सकते हैं, मगर उसकी आलोचना नहीं कर सकते. यह भी जगजाहिर है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को मिलती रही चमत्कारिक जीत में उनका महिलाओं के बीच लोकप्रिय होना महत्वपूर्ण कारणों में एक माना जाता रहा है. प्रश्न यह है कि सोशल मीडिया में महिलाओं को नेतृत्व देने का ख्याल प्रधानमंत्री को क्यों आया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजा पहल की तात्कालिक वजह तीन हैं- एक, शाहीन बाग आंदोलन, जो महिलाओं के नेतृत्व में चल रहा है. दूसरा, दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार, जो महिलाओं का साथ नहीं देने की वजह से हुई कही जा सकती है. तीसरा, बिहार में होने वाला विधानसभा चुनाव, जहां की महिलाओं को आकर्षित करते हुए 2005 के बाद से लगातार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं.

शाहीन बाग का आंदोलन बन चुका है मिसाल

शाहीन बाग आंदोलन की खासियत महिलाओं का नेतृत्व है. तमाम तरह के प्रतिकूल राजनीतिक मौसम और झंझावातों से गुजरते हुए यह आंदोलन मिसाल बन चुका है. इसने बीजेपी की प्रतिगामी और सांप्रदायिक राजनीति को बेपर्दा किया है.

‘गोली मारो’ जैसी सियासत के लिए मजबूर हो गयी बीजेपी और इससे न सिर्फ दिल्ली का चुनाव हार गयी, बल्कि पैन इंडिया लेवल पर बीजेपी की छवि को भारी नुकसान पहुंचा है.

ये बात महसूस की जा सकती है अगर महिलाओं के बीच खुद नरेंद्र मोदी की छवि को नये सिरे से तौला जाए. दिल्ली के दंगे भी महिलाओं के बीच बीजेपी को कोई नंबर नहीं दिला रहे हैं, यह बात साफ है. अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न उत्तेजक भाषणों की और न ही दिल्ली दंगे की कोई स्पष्ट आलोचना देश के सामने रखी है. शांति की अपील या दुख जरूर जताया है.

बढ़ती जा रही है महिलाओं की चुनाव में भागीदारी

महिलाओं की चुनाव में भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है. एक बड़ा बदलाव यह आया है कि अब महिलाएं अपने परिवार के पुरुष सदस्यों से पूछकर वोट नहीं करतीं. यही वजह है कि तीन तलाक हटाने का कानून लाने पर मुस्लिम महिलाओं ने खुलकर नरेंद्र मोदी की सरकार का साथ दिया. वह 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वोटों में भी नजर आया. फिर भी बीजेपी को यह चिंता सताती रही है कि उसे 2019 के आम चुनाव में कुल वोटों के जो 37 फीसदी वोट मिले, उनमें पुरुषों के 39 प्रतिशत और महिलाओं के 36 प्रतिशत वोट थे. तीन प्रतिशत वोट का यह अंतर अगर बीजेपी सुधार लेती है तो राष्ट्रीय स्तर पर उसकी मौजदूगी कहीं मजबूत तरीके से चुनौतीविहीन हो जाएगी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कांग्रेस के पास महिलाओं को समर्थन कम नहीं

अगर कांग्रेस से तुलना करें तो एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर जो उसकी मौजूदगी दिखती है उसमें महिलाओं के समर्थन की अहमियत कम नहीं है. लेकिन, कांग्रेस को मिले वोट शेयर बीजेपी के मुकाबले आधे से कम हैं इसलिए यह समर्थन सीटों में तब्दील नहीं हो सका. 2019 में कांग्रेस को पुरुषों के मुकाबले 1 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने वोट दिया. अगर 1996 के बाद के चुनावों को देखें तो कांग्रेस को हर चुनाव में महिलाओं ने 1 से लेकर 3 प्रतिशत तक अधिक वोट किए. 2014 में यह अंतर शून्य था जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी थी.

हालांकि यह बात भी उल्लेखनीय है 2014 में मोदी लहर के दौरान बीजेपी को पुरुषों के मुकाबले 4 प्रतिशत कम महिलाओं ने वोट किया था.

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की अल्पमत सरकार 13 महीने के लिए बनी थी जो जयललिता की पार्टी अन्ना द्रमुक के समर्थन वापस लेने की वजह से गिर गयी थी. उस चुनाव में बीजेपी को मिले वोटों में पुरुष-महिला वोटों का फर्क सबसे ज्यादा 6 फीसदी था. यह वह दौर था जब महिलाएं चुनाव में अपनी भूमिका और अहमियत बढ़ाने को बेचैन होने लगी थी. बीजेपी 1996 के बाद से हर चुनाव में 2 से 6 फीसदी के बीच महिलाओं के वोट कम पाती रही है.

2019 के चुनाव में पुरुष से अधिक महिला वोटर

2019 के आम चुनाव में पुरुष वोटर 67.01 प्रतिशत रहे थे, तो महिला वोटर 67.18 प्रतिशत. नरेंद्र मोदी की चिंता है कि जब वोट देने में महिला और पुरुष का अंतर खत्म हो रहा है तो यह रुझान बीजेपी को मिले वोटों में भी दिखना चाहिए. मोदी अपने अनुभव से जानते हैं कि महिलाओं का समर्थन ही डबल इंजन वाली सरकार सुनिश्चित सकती है. लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और असम में बीजेपी को मिले वोटों में दो प्रतिशत अधिक योगदान महिलाओं का था और इन सभी राज्यों में डबल इंजन की सरकारें हैं. बिहार में भी बीजेपी को 2 प्रतिशत अधिक वोट महिलाओं ने दिए जहां एनडीए की सरकार है. महाराष्ट्र में राजनीतिक कारणों से डबल इंजन की सरकार नहीं बन सकी. यहां महिलाओं ने पुरुषों के बराबर बीजेपी को समर्थन दिया था.

इन राज्यों में बीजेपी को मिला है खुलकर महिलाओं का साथ

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखण्ड, दिल्ली जैसे राज्य जहां बीजेपी की हार हुई है वहां बीजेपी ने महिलाओं के बीच जनाधार खोया है वहीं बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस या दूसरी पार्टियां महिलाओं में अधिक लोकप्रिय नजर आयी हैं.

महिला वोटरों ने केजरीवाल को जीताया

दिल्ली में सभी 7 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव हार गयी, तो इसके पीछे वजह महिला वोटरों का अरविंद केजरीवाल के साथ बने रहना था. दिल्ली चुनाव 2020 से पहले लोकनीति-सीडीएस के एक सर्वे में बताया गया था कि बीजेपी के मुकाबले महिलाओं का समर्थन आम आदमी पार्टी को 25 प्रतिशत अधिक था. पुरुषों के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक महिलाएं आम आदमी पार्टी को वोट देती दिख रही थीं.

इसकी वजह चाहे मुफ्त बिजली, पानी, मेट्रो, बस रही हों या शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम, लेकिन आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के समर्थन से चुनाव मैदान में दोबारा चमत्कार कर दिखलाया. 

लोकसभा चुनाव में जो महिलाएं नरेंद्र मोदी के साथ रही थीं, उन्होंने नफरत की राजनीति के कारण बीजेपी का साथ विधानसभा चुनाव में छोड़ दिया.

बिहार के चुनाव में होगा महिला वोटरों पर ध्यान

अगला चुनाव बिहार में होना है. नीतीश कुमार महिलाओं में लगातार लोकप्रिय रहे हैं. बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ते हैं या अलग-अलग, इस पर संशय बना हुआ है. यह बात तय है कि अगर महिलाओं के बीच बीजेपी ने अपनी लोकप्रियता गंवाई तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी. नीतीश कुमार नशाबंदी, सुशासन, भयमुक्त शासन, लड़कियों को साइकिल और ऐसे नारों या योजनाओं से महिलाओं को लुभाते रहे हैं तो बीजेपी के पास भी उज्जवला योजना से लेकर घर-घर बिजली, घर-घर पानी जैसे नारे हैं. मगर, हाल के दिनों में हेट पॉलिटिक्स के कारण बीजेपी की जो छवि बनी है वह महिलाओं को पसंद नहीं आने वाली है. खुद बिहार के उदाहरण से इसे समझ सकते हैं जहां महिलाओं के बीच नीतीश इसलिए लोकप्रिय रहे हैं क्योंकि उन्हें कारोबार और उद्योग बन चुके बलात्कार, अपहरण, हत्या को कम करने का श्रेय दिया जाता है.

महिला दिवस पर देश की राजनीति में महिला शक्ति अपना अहसास करा रही है इसका प्रमाण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने सोशल मीडिया का नेतृत्व एक दिन के लिए महिलाओं के हवाले करना. लगातार लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी से महिलाओं ने यह स्थिति हासिल की है. आने वाले दिनों में अगर सदन में 33 प्रतिशत आरक्षण और इससे पहले खुद राजनीतिक दलों के भीतर महिलाओं के लिए आरक्षण का सपना हकीकत बनकर सामने आता है तो इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए. क्योंकि, महिलाओं को केंद्र में रखकर सियासत का युग शुरू हो चुका है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 08 Mar 2020,04:34 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT