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रुपए में कमजोरी और शेयर बाजार में भारी गिरावट से साफ है कि रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल का इस्तीफा निवेशकों और सरकार दोनों को बहुत महंगा पड़ा है. उनके इस्तीफे ने मोदी सरकार को बहुत बड़ा टेंशन दे दिया है. जिसकी गूंज लंबे वक्त तक वित्तीय मामलों में सुनाई देती रहेगी. उनके इस फैसले से नॉर्थ ब्लॉक से साउथ मुंबई रिजर्व बैंक हेडक्वार्टर तक सब भौचक्के हैं.
रिजर्व बैंक बोर्ड की बैठक 14 दिसंबर को होनी है जिसमें सरकार के साथ गरमा गरमी के आसार थे लेकिन अब उर्जित पटेल ने इस्तीफा देकर साफ कर दिया है कि उनके लिए रिजर्व बैंक की ऑटोनॉमी से बढ़कर कुछ नहीं.
चर्चा यही थी कि रिजर्व बैंक की 14 दिसंबर की बोर्ड बैठक में उर्जित पटेल की मर्जी के खिलाफ कई फैसले हो सकते हैं. उर्जित रिजर्व बैंक के कामकाज में सरकार का कोई दखल नहीं चाहते थे. लेकिन वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक बोर्ड इसकी कोशिश कर रहा था. खासतौर पर आरएसएस से जुड़े इंडिपेंडेंट डायरेक्टर एस गुरुमूर्ति रिजर्व बैंक की ऑटोनॉमी पर सवाल उठा रहे थे.
सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद चल रहे थे. लेकिन डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भाषण में ये कहकर हड़कंप मचा दिया कि रिजर्व बैंक के कामकाज में दखल देने और ऑटोनॉमी में छेड़छाड़ की कोशिश के नतीजे बहुत नुकसानदेह होंगे.
रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल को मोदी सरकार ने अगस्त 2016 में नियुक्त किया था. उर्जित के कार्यकाल में ही नवंबर 2016 में ही पीएम मोदी ने नोटबंदी का फैसला किया था. हालांकि बताया यही जा रहा है कि उर्जित को आखिरी मौके पर ही इसकी जानकारी दी गई.
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने उर्जित पटेल ने बहुत बड़ा कदम उठाकर बता दिया है कि RBI की ऑटोनॉमी से कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
रघुराम राजन और उर्जित पटेल में एक फर्क रहा कि राजन अपना कार्यकाल पूरा करके गए जबकि उर्जित को करीब 1 साल पहले जाना पड़ा. लेकिन राजन के भी मोदी सरकार से रिश्ते नरम गरम ही रहे. उर्जित कम बोलने वाले गवर्नर थे जबकि राजन बोलने में संकोच नहीं करते थे. लेकिन जब रिजर्व बैंक के अधिकारों की बात आई तो विनम्र उर्जित ने भी कड़े तेवर दिखाने में देरी नहीं दिखाई.
RBI और सरकार में मतभेदों की लंबी लिस्ट है. सरकार और सेंट्रल बैंक के बीच कई बातों में नजरिए का फर्क होने में बड़ी बात नहीं. लेकिन अब तक यही परंपरा थी कि फाइनेंशियल मामलों में सरकारें हमेशा सेंट्रल बैंक के फैसले का सम्मान करती रही हैं और अंतिम फैसला रिजर्व बैंक ही करता रहा है.
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने जब पंजाब नेशनल बैंक में 20 हजार करोड़ का घोटाला किया, तो सरकार ने कहा कि रिजर्व बैंक की निगरानी में चूक हो गई. रिजर्व बैंक ने पलटवार किया कि पीएसयू बैंकों की मालिक तो सरकार है. इसलिए उसकी जिम्मेदारी बनती है.
एनपीए की वजह से रिजर्व बैंक ने 11 बैंकों पर नए लोन देने पर पाबंदी लगा दी और निगरानी भी कड़ी कर दी. इस आदेश से घबराए बैंकर्स सरकार के दरवाजे पर पहुंच गए, सरकार ने रिजर्व बैंक से नरमी बरतने को कहा, पर वो टस से मस नहीं हुआ. आखिरकार रिजर्व बैंक बोर्ड बैठक में ये मुद्दा उठा और ये मुद्दा 14 दिसंबर की बैठक में भी एजेंडे में था.
सरकार यह भी चाहती थी कि वह उसे मिलने वाला डिविडेंड बढ़ाया जाए. सरकार ने हालांकि इससे इनकार किया है पर ये बात सामने आई है कि वो आरबीआई के भंडार से तीन लाख करोड़ डिविडेंड चाहती थी लेकिन रिजर्व बैंक इसके लिए तैयार नहीं था. मामला बोर्ड में पहुंचा और अगली बैठक में इस पर चर्चा होनी थी.
IL&FS के डिफॉल्ट के बाद नकदी की दिक्कत हुई, तो सरकार ने रिजर्व बैंक से इस मामले पर नियम नरम करने को कहा. लेकिन आरबीआई ने इसे करीब-करीब अनदेखा कर दिया. हालांकि बाद में बैंकों को एनबीएफसी में लोन देने के लिए 5 परसेंट छूट दी गई, पर बात बनी नहीं. इसके अलावा नचिकेत मोर को कार्यकाल पूरा करने से पहले हटाने से भी गवर्नर उर्जित पटेल खफा हो गए.
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