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लोग बैंकों में पैसा जमा करते हैं ताकि उनकी पूंजी बढ़े. बैंक उन्हें ब्याज जो देत हैं. लेकिन वक्त जमा पूंजी बढ़ नहीं घट रही है. आपके पैसे की इस उल्टी चाल के पीछे भी मौजूदा दौर का सबसे बड़ा विलेन कोरोना है.
मार्च से मई महीने के बीच में रिजर्व बैंक ने करोना वायरस संकट के बाद डिमांड को बूस्ट देने के लिए कर्ज सस्ता करने के लिए बैंचमार्क रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट मतलब 1.15% की कटौती की है. रिजर्व बैंक के इसी कदम का नतीजा हुआ कि जब बैंकों को कर्ज सस्ता देने के लिए कहा गया तो उन्हें बैंकों ने डिपॉजिट पर वो जो ब्याज ग्राहकों को देते थे उसे भी घटाया.
लेकिन अब स्थिति ऐसी बन गई है कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते सप्लाई साइड की दिक्कतों और लगातार बढ़ते पेट्रोल डीजल के दामों की वजह से रिटेल महंगाई 6% से ऊपर पहुंच गई है.
जब डिपॉजिट रेट से महंगाई दर को घटा देते हैं तो जो रेट बचता है उसे रियल इंटरेस्ट रेट कहते हैं. मतलब यही वो असली रेट है जो बैंक में आपको पैसे जमा करने पर मिल रहा है. वक्त के साथ-साथ महंगाई बढ़ती है और पैसे की वैल्यू कम होती जाती है. इसे ऐसे समझिए कि 10 साल पहले 100 रुपये से 10 किलो आलू आ जाते होंगे लेकिन अब 5 किलो ही आएंगे. मतलब की करेंसी की वैल्यू घटी है.
इंडसइंड बैंक के चीफ इकनॉमिस्ट गौरव कपूर ने इकनॉमिक टाइम्स अखबार को बताया कि -
कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस साल के आखिर तक रिटेल महंगाई 4% के नीचे आ सकती है. लेकिन ये भी उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक आने वाले दिनों में रेपो रेट और घटा सकता है जिसकी वजह से बैंकों को अपना डिपॉजिट रेट और घटाना पड़ेगा.
सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि अगर रियल इंटरेस्ट रेट ऐसे ही नेगेटिव रहता है तो सेविंग कल्चर पर बुरा असर पडे़गा और इससे लोग बैंकों में पैसा रखना कम कर सकते हैं और दूसरे विकल्पों गोल्ड, शेयर मार्केट की तरफ रुख कर सकते हैं. सरकार को चाहिए कि आम मिडिल क्लास की सेविंग के बदले इतना तो ब्याज दे ही कि रकम की वैल्यू न घटे.
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