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कोरोना वायरस के संकट के बाद करीब 2 महीने लॉकडाउन रहा. इसके बाद इकनॉमी की बुरी हालत को देखते हुए सरकार ने 1 जून से अनलॉक-1 की प्रक्रिया शुरू की. अब इस अनलॉक का असर दिखना शुरू हो गया है. जीएसटी कलेक्शन डाटा, माल की ढुलाई, मैन्यूफैक्चरिंग PMI, मनरेगा के तहत मांग में कमी जैसे इकनॉमिक इंडिकेटर्स को देखने से पता लगता है कि इकनॉमी की गाड़ी फिर से पटरी पर लौट रही है.
जनवरी में कोरोना वायरस ने दस्तक नहीं दी थी. जनवरी में जीएसटी कलेक्शन 1,10,000 करोड़ रुपये था. लेकिन मार्च के आखिर में देशव्यापी लॉकडाउन लगा था और एक झटके में सारा कारोबार रुक गया था. इसके बाद अप्रैल में जीएसटी कलेक्शन गिरकर 32,294 पर आ गया. मई में इसमें थोड़ी रिकवरी देखने को मिली और कुल 62,009 करोड़ रुपये जीएसटी कलेक्शन हुआ. लेकिन अब जून महीने में ये कलेक्शन बढ़कर 90,917 करोड़ रुपये हो गया है. जीएसटी कलेक्शन लगातार बढ़ रहा है. इसका मतलब ये है कि कारोबारियों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है. उनकी ब्रिकी बढ़ रही है.
मैन्यूफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स (PMI) डाटा किसी भी देश में इकनॉमी में मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विसेज के डायरेक्शन को बताता है. PMI 1 से 100 नंबर के बीच में होता है. अगर PMI 50 से ज्यादा है तो इसका मतलब है इकनॉमी बढ़ रही है. वहीं अगर ये 50 से कम है तो इसका मलतब है कि इकनॉमी कमजोर हो रही है. अगर ये नंबर 50 है तो इसका मतलब है कि इकनॉमी में कोई बदलाव नहीं है.
जनवरी 2020 में PMI 55.3 था, लेकिन अप्रैल में ये घटकर 27.4 पर आ गया और मई में ये 30.8 रहा. लेकिन अब जून के महीने में PMI 47.2 के स्तरों पर पहुंच गया है. इकनॉमी के लिए ये अच्छा संकेत है कि हम सुधार की तरफ बढ़ रह हैं.
देश में सारी बड़ी इंडस्ट्री के लिए धातुओं, कोयला, पेट्रोलियम जैसे माल की ज्यादातर ढुलाई रेलवे के जरिए होती है. अगर रेलवे के माल ढुलाई में बढ़ोतरी होती है इसका मलतब है कि देश में इकनॉमिक एक्टिविटी बढ़ रही है. इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक मई में रेलवे से 82 मिलियन टन माल की ढुलाई हुई थी वहीं जून में 93.27 मिलियन टन की माल ढुलाई देखने को मिली है.
इसके अलावा इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक नेशनल हाइवे पर जून महीने का टोल कलेक्शन एवरेज का 80% रहा है, जबकि ये मई में 60% था.
CMIE के मुताबिक जून में बेरोजगारी दर गिरकर 11.1% पर आ गई है. वहीं ये लॉकडाउन के महीने अप्रैल और मई में अपने उच्चतम स्तरों 23% पर पहुंच गई थी. तब करीब 12 करोड़ लोगों को अपना रोजगार गंवाना पड़ा था.
मनरेगा के तहत रोजगार पाने वालों की तादाद में भी करीब 7.3% की कमी आई है. मई में ये 3.3 करोड़ लोगों ने इसका फायदा उठाया था वहीं जून में ये संख्या कम होकर 3.06 करोड़ हो गई है.
जून महीने की शुरुआत जो ऑटो कंपनियों के सेल्स के आंकड़ें आए हैं वो राहत देते हैं. मई के मुकाबले जून महीने में व्हीकल्स की बिक्री बढ़ी है. खासतौर से ग्रामीण इलाकों में डिमांड में तेजी आई है. देश की सबसे बड़ी ऑटो कंपनी मारुति सुजुकी के कुल बिक्री के आकड़े देखें तो जून में कंपनी ने 52,300 यूनिट व्हीकल की बिक्री की वहीं मई में सिर्फ 18,539 यूनिट व्हीकल बिके थे. लेकिन पिछले साल की तुलना में जून की बिक्री 53% कम ही है.
देश में सामान की एक जगह से दूसरी जगह ढुलाई करने के लिए ई-वे बिल बनवाना होता है. जनवरी में 56.9 मिलियन ई-वे बिल जारी हुए थे. लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद सामानों का ट्रांसपोर्ट सीमित हो गया इसलिए अप्रैल में 8.6, मई में 25.4 मिलियन ई-वे बिल जारी हुए थे. लेकिन अब जून में 39.9 मिलियन ई-वे बिल जारी किए गए हैं.
क्रिसिल के इकनॉमिस्ट डीके जोशी बताते हैं कि इकनॉमी में ये जो सुधार हुआ है वो उम्मीद के मुताबिक ही है. 'जब लॉकडाउन लगाया गया था तो एक झटके में खब खत्म हो गया था लेकिन अब स्थिति में सुधार दिख रहा है. हमें इकनॉमी के मोर्चे पर राहत के संकेत दिख रहे हैं. लेकिन कोरोना वायरस के आंकड़े अगर लगातार बढ़ते रहते हैं तो फिर इसका असर इकनॉमी पर भी पड़ेगा'
फिक्की की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया है कि इकनॉमी को तैयारी के साथ खोलने का हम स्वागत करते हैं.
ICRA की प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट अदिति नायर का मानना है कि 'अब कुछ राज्यों या शहरों में स्थानीय लॉकडाउन लगाया गया है इससे फाइनेंशियल ईयर 2021 की दूसरी छमाही में जो रिकवरी का अनुमान लगाया गया है उसमें देरी हो सकती है.'
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