advertisement
मोदी सरकार विवादित रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून (Retrospective tax law) को खत्म करने जा रही है. इस कानून को खत्म करने के लिए संसद में टैक्सेशन लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2021 पेश किया गया है. इस बिल के पास होने के बाद बैक डेट से टैक्स लगाने वाला रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून खत्म हो जाएगा.
इस कानून को खत्म करने से सरकार को कम से कम 12,000 करोड़ रुपये का रिफंड देना होगा. यह रकम सिर्फ दो कंपनी वोडाफोन ग्रुप पीएलसी और केयर्न एनर्जी पीएलसी से जुड़े है. बाकी 15 कंपनियों की भी देनदारी है लेकिन कितनी मालूम नहीं.
दरअसल, इस कानून के जरिए कंपनियों से पिछली तारीख से टैक्स वसूलने का प्रावधान था. साल 2012 में प्रणव मुखर्जी देश के वित्त मंत्री थे. उन्होंने फाइनेंस ऐक्ट में बदलाव किया था. जिसकी वजह से वोडाफोन जैसी कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. बाद में एनडीए सरकार ने भी ये टैक्स नीति जारी रखी. साथ ही इस कानून की वजह से देश में निवेश को धक्का लगने का डर पैदा हुआ. इस कानून के तहत भारत सरकार ने ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी (Cairn Energy) और वोडाफोन (Vodafone) को टैक्स डिमांड भेजा था. दोनों कंपनियों ने रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के जरिए करोड़ों रुपए भी चुकाए थे.
बाद में केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार के रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के भुगतान से इंकार कर दिया. जिस पर भारत सरकार ने कंपनी के शेयर फ्रीज कर दिए.
केयर्न एनर्जी ने इसके खिलाफ फ्रांस में भी केस किया. जिस पर अभी हाल ही में फ्रांस की अदालत ने आदेश देते हुए भारत सरकार की फ्रांस में मौजूद 20 संपत्तियों को फ्रीज करने का आदेश दिया था. इससे भारत की साख को नुकसान पहुंचा था.
यही नहीं वोडाफोन भी भारी नुकसान में है. यहां तक कि वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (VIL) के कुमार मंगलम बिड़ला ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो कंपनी को बचाने के लिए अपनी 27 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को तैयार हैं. एक तरह से उन्होंने SOS कॉल किया.
एक बार जब टैक्सेशन लॉ (अमेंडमेंट) बिल, 2021 पास हो जाता है तो एक सरकारी अनुमान के मुताबिक सरकार को 12,100 करोड़ रुपये देने होंगे. हालांकि इस बिल में सरकार ने कुछ शर्ते भी रखी हैं.
हालांकि इन शर्तों को मानना या न मानना वोडाफोन और केयर्न एनर्जी पर निर्भर करता है. ऐसे में इस कानून में बदलाव को आधा-अधूरा सुधार कहा जा सकता है. कंपनियां कह सकती हैं कि हम क्यों ब्याज छोड़ें? सरकार ने जो शर्तें रखी हैं उसे कंपनियों ने स्वीकार नहीं किया तो विवाद खत्म नहीं होगा और सरकार की और किरकिरी हो सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined