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केंद्र की मोदी सरकार ने आखिरकार उस टैक्स कानून को हटाने का फैसला ले लिया, जिसे लेकर पिछले करीब 9 सालों से दुनियाभर में सरकार की आलोचना हो रही थी. Retrospective टैक्स कानून को हटाने के लिए लोकसभा से संशोधन विधेयक पास हो चुका है. लेकिन आखिर सरकार को इस कानून को हटाने में ये 8 या 9 साल क्यों लग गए? इस पूरे मामले को समझने के लिए क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने ध्रुवा एडवाइजर्स के फाउंडर दिनेश कानाबार से बातचीत की.
सरकार को Retrospective टैक्स कानून हटाने में इतना वक्त क्यों लगा और अब किन चीजों को ध्यान में रखते हुए इसे खत्म किया जा रहा है, इस सवाल के जवाब में दिनेश कानाबार ने कहा,
इस मामले पर कई तरह के सवाल हैं, लेकिन एक सवाल ये है कि मौजूदा सरकार को ऐसा करने में इतना वक्त क्यों लग गया?
दरअसल सरकार अचानक कानून बदलने में डर रही थी. क्योंकि सरकार पर सूट बूट की सरकार और इसी तरह के कई आरोप लगते आए हैं. सरकार ने सोचा कि अगर पिछली सरकार ने ये कानून बनाया है तो इसे चलने देते हैं. लेकिन इसी दौरान वोडाफोन और केयर्न एनर्जी ने इंटरनेशनल कोर्ट में केस फाइल किए. जहां उनके पक्ष में फैसला सुनाया गया. लेकिन आर्बिट्रेशन कोर्ट हार के बाद भी अपील करना और अब ये कानून में बदलाव समझ से परे है. दरअसल सरकार इस मुश्किल में फंस गई थी कि अगर वो इसे खत्म नहीं करते हैं तो केयर्न के केस में सरकार का नाम खराब होगा, वहीं दूसरी तरफ अगर वो संशोधन करती है तो बड़ी कंपनियों के साथ मिलीभगत के आरोप लगेंगे.
क्या भारतीय संपत्तियों की जब्ती की बदनामी के डर से सरकार ने ये टैक्स कानून बदला? क्या सरकार को इससे लगा कि अब हमें इसे करना ही होगा?
बिल्कुल सरकार को ये जरूर लगा होगा. क्योंकि वोडाफोन ने सिंगापुर कोर्ट में केस दायर किया, इसके अलावा केयर्न ने भी आर्बिट्रेशन फाइल किया. लेकिन दो चीजे हैं, पहली कि इस सरकार ने टैक्स टेररिज्म को एड्रेस नहीं किया. दूसरा निवेश रुकने जैसे मामले भी थे. जब भारत में कंपनियां चीन के बाद अपने मौके तलाश रही हैं. लेकिन सबसे बड़ा कारण संपत्तियों के बिकने से होने वाली बदनामी का ही था.
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