सरकार ने अपनी गलती मान ली है. 2012 में यूपीए सरकार के दौरान आए रेट्रो टैक्स कानून (Retrospective tax) में बदलाव को राजी हो गई है. लेकिन टैक्स कानून में ये सुधार आधा अधूरा है इसलिए बात बिगड़ने का डर बना हुआ है.
2012 में तात्कालिक वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा लाए गए इस टैक्स लॉ के अनुसार अगर कोई बाहरी कंपनी अप्रत्यक्ष रूप से भारत में मौजूद अपना कोई ऐसेट बेचती है तो सरकार 50 साल (1962) तक पीछे जाकर उस लेनदेन पर टैक्स लगा सकती थी.
इसपर विशेषज्ञों का मत था कि यह ठीक नहीं है. उनके अनुसार भले ही इसके पीछे सरकार की सोच सही हो लेकिन उसे आगे के लेनदेन पर लागू किया जाना चाहिए, रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के रूप में नहीं.
लेकिन सरकार ने इसे 1962 से ही लागू किया. इसका कारण था कि सरकार वोडाफोन विवाद में सुप्रीम कोर्ट में केस हार गई थी और इस पर सरकार की प्रतिक्रिया थी यह रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लॉ.
सरकार बदलने से भी रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पर नहीं बदला स्टैंड
2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद सबको उम्मीद थी कि तात्कालिक वित्त मंत्री अरुण जेटली इस रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स लॉ को वापस ले लेंगे. इसका सबसे बड़ा कारण था कि अरुण जेटली 2012 में विपक्ष में रहते हुए इस कानून के धुर विरोधी थे.
लेकिन सबको आश्चर्य डालते हुए उन्होंने ना सिर्फ इसे बनाए रखा बल्कि 2015 में केयर्न एनर्जी पर भारी टैक्स लाद दिया. इस पर जब केयर्न ने विरोध किया तो वेदांता में मौजूद उसके 10% शेयर को बेच दिया गया ,जबकि मामला अभी कोर्ट में ही था.
जवाब में केयर्न एनर्जी और वोडाफोन दोनों ने इंटरनेशनल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह साबित करने में सफल रहे कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है. अब सरकार रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पर स्टैंड बदलते हुए केयर्न को उसका पैसा वापस करने पर राजी हुई है.
अब भी अधूरा है यह सुधार
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पर स्टैंड बदलते हुए उसे वापस लेने के निर्णय के बावजूद सरकार की यह कवायद अधूरी है. इसका कारण है कि सरकार इन कंपनियों से वसूले गये टैक्स को वापस करने पर राजी हुई है लेकिन उस पर ब्याज,लागत और क्षति देने पर नहीं.
यह सुधार इसलिए अधूरा है क्योंकि सरकार को कम से कम उस वसूले गए रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पर ब्याज देना चाहिए था. सरकार किसी भारतीय से टैक्स केस हार जाती है तो सरकार पैसे के साथ-साथ ब्याज भी देती है.फिर इन कंपनियों को ब्याज क्यों नहीं दिया गया.
अगर सरकार ने टैक्स के साथ-साथ ब्याज दे दिया होता तो यह मामला पूरी तरह से खत्म हो जाता. अभी यह कहना आसान नहीं है कि विवाद पूरी तरह से खत्म हो गया है क्योंकि सरकार के इस कदम पर केयर्न की प्रतिक्रिया काफी अस्पष्ट है. कंपनी ने कहा है कि हम यह नोट करते हैं कि सरकार ने टैक्स बदला है और हम उस पर विचार करेंगे.
बैकचैनल में सरकार और केयर्न किसी समझौते पर नहीं पहुंचते हैं तो इस कदम के बावजूद भी हमें वर्तमान में फायदा नहीं होगा और मामला बाहरी अदालतों में चलता रहेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)