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टाटा vs मिस्त्री : 70 साल पुरानी दोस्ती टूटी, इस तरह हुई थी शुरू

दोनों ग्रुप के बीच कई बार अनबन हुई, कानूनी लड़ाई भी चली, मगर कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आई जो अब आ चुकी है

अक्षय प्रताप सिंह
बिजनेस
Updated:
SP ग्रुप ने कहा है कि उसका टाटा संस से अलग होने का समय आ गया है
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SP ग्रुप ने कहा है कि उसका टाटा संस से अलग होने का समय आ गया है
Photo: PTI

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पारसी समुदाय को 70 साल पुरानी जिस दोस्ती पर नाज था, वो अब टूटने के क्लाइमेक्स वाले सीन में है. भारत के दो बड़े बिजनेस ग्रुप, जिन्होंने दशकों तक साथ-साथ कारोबार किया, अब अपनी राहें जुदा करने की कगार पर पहुंच गए हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं टाटा ग्रुप और शापूरजी पलोनजी (SP) ग्रुप की. इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो इन दोनों ग्रुप के बीच कई बार अनबन हुई, कानूनी लड़ाई भी चली, मगर कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आई जो अब आ चुकी है.

दरअसल अब मिस्त्री परिवार के SP ग्रुप ने कहा है कि उसका टाटा संस से अलग होने का समय और 70 साल पुराने संबंध खत्म करने का वक्त आ गया है. बता दें कि टाटा संस समूचे टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है.

टाटा संस से कब जुड़ा था मिस्त्री परिवार?

टाटा संस में मिस्त्री परिवार की एंट्री को लेकर कई कहानियां सामने आ चुकी हैं. इनमें से कुछ कहानियां उन जानकारियों से अलग हैं जो SP ग्रुप के एक लेटर से सामने आईं. चलिए, एक-एक कर हर कहानी पर नजर दौड़ाते हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में HDFC के चेयरमैन दीपक पारेख के हवाले से कहा गया है, ''पलोनजी (मिस्त्री) के पिता (शापूरजी पलोनजी मिस्त्री) ने टाटा मोटर्स और टाटा स्टील के लिए फैक्ट्रियों का निर्माण किया था, टाटा के पास उनका भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने (टाटा ने) इसके बदले शेयर दे दिए थे.''

मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट में इस मामले पर अलग-अलग वक्त के दो वर्जन का जिक्र किया गया है.

  • पहला यह है कि जेआरडी टाटा के भाई-बहनों ने टाटा संस में अपने शेयरों को मिस्त्री परिवार को बेच दिया था, यह 60-70 के दशक में हुआ था.

  • दूसरे वर्जन में एक धनी वकील और जमींदार फ्रेमरोज एडुल्जी दिनशॉ का भी जिक्र है, जो 1920 के दशक में जाना-माना नाम थे. टाटा ने संभावित वित्तीय दबाव के चलते दिनशॉ से संपर्क किया था. दिनशॉ ने टाटा को 2 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था, जो बाद में टाटा संस में 12.5 की एक्विटी में बदल गया. वकील के निधन के बाद, उनके वंशजों ने साल 1936 में टाटा संस की ये हिस्सेदारी शापूरजी को बेच दी.

रिपोर्ट में आगे इन दोनों वर्जन को जोड़ दिया गया है और कहा गया है कि 12.5 फीसदी की यह हिस्सेदारी 17 फीसदी से ज्यादा हो गई, जब 1970 के दशक में जेआरडी टाटा के भाई-बहनों ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी. इसके बाद 1996 में यह 18 फीसदी से ज्यादा हो गई.

टाटा संस ने इस बारे में क्या बताया है?

साल 2018 में टाटा संस ने NCLT को बताया कि मिस्त्री परिवार ने 1965 तक हिस्सेदारी नहीं खरीदी थी. इस दौरान NCLT मिस्त्री परिवार की दो कंपनियों की तरफ से टाटा संस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

टाटा संस ने जो जानकारी दी वो 3 सितंबर 2003 को शापूरजी पलोनजी एंड कंपनी लिमिटेड की ओर से बिजनेसवर्ल्ड पत्रिका के सीनियर एसोसिएट एडिटर को भेजे गए लेटर से जुड़ी हुई थी.

लेटर के मुताबिक, मिस्त्री परिवार ने टाटा संस में ज्यादातर हिस्सेदारी जेआरडी टाटा के भाई-बहनों से खरीदी थी. NCLT को सौंपे गए दस्तावेजी सबूत के मुताबिक, जून 1965 में, शापूरजी ग्रुप ने जेआरडी टाटा के अनुरोध पर उनकी बहन लेडी पेटिट (सिला) से टाटा संस के कुछ शेयर खरीदे थे.

साल 1970 में, मिस्त्री परिवार ने जेआरडी टाटा की दूसरी बहन रोडबेह से शेयर खरीदे. 1974 में जेआरडी टाटा के भाई दरब आरडी टाटा ने टाटा संस में अपने शेयर बेचने के लिए मिस्त्री परिवार से संपर्क किया.

70 के दशक के आखिर तक मिस्त्री परिवार टाटा संस में करीब 17.5 फीसदी शेयर खरीद चुका था. मार्च 2016 तक यह आंकड़ा करीब 18.37 फीसदी तक पहुंच गया.

शापूरजी ग्रुप के लेटर में बताया गया कि जेआरडी टाटा आखिरी लेनदेन से खुश नहीं थे क्योंकि टाटा संस में मिस्त्री परिवार की हिस्सेदारी बढ़ गई थी, लेकिन मामला सुलझ गया था.

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साइरस मिस्त्री को टाटा में मिली अहम जिम्मेदारी और फिर हुई कानूनी जंग

दिसंबर 2012 में SP ग्रुप के साइरस मिस्त्री (पलोनजी मिस्त्री के बेटे) टाटा संस के कार्यकारी चैयरमैन नियुक्त हुए थे और अक्टूबर, 2016 में उन्हें इस पद से हटा दिया गया था. साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद से ही, SP ग्रुप और टाटा के बीच कानूनी जंग जारी है.

हालांकि, नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) ने 2019 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के कार्यकारी चेयरमैन के रूप में बहाल कर दिया था. इसके बाद टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. रतन टाटा ने आरोप लगाया था कि टाटा संस के चेयरमैन बनने के बाद भी मिस्त्री खुद को परिवार के व्यवसाय से अलग नहीं करना चाहते थे. अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति के लिए मिस्त्री के लिए उनके पारिवारिक व्यवसाय SP ग्रुप से अलग होना पूर्व शर्त थी. जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने मिस्त्री को बहाल करने के NCLT के इस आदेश पर रोक लगा दी थी.

मौजूदा मामला क्या है?

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने SP ग्रुप और साइरस मिस्त्री को 28 अक्टूबर तक टाटा संस के शेयर गिरवीं रखने या ट्रांससफर करने से रोक दिया. इस मामले पर SP ग्रुप ने कहा कि टाटा संस ने फंड व्यवस्था के लिए इन शेयरों को गिरवीं रखने की उसकी योजना में बाधा डालने के इरादे से शीर्ष अदालत में याचिका दायर की और यह माइनॉरिटी शेयर होल्डर के अधिकारों का हनन है.
दरअसल, SP ग्रुप की योजना अलग-अलग स्रोतों से 11,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था करने की है और उसने टाटा संस में अपने 18.37 फीसदी शेयरों के एक हिस्से के एवज में कनाडा के एक निवेशक के साथ 3,750 करोड़ रुपये के करार पर हस्ताक्षर किए थे.

SP ग्रुप को लेकर अब आगे क्या?

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, टाटा ग्रुप की 17 लिस्टेड एंटिटीज का मार्केट कैपिटलाइजेशन 12.96 लाख करोड़ रुपये है, ऐसे में टाटा ग्रुप कंपनियों की लिस्टेड एंटिटीज में SP ग्रुप की होल्डिंग की वैल्यू करीब 1.48 लाख करोड़ रुपये की होगी. चूंकि टाटा संस, टाटा ग्रुप की अनलिस्टेड एंटिटीज की होल्डिंग कंपनी भी है, इसलिए SP ग्रुप की इस वैल्यू में भी हिस्सेदारी होगी, जिसे अलग से सुलझाना होगा. इस बीच, टाटा ग्रुप ने टाटा संस में SP ग्रुप की हिस्सेदारी को खरीदने की इच्छा भी जाहिर की है.

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Published: 23 Sep 2020,10:30 PM IST

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