advertisement
सत्ता पक्ष और विपक्ष में बहस तो होती ही रहती है लेकिन इस बार एक ही परिवार के दो अहम लोग भिड़ गए. खुलेआम. एक ने पूछा चीन से कंपनियां भाग रही हैं लेकिन भारत क्यों नहीं आ रहीं? दूसरा बोला-आप पुरानी रिपोर्ट का हवाला दे रहे हैं. बात सही थी. लेकिन सवाल ये है कि कोरोना संकट के समय चीन से भाग रहीं कंपनियां भारत आएं, इसके लिए हमने कुछ किया है क्या?
ट्विटर पर ये सवाल दागने वाले थे RSS की पत्रिका ऑर्गेनाइजर के संपादक रह चुके शेषाद्री चारी.
इस पर जवाब देते हुए बीजेपी के नेशनल IT प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि आप जिस रिपोर्ट का जिक्र कर रहे हैं वो 6 महीने पुरानी है. कुछ नया लाइए'
दरअसल पिछले साल जब अमेरिका और चीन में ट्रेड वार बढ़ा तो चीन से कई कंपनियां भागने को मजबूर हुईं. लेकिन इन्हें भारत अपनी ओर आकर्षित करने में नाकाम रहा. दिक्कत ये है कि जिन कारणों से कंपनियां वियतनाम आदि दूसरे देश गईं, वो कारण आज भी बने हुए हैं.
अगर कंपनी का प्रोजेक्ट पास भी हो जाता है तो कंपनी को भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों से निपटना पड़ेगा, सुस्त और भ्रष्ट नौकरशाही का सामना करना पड़ेगा, स्थानीय माफिया, NGO, ट्रेड यूनियन, स्थानीय सरकार जैसी कई परतों से होकर गुजरना होगा. इसलिए अगर कोरोना संकट के बाद अगर कंपनी को अपने देश बुलाना है तो कारोबार को व्यवहारिक तौर पर आसान बनाना होगा.
इस बारे में हाल ही में क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने टीमलीज के चेयरपर्सन, और आरबीआई, सीएजी के बोर्ड मेंबर मनीष सभरवाल से बात की थी. मनीष सभरवाल ने कहा था कि 'चीन से बहुत सारी कंपनियों का पिछले सालों में मोहभंग हुआ है, अब वो दूसरी जगहों पर जाएंगी. इसके कारण चीन को जैसा मौका 1978 में मिला था, ठीक वैसा ही मौका अब भारत के पास है. इसका फायदा भारत को मिल सकता है, लेकिन शर्त ये है कि तुरंत नीतिगत बदलाव करने होंगे. नहीं तो बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश मौका लूट लेंगे.'
अगर मोदी सरकार को ये मौका लूटना है तो लैंड, लेबर, कैपिटल और ज्यूडिशियल रिफॉर्म्स पर फोकस करना होगा. इनको आसान बनाना होगा. सभरवाल ने उम्मीद जताई कि सरकार जरूर ये काम करेगी. लेकिन उनके जवाब में एक तथ्य भी छिपा था. सरकार अभी तक वो जरूरी सुधार नहीं कर पाई है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)