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देश तेजी से स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) की दिशा में बदलाव की ओर जा रहा है. उसके इन प्रयासों में सोलर एनर्जी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. सोलर एनर्जी (Solar Energy) से सिर्फ पर्यावरण को ही सुरक्षा नहीं मिलती है बल्कि ये रोजगार के नए-नए अवसर पैदा करती है और आर्थिक विकास (Economic Development) को भी बढ़ावा देती है.
सरकार ने आने वाले पांच सालों में 250 गिगा वॉट (GW) नवीकरणीय ऊर्जा जोड़ने और 2030 तक 500 GW स्वच्छ ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है.
ऊर्जा की दिशा में बदलाव को बढ़ावा देने के लिए सरकार जहां समय-समय पर नीतियों में बदलाव करती रही है, वहीं इस इंडस्ट्री से जुड़ी दिग्गज कंपनियां लगातार अपने कदम आगे बढ़ा रही हैं. वो घरेलू उत्पादन बढ़ाने और देश को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित हुई हैं. ये कंपनियां सरकारी नीतियों का फायदा उठा रही है और तकनीकी इनोवेशन को अपना रही हैं.
सोलर एनर्जी अब काफी लोकप्रिय हो चुकी है. यहां तक कि आबादी का एक हिस्सा भी अब इसके फायदों को थोड़ा-बहुत जानने लगा है. दरअसल सोलर एनर्जी को नवीकरणीय ऊर्जा का के लिए सबसे सही स्रोत माना जाता है. लेकिन इसके इंस्टॉलेशन और बड़ी आबादी के इसे अपनाने की राह में कई रुकावटें हैं.
वहीं सोलर इंस्टॉलेशन के लिए फाइनेंस के विकल्प तक पहुंचना भी आसान नहीं है, खास तौर पर उन लोगों या संगठनों के लिए जिनकी आमदनी बेहद कम है या सीमित है. किफायती दरों पर लोन या लीज के विकल्पों की कमी के कारण बहुत से लोगों के लिए सोलर एनर्जी में पहले निवेश कर पाना मुश्किल हो जाता है.
सोलर एनर्जी को मौजूदा विद्युत ग्रिडों के साथ जोड़ना भी एक चुनौती है. कुछ मामलों में तो, पुराना ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर सोलर एनर्जी के प्रवाह को संभालने के लायक तक नहीं होता है. इसकी वजह से तकनीकी और लॉजिस्टिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
वहीं अगर हम सोलर एनर्जी को स्टोर करने के लिए ग्रिड के बुनियादी ढांचे को अपग्रेड या उसका विस्तार करना चाहें, तो यह काफी महंगी और समय लेने वाली प्रक्रिया साबित हो सकती है.
देखा जाए तो, सोलर एनर्जी एक इंटरमिटेंट ऊर्जा स्रोत है, जो सूरज की रोशनी की उपलब्धता पर निर्भर है. कुशल और लागत प्रभावी ऊर्जा भंडारण संसाधनों की कमी के चलते अतिरिक्त ऊर्जा को स्टोर करने की क्षमता पर असर पड़ता है. इसकी वजह से बादलों से ढके दिनों या फिर रात के समय बिजली की आपूर्ति प्रभावित होती है. तो वहीं कुछ मामलों में, सोलर एनर्जी पर ज्यादा निर्भर होने पर ग्रिड की विश्वसनीयता और स्थिरता के बारे में चिंता भी इसकी तरफ बढ़ते कदमों को रोक देती है.
वैसे तो इन परेशानियों कम करने और सोलर एनर्जी को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने के प्रयास चल रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकारें सोलर इंस्टॉलेशन के लिए काफी छूट दे रही है. सरकार ने प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए भी कई कदम उठाए हैं.
इसमें कागजी कार्रवाई को कम करना
अप्रूवल में तेजी लाना
इंस्टॉलर और घर के मालिकों के लिए साफ-साफ दिशा निर्देश देना शामिल है.
सरकार की ओर से शुरू की गई प्रमुख पहलों में से एक में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन (JNNSM) है, जिसे 2010 में लॉन्च किया गया था. इस कार्यक्रम का उद्देश्य सोलर एनर्जी को बढ़ावा देना और इसे ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के साथ मुकाबले में बराबर लाकर खड़ा करना है. सोलर परियोजनाओं में निवेश को आकर्षित करने के लिए सब्सिडी, करों में छूट और वायबिलिटी गैप फंडिंग जैसे कई तरह के प्रोत्साहन दिए गए हैं.
नेट मीटरिंग नीतियों पर भी काफी काम किया गया है. इसके जरिए सोलर पैनल मालिक ग्रिड को अतिरिक्त बिजली बेच सकते हैं. नेट मीटरिंग का काम यह देखना है कि सोलर प्रणाली के मालिकों को उनके द्वारा उत्पादित बिजली के लिए सही दाम मिल रहे हैं या नहीं. इससे सोलर एनर्जी की इंस्टालेशन की लागत काफी कम हो जाती है.
सोलर एनर्जी के फायदों के बारे में बताने के लिए लोगों को शिक्षित करना होगा और उनके बीच जागरूकता बढ़ानी होगी. इसमें लागत बचत, पर्यावरण को नुकसान से बचाने और लंबे समय में सोलर एनर्जी से मिलने वाले फायदों के बारे में लोगों तक जानकारी पहुंचाना शामिल है. शिक्षा अभियान सोलर एनर्जी के बारे में मिथकों और गलत धारणाओं को दूर करने और इसे ज्यादा से ज्यादा अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं. सोलर इंडस्ट्री के लिए एक कुशल कार्यबल तैयार करने के लिए ट्रेनिंग और वर्कफोर्स डेवलपमेंट इनीशिएटिव एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. इससे हमारे पास सोलर इंस्टॉलेशन की बढ़ती मांग को संभालने के लिए बेहतर पेशेवर होंगे.
(यह लेख सर्वोकॉन में सोलर डीविजन के डायरेक्टर आसिफ खान ने लिखा है.)
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