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वीडियो| डावोस का D नहीं पूरी ABCD बस कुछ मिनट में समझ लीजिए

डावोस में इस बार भारत का डंका बजेगा या अमेरिका का?

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संजय पुगलिया और मेनका दोशी से समझिए WEF डावोस के मायने
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संजय पुगलिया और मेनका दोशी से समझिए WEF डावोस के मायने
(फोटो: क्विंट)

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डावोस में हर साल वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में लगता है दिग्गजों का मेला. राष्ट्र प्रमुख, इकनॉमिस्ट, कारोबारी, एनजीओ प्रमख जैसी कई हस्तियां आपको डावोस के विश्व मंच पर नजर आ जाएंगी. भारत के नजरिए से इस बार डावोस बेहद खास है. पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की बैठक में शिरकत करने वाले हैं. 23 से 26 जनवरी तक स्विट्जरलैंड के डावोस में इस बार शाहरूख खान और सोशल एक्टिविस्ट चेतना गाला सिन्हा भी दिखेंगे. क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया और बीते 12 साल से WEF की बैठक कवर कर रहीं ब्लूमबर्ग क्विंट की मैनेजिंग एडिटर मेनका दोशी की बातचीत से समझने की कोशिश करते हैं डावोस के मायने.

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इस बार क्यों खास है WEF?

ब्लूमबर्ग क्विंट की मैनेजिंग एडिटर मेनका दोशी मानती हैं कि इस साल वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की बैठक प्रधानमंत्री मोदी या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की वजह से इतना खास नहीं जितना इस बात की वजह से कि पहली बार फोरम की सातों को-चेयर, महिलाएं हैं. अपने-अपने क्षेत्रों में बड़ा नाम बनाने वाली महिलाएं. इसमें इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड की क्रिस्चियान लेगार्ड शामिल हैं तो न्यूक्लियर रिसर्च संस्था CERN की डायरेक्टर फेबियोला जियोनाती भी. इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कन्फेडरेशन की जनरल सेक्रेटरी शैरन बरो के अलावा भारत से चेतना गाला सिन्हा भी बतौर को-चेयर शामिल हो रही हैं. चेतना, मान देशी महिला बैंक की संस्थापक होने के अलावा मान देशी फाउंडेशन भी चलाती हैं. उनकी पहचान एक सोशल एंटरप्रेन्योर और माइक्रोफाइनेंस बैंकर की है.

WEF की सात को-चेयर में भारत की चेतना गाला सिन्हा भी शामिल(फोटो: Twitter)

WEF कैसे करेगा एंटी-ग्लोबलाइजेशन का सामना?

जिस तरह दुनिया अलग-अलग फांकों में बंटी नजर आ रही है, उसने भी WEF की चुनौतियों को बढ़ा दिया है. यही वजह है कि इस साल फोरम की थीम रखी गई है- Creating Shared Future in a Fractured World यानी ‘एक टूटी हुई दुनिया में साझा भविष्य का निर्माण’. एक तरफ ट्रंप और किम जोंग के झगड़े हैं तो दूसरी तरफ पुतिन जैसे खुद में ताकत केंद्रित करके रखने वाले नेता. इनसे निपटना और समस्यायों का समाधान ढूंढ़ना, फोरम का बड़ा चैलेंज रहेगा.

अमेरिका का डंका बजेगा या भारत का?

क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर ने खास बातचीत में ब्लूमबर्ग क्विंट की मैनेजिंग डायरेक्टर मेनका दोशी से पूछा कि इस बार डावोस में किसका डंका बजेगा, भारत का या अमेरिका का? मेनका दोशी के मुताबिक:

दोनों देशों को निवेशक मिलेंगे. अमेरिका को नए टैक्स कानूनों का फायदा मिलेगा. लेकिन बाजार और जनसंख्या दोनों भारत में हैं. इसका फायदा भारत को जरूर मिलेगा. यही वजह है कि निवेशकों के लिहाज से भारत और अमेरिका दोनों की ही अनदेखी नहीं की जा सकती.
WEF में भारत के बड़े बाजार की अनदेखी नहीं कर सकती दुनिया(फाइल फोटोः ANI)

क्विंट हिंदी अपने पाठकों और दर्शकों के लीजिए इस बार वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम, डावोस से खास कवरेज लेकर आने वाला है. डावोस में बैठक 23 से 26 जनवरी तक होनी है लेकिन न सिर्फ मीटिंग के दौरान बल्कि उससे पहले भी आपके लिए खास आर्टिकल और वीडियो लाते रहेंगे.

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Published: 16 Jan 2018,07:18 PM IST

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