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G7 बैठक में तय हुआ ग्लोबल मिनिमम टैक्स क्या है, क्या होंगे नतीजे?

मल्टीनेशनल कंपनियों पर ज्यादा ग्लोबल टैक्स लगाने को लेकर ऐतिहासिक समझौता हुआ

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बिजनेस
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मल्टीनेशनल कंपनियों पर ज्यादा ग्लोबल टैक्स लगाने को लेकर ऐतिहासिक समझौता हुआ
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मल्टीनेशनल कंपनियों पर ज्यादा ग्लोबल टैक्स लगाने को लेकर ऐतिहासिक समझौता हुआ
(फोटो: @RishiSunak/Twitter)

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Google, Apple और Amazon जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों पर ज्यादा ग्लोबल टैक्स लगाने को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों के बीच 5 जून को ऐतिहासिक समझौता हुआ. ये डील G7 वित्त मंत्रियों की बैठक में हुई. ये देश हैं- कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका.

रॉयटर्स का कहना है कि इस समझौते से ये देश करोड़ों डॉलर कमा सकेंगे, जो कोविड महामारी से हुए नुकसान से उबरने में काम आएंगे. सातों देश कम से कम 15 फीसदी के न्यूनतम ग्लोबल कॉर्पोरेट रेट पर साथ आए हैं.

ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने कहा है कि G7 देशों ने टैक्स इवेजन से बचाव के लिए एक ऐतिहासिक ग्लोबल डील पर हस्ताक्षर किए हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वैश्विक तकनीक कंपनियां उचित तरीके से अपने हिस्से के टैक्स का भुगतान करें. 

क्या हुआ है?

इस डील को होने में कई साल लगे हैं. इससे ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों की तरफ से लगाया गया नेशनल डिजिटल सर्विस टैक्स भी खत्म हो सकता है. जिसे लेकर अमेरिका ने कहा था कि ये टैक्स गलत तरीके से अमेरिकी कंपनियों को निशाना बना रहे हैं.

अमीर देश सालों से एक समझौता करने के लिए जूझ रहे हैं, जिससे कि गूगल, अमेजन, फेसबुक जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों से ज्यादा रेवेन्यू कमाया जा सके. ये कंपनियां ऐसे देशों में मुनाफा दिखाती हैं, जहां कम या बिलकुल टैक्स नहीं देना होता है.  

वित्त मंत्रियों का ये कदम कंपनियों को मजबूर करेगा कि वो पर्यारण पर अपने प्रभाव के बारे में जानकारी दें, जिससे कि निवेशक उन्हें पैसा देने का सही फैसला कर पाएं.

ये समझौता टैक्स हेवन देशों पर भी निशाना है. जर्मन वित्त मंत्री ओलाफ शोल्ज ने इसे दुनिया के टैक्स हेवन के लिए 'बुरी खबर' बताया है.

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न्यूनतम ग्लोबल टैक्स क्यों?

G7 देशों जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मल्टीनेशनल कंपनियों के मुनाफा और टैक्स रेवेन्यू कम टैक्स वाले देशों में शिफ्ट करने से परेशान हैं.

ड्रग पेटेंट, सॉफ्टवेयर और इंटेलेक्टुअल प्रॉपर्टी जैसे ठीक से मापे न जाने वाले सोर्स से इन कंपनियों की इनकम ऐसे कम टैक्स वाले देश जा चुकी है. इससे इन कंपनियों को उनके गृह देशों में ज्यादा टैक्स नहीं देना पड़ता है.

15 फीसदी टैक्स रेट का प्रस्ताव बाइडेन प्रशासन का था. इससे उम्मीद ये लगाई जा रही है कि अमेरिकी कंपनियों को बहुत ज्यादा वित्तीय नुकसान नहीं होगा और टैक्स रेवेन्यू भी मिलता रहेगा.  

आगे क्या होगा?

अभी इस समझौते को G20 बैठक में सहमति मिलना जरूरी है. G20 में कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं शामिल होती हैं. इसकी बैठक अगले महीने वेनिस में होगी.

जर्मनी और फ्रांस ने समझौते का स्वागत किया है लेकिन फ्रांस के वित्त मंत्री ने कहा है कि वो 15 फीसदी से ज्यादा के ग्लोबल टैक्स के लिए लड़ेंगे.  

इस समझौते में ये साफ भी नहीं है कि नियमों के तहत कौन से बिजनेस आएंगे. अभी ये भी तय नहीं है कि टैक्स रेवेन्यू कैसे बांटा जाएगा.

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