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ग्लोबल टैक्स(Global tax) को ही ग्लोबल डिजिटल टैक्स( Global Digital Tax) और ग्लोबल मिनी टैक्स कहा जा रहा है. इसे साल 2023 से लागू करने की योजना बनाई गई है. फिलहाल इसे अब कई देशों की तरफ से हरी झंडी मिलती दिख रही है.
कहा जा रहा है कि ग्लोबल टैक्स के लागू होने के बाद विश्व की बड़ी कंपनियां केवल उन देशों को टैक्स नहीं देंगी जहां वो मूल रूप से स्थित हैं, बल्कि उन देशों को भी टैक्स का भुगतान करेंगी जहां वो काम करती हैं. विश्व के बड़े नेताओं ने भी इस पर अपनी सहमति दे दी है.
ग्लोबल टैक्स को अंतिम रूप देने के लिए बैठकों का दौर जारी है. इसमें टैक्स की अधिकतम सीमा 15 प्रतिशत तक हो सकती है. यही ग्लोबल डिजिटल टैक्स है.
130 से अधिक देशों के बीच वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स दर 15 फीसदी तय करने पर सहमति बनी है. यह टैक्स कंपनियों के विदेशी लाभ पर होगा ऐसे में अगर सभी देश वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर पर सहमत होते हैं, तब भी सरकारों द्वारा स्थानीय कॉर्पोरेट कर की दर स्वयं ही निर्धारित की जाएगी.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कम दरों वाले देशों में अपने मुनाफे को स्थानांतरित करके कर देनदारी से बचने से रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर जारी प्रयास के बीच 130 से ज्यादा देशों ने कर लगाये जाने का समर्थन किया है. लेकिन चार देश - केन्या, नाइजीरिया, पाकिस्तान और श्रीलंका अभी तक इस समझौते में शामिल नहीं हुए हैं.
ग्लोबल टैक्स के लागू होने से फेसबुक, गूगल और एपल जैसी तमाम बड़ी कंपनियों को दूसरे देशों में टैक्स का भुगतान करना होगा. इन कंपनियों ने ऐसे देशों में मुख्यालय बना रखे हैं, जहां टैक्स की दर बहुत कम है.
ग्लोबल कॉरपोरेट टैक्स का भुगतान उसी देश में करना होगा, जहां पर व्यापार किया जा रहा है. अब सबसे बड़ा और अहम सवाल ये है कि आखिर ग्लोबल मिनिमम टैक्स की दर 15 फीसदी न्यूनतम तय करने का भारत पर क्या असर होगा?
दरअसल, बहुत सालों की मशक्कत के बाद आखिरकार जी-7 देश इस बात पर राजी हो गए हैं कि ग्लोबल मिनिमम टैक्स को न्यूनतम 15 फीसदी रखा जाएगा.
ग्लोबल टैक्स से भारत की टेक कंपनियों को लाभ मिलने की उम्मीद है. क्योंकि भारत टेक कंपनियों के लिए बहुत बड़ा बाजार है. कम से कम 15% ग्लोबल मिनिमम टैक्स का मतलब है कि भारत की टैक्स प्रणाली अभी काम करती रहेगी और भारत निवेश को लगातार आकर्षित करता रहेगा.
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