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अमेरिका के जानेमाने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट आशीष के. झा ने भारत में COVID-19 के चलते होने वाली मौतों और संक्रमण के आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है कि हर रोज मौतों का जो आंकड़ा 4000 के करीब बताया जा रहा है, वो 25000 के आसपास हो सकता है.
डॉक्टर झा ने रविवार को ट्वीट कर कहा है, ''भारत में एक दिन में 400000 से ज्यादा और (COVID-19) केस, इसके चलते 4000 से ज्यादा मौतें दर्ज हुई हैं.'' इसके आगे उन्होंने लिखा है कि ये आंकड़े सही नहीं हैं.
डॉक्टर झा ने कहा है, ''गैर-महामारी वर्ष 2019 के दौरान, एक दिन में लगभग 27000 भारतीयों की मौत हो रही थी. श्मशान हर दिन मौत के इस स्तर को संभाल रहे थे. अतिरिक्त 4000 मौतों से उन पर इतना असर नहीं पड़ेगा. देशभर के श्मशान सामान्य क्षमता से 2-4 गुना काम कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा है, ''ऐसे में अनुमान है कि भारत में हर रोज 55 से 80 हजार लोगों की मौत हो रही है. अगर आप मौतों की बेसलाइन 25-30 हजार मानें तो COVID से हर रोज 25 से 50 हजार अतिरिक्त मौत होने की आशंका है, 4000 नहीं.''
कोराना वायरस से होने वाले संक्रमण के आंकड़ों को लेकर डॉक्टर झा ने कहा है, ''इन्फेक्शन फैटलिटी रेशियो (IFR) से शुरू करते हैं, जो भारत में अभी कम से कम 1 फीसदी है. आप कह सकते हैं- यह ज्यादा है. अमेरिका में यह 0.6 फीसदी है और भारत में युवा आबादी ज्यादा है, लेकिन भारत का हेल्थकेयर सिस्टम ध्वस्त हो चुका है. लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. इसलिए 1 फीसदी IFR वाजिब है, यह बहुत कम आंकड़ा भी हो सकता है. इसकी वजह से रोज के संक्रमण 2.5 से 5 मिलियन हो सकते हैं.''
उन्होंने कहा है कि ग्लोबल हेल्थ में एक पुरानी कहावत है, आप बीमारी का टेस्ट करने में नाकाम हो सकते हैं, उसे नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन मृतकों की उपेक्षा नहीं कर सकते. डॉक्टर झा के मुताबिक, भारत में मृतक हमें बता रहे हैं कि यह बीमारी (COVID-19) जितनी सरकारी आंकड़ों में दिख रही है, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है, हमें इस बात को सुनना होगा.
स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, ब्राउन यूनिवर्सिटी के डीन डॉक्टर झा का बचपन बिहार के मधुबनी जिले में बीता था. वह हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर भी रह चुके हैं. पिछले दिनों उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के बीच भारत की मदद की मांग उठाई थी. उन्होंने कहा था, ‘‘अमेरिका के पास एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 3.5 से चार करोड़ अतिरिक्त खुराकें हैं जिनका कभी इस्तेमाल नहीं हो पाएगा. क्या हम इन्हें भारत पहुंचा सकते हैं. इससे उन्हें मदद मिलेगी.’’
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