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कोविड ने बनाया 6 बच्चों की मां, सिर्फ 23 साल की हैं देविका

23 वर्षीय देविका अपने भाई-बहनों के लिए बनीं मम्मी-पापा

पूनम अग्रवाल
कोरोनावायरस
Published:
<div class="paragraphs"><p>23 साल की देविका के माता-पिता की कोविड के कारण मौत</p></div>
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23 साल की देविका के माता-पिता की कोविड के कारण मौत

(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)

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23 वर्षीय देविका जो कभी सिर्फ एक बेटी थीं, अब परिवार की मुखिया हैं. वो अपने छह भाई-बहनों की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रही हैं. दूसरी लहर के दौरान केवल 10 दिनों के भीतर COVID-19 के कारण उसके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई. देविका की पांच बहनें और एक भाई हैं, परिवार में सबसे छोटा सदस्य उनका चार साल का भाई है.

द क्विंट के एक इंटरव्यू में जब उनसे सवाल किया गया कि उनकी बहनें और भाई अपने माता-पिता दोनों के गुजर जाने से अब कैसे सब कुछ मैनेज कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि मैंने अभी तक अपने तीन सबसे छोटे भाई-बहनों को इसके बारे में नहीं बताया है. अभी के लिए उन्हें बस इतना बताया है कि वे गांव में हैं और उनका इलाज चल रहा है.

देविका के माता-पिता

(फोटो- द क्विंट)

"मैंने अपने तीन सबसे छोटे भाई-बहनों को अपने माता-पिता की मृत्यु के बारे में नहीं बताया है. लेकिन मेरी अन्य बहनों को तब समझ में आया जब मैं मां की मृत्यु के बाद घर आयी. मुझे लगता है कि बाकी तीन भी समझ जाएंगे लेकिन अभी तक मैंने उनसे बताने की हिम्मत नहीं कर पाई हूं."
देविका

देविका ने हमें अपने दो कमरे के घर के अंदर एक मोबाइल फोन से शूट करने दिया और हमें एनजीओ कार्यकर्ताओं के रूप में पेश किया. उन्हें लगा कि घर में किसी पत्रकार को देखकर उसके छोटे भाई-बहनों को लग सकता है कि कुछ तो गड़बड़ है.

जब हमने घर में प्रवेश किया तो सभी बच्चे अपनी उम्र के क्रम में एक पंक्ति में बिस्तर पर बहुत अच्छे से बैठे थे. उनमें से दो सबसे छोटे बच्चे सबसे अधिक चिड़चिड़े और बातूनी थे.

हमारी टीम COVID-19 को ध्यान में रखते हुए घर की छत पर चली गई. जबकि अन्य भाई-बहन थोड़े शांत थे, दोनों बच्चों ने तुरंत खेलने के लिए अपना बल्ला और गेंद उठा लिया.

हमने देविका को अपने भाई-बहनों के साथ अपने बच्चों की तरह व्यवहार करते हुए देखा. इन दिनों उनकी एक बड़ी चिंता COVID-19 की तीसरी लहर के बारे में है, इसलिए वो हमेशा कोशिश करती हैं कि सभी बच्चे COVID-19 नियमों का पालन करें.

"मेरे बच्चे (भाई-बहन) बाहर कहीं नहीं जाते. पहले वे दूध की दुकान तक जाते थे लेकिन अब मैं उन्हें इसकी अनुमति नहीं देती."
देविका

देविका के माता-पिता और 6 भाई-बहन

(फोटो- द क्विंट)

देविका कहती हैं कि उनको और उनके भाई-बहनों को दिल्ली में अपने माता-पिता से एक छोटा सा घर विरासत में मिला है, उनके लिए एक राहत है. लेकिन फिर भी मासिक खर्चों की योजना बनाना और सकारात्मक बने रहना आसान नहीं है.

"हम अक्सर एक साथ बैठते हैं और बात करते हैं, अपने भविष्य के बारे में पॉजिटिव होने की कोशिश करते हैं. बच्चे कहते हैं, "चिंता मत करो, हम पढ़ रहे हैं, हम बड़े होकर कुछ बड़ा हासिल करेंगे."
देविका

ट्यूशन है देविका की आय का एकमात्र स्रोत

हमने देविका से पूछा कि क्या उनके माता-पिता के गुजर जाने से बच्चों पर किसी तरह का प्रभाव पड़ा है. देविका ने कहा कि वे थोड़े शांत हो गए हैं. वे अब न तो हंसते हैं और न ही ज्यादा बातें करते हैं.

एक घटना को याद करते हुए, देविका ने कहा कि मेरी छोटी बहन को कुछ किताबों की जरूरत थी लेकिन फिर उसने मुझसे कहा कि मैं उन्हें न लाऊं. जब पापा जिंदा थे तो वह अपने नए सेशन के लिए किताबें लेने की खातिर उनके पीछे पड़ी थी.

देविका के पिता पास के एक मंदिर में पंडित थे. मंदिर ने कोई वित्तीय सहायता नहीं दी है लेकिन देविका को मंदिर में दान किए गए फलों और मिठाइयों को घर ले जाने की अनुमति दी है.

देविका की आय का एकमात्र स्रोत उनके द्वारा चलाई जा रही ट्यूशन कक्षाएं हैं, जिससे उन्हें हर महीने लगभग 5 हजार रुपये मिलते हैं.
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देविका कहती हैं मुझे बच्चों को पढ़ाना बहुत पसंद है इसलिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. ट्यूशन से मेरी कमाई और मेरी पॉकेट मनी की तरह था. अब मेरी पॉकेट मनी ही हमारे जीने का जरिया बन गया है.

'अस्पताल प्रशासन ने हमें धोखा दिया, मम्मी के साथ ठीक से व्यवहार नहीं किया'

हमने देविका से यह पूछने की कोशिश की कि उसके माता-पिता COVID-19 के शिकार कैसे हुए, इसका जवाब देते हुए देविका ने पहली बात यह बताई कि कैसे उन्होंने परिवार की अधिकांश बचत धीरे-धीरे अपने माता-पिता को उचित इलाज दिलाने की कोशिश में खर्च कर दी.

"मां का ऑक्सीजन स्तर 72 तक गिर गया था. हमें एक ऐसा ऑक्सीजन सिलेंडर मिला, जो सिर्फ 15 मिनट तक चला. रात के 11.30 बजे मैं अपनी मां को 4-5 सरकारी और निजी अस्पतालों में ले गयी. किसी ने उन्हें भर्ती नहीं किया क्योंकि बेड्स खाली नहीं थे. फिर हमने पाया कुरुक्षेत्र में एक अस्पताल जिसमें बेड खाली थे. उन्हें प्रति दिन 30 हजार रुपये चाहिए थे. मैंने मम्मी को कुरुक्षेत्र ले जाने का फैसला किया. मुझे किसी भी कीमत पर उनकी जान बचानी थी."
देविका, पीड़िता

देविका इस उम्मीद के साथ अपनी मां के साथ कुरुक्षेत्र अस्पताल पहुंचीं कि उनकी मां को अब कम से कम उचित चिकित्सा सुविधा तो मिलेगी ही. उन्हें क्या पता था कि अस्पताल उनके साथ धोखा कर रहा है.

कुरुक्षेत्र अस्पताल ने न केवल उनसे अधिक पैसे लिए बल्कि देविका का दावा है कि उन्होंने उनकी मां का उचित इलाज भी नहीं किया.

"जब हम पहुंचे, तो वह अस्पताल जैसा नहीं लग रहा था. लेकिन मुझे उनको भर्ती करना पड़ा. मैंने डॉक्टरों से पूछा कि वे मेरी माँ को कौन सी दवाएं दे रहे हैं. लेकिन उन्होंने मुझसे कुछ भी साझा नहीं किया. बस यही कहते रहे कि COVID-19 का कोई इलाज नहीं है, अगर उनके बुखार का इलाज करेंगे, अगर सही इलाज होता तो मम्मा बच जाती."
देविका, पीड़िता

देविका दिल्ली सरकार से मुआवजा पाने के लिए एक एनजीओ की मदद ले रही हैं उनके लिए सबसे पहली प्राथमिकता अपने सभी भाई-बहनों को शिक्षित करना है.

"हमें उम्मीद है कि दिल्ली सरकार हमारी मदद करेगी. मैंने सरकार के पास सभी आवश्यक दस्तावेज जमा किए हैं. मुझे अपने भाई-बहनों की शिक्षा के लिए मदद की जरूरत है. मेरे माता-पिता के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण थी. इन बच्चों का भविष्य पैसे के कारण खराब नहीं होना चाहिए. इसलिए मुझे सरकार के समर्थन की जरूरत है.
देविका

देविका की दूसरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या वह अपनी बहनों और भाई के लिए एक अच्छी मां-बाप साबित होगी या नहीं.

"मुझे उम्मीद है कि मैं अपने माता-पिता के संस्कार अपने भाई-बहनों को दे पाऊंगी. मुझे चिंता है कि लॉकडाउन के बाद क्या होगा, जब वे स्कूल जाना शुरू करेंगे. मैं उनकी बहन हूं, मां नहीं. मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी मां की तरह सभी चीजों को संभाल सकती हूं.
देविका

देविका और उनके भाई-बहन उन सैकड़ों बच्चों में शामिल हैं, जो COVID-19 महामारी के दौरान अनाथ हो गए थे.

यहां तक ​​​​कि जब वे सरकार से वित्तीय सहायता की तलाश करते हैं, तो वे अपने माता-पिता के नुकसान से उबरने और अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं.

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