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23 वर्षीय देविका जो कभी सिर्फ एक बेटी थीं, अब परिवार की मुखिया हैं. वो अपने छह भाई-बहनों की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रही हैं. दूसरी लहर के दौरान केवल 10 दिनों के भीतर COVID-19 के कारण उसके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई. देविका की पांच बहनें और एक भाई हैं, परिवार में सबसे छोटा सदस्य उनका चार साल का भाई है.
द क्विंट के एक इंटरव्यू में जब उनसे सवाल किया गया कि उनकी बहनें और भाई अपने माता-पिता दोनों के गुजर जाने से अब कैसे सब कुछ मैनेज कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि मैंने अभी तक अपने तीन सबसे छोटे भाई-बहनों को इसके बारे में नहीं बताया है. अभी के लिए उन्हें बस इतना बताया है कि वे गांव में हैं और उनका इलाज चल रहा है.
देविका ने हमें अपने दो कमरे के घर के अंदर एक मोबाइल फोन से शूट करने दिया और हमें एनजीओ कार्यकर्ताओं के रूप में पेश किया. उन्हें लगा कि घर में किसी पत्रकार को देखकर उसके छोटे भाई-बहनों को लग सकता है कि कुछ तो गड़बड़ है.
जब हमने घर में प्रवेश किया तो सभी बच्चे अपनी उम्र के क्रम में एक पंक्ति में बिस्तर पर बहुत अच्छे से बैठे थे. उनमें से दो सबसे छोटे बच्चे सबसे अधिक चिड़चिड़े और बातूनी थे.
हमारी टीम COVID-19 को ध्यान में रखते हुए घर की छत पर चली गई. जबकि अन्य भाई-बहन थोड़े शांत थे, दोनों बच्चों ने तुरंत खेलने के लिए अपना बल्ला और गेंद उठा लिया.
हमने देविका को अपने भाई-बहनों के साथ अपने बच्चों की तरह व्यवहार करते हुए देखा. इन दिनों उनकी एक बड़ी चिंता COVID-19 की तीसरी लहर के बारे में है, इसलिए वो हमेशा कोशिश करती हैं कि सभी बच्चे COVID-19 नियमों का पालन करें.
देविका कहती हैं कि उनको और उनके भाई-बहनों को दिल्ली में अपने माता-पिता से एक छोटा सा घर विरासत में मिला है, उनके लिए एक राहत है. लेकिन फिर भी मासिक खर्चों की योजना बनाना और सकारात्मक बने रहना आसान नहीं है.
हमने देविका से पूछा कि क्या उनके माता-पिता के गुजर जाने से बच्चों पर किसी तरह का प्रभाव पड़ा है. देविका ने कहा कि वे थोड़े शांत हो गए हैं. वे अब न तो हंसते हैं और न ही ज्यादा बातें करते हैं.
एक घटना को याद करते हुए, देविका ने कहा कि मेरी छोटी बहन को कुछ किताबों की जरूरत थी लेकिन फिर उसने मुझसे कहा कि मैं उन्हें न लाऊं. जब पापा जिंदा थे तो वह अपने नए सेशन के लिए किताबें लेने की खातिर उनके पीछे पड़ी थी.
देविका के पिता पास के एक मंदिर में पंडित थे. मंदिर ने कोई वित्तीय सहायता नहीं दी है लेकिन देविका को मंदिर में दान किए गए फलों और मिठाइयों को घर ले जाने की अनुमति दी है.
देविका कहती हैं मुझे बच्चों को पढ़ाना बहुत पसंद है इसलिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. ट्यूशन से मेरी कमाई और मेरी पॉकेट मनी की तरह था. अब मेरी पॉकेट मनी ही हमारे जीने का जरिया बन गया है.
हमने देविका से यह पूछने की कोशिश की कि उसके माता-पिता COVID-19 के शिकार कैसे हुए, इसका जवाब देते हुए देविका ने पहली बात यह बताई कि कैसे उन्होंने परिवार की अधिकांश बचत धीरे-धीरे अपने माता-पिता को उचित इलाज दिलाने की कोशिश में खर्च कर दी.
देविका इस उम्मीद के साथ अपनी मां के साथ कुरुक्षेत्र अस्पताल पहुंचीं कि उनकी मां को अब कम से कम उचित चिकित्सा सुविधा तो मिलेगी ही. उन्हें क्या पता था कि अस्पताल उनके साथ धोखा कर रहा है.
कुरुक्षेत्र अस्पताल ने न केवल उनसे अधिक पैसे लिए बल्कि देविका का दावा है कि उन्होंने उनकी मां का उचित इलाज भी नहीं किया.
देविका दिल्ली सरकार से मुआवजा पाने के लिए एक एनजीओ की मदद ले रही हैं उनके लिए सबसे पहली प्राथमिकता अपने सभी भाई-बहनों को शिक्षित करना है.
देविका की दूसरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या वह अपनी बहनों और भाई के लिए एक अच्छी मां-बाप साबित होगी या नहीं.
देविका और उनके भाई-बहन उन सैकड़ों बच्चों में शामिल हैं, जो COVID-19 महामारी के दौरान अनाथ हो गए थे.
यहां तक कि जब वे सरकार से वित्तीय सहायता की तलाश करते हैं, तो वे अपने माता-पिता के नुकसान से उबरने और अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं.
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