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सबसे बड़ा प्रोड्यूसर होने के बावजूद भारत में कोरोना वैक्सीन की कमी है. भारत की तरह और भी देश हैं जहां लोग वैक्सीन के लिए तरस रहे हैं. अब नौबत ये है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और UNICEF अमीर देशों से गुजारिश कर रहे हैं कि जरा गरीब देशों के बारे में भी सोचिए. आप पूरी दुनिया का हाल देखेंगे तो समझ में आएगा कि वैक्सीन को लेकर कितनी गैरबराबरी हो रही है और सिर्फ अपना स्वार्थ देखने वाले देश दरअसल पूरी दुनिया को डुबा सकते हैं.
इन दिनों सभी देश वैक्सीनेशन पर जोर दे रहे हैं. कोरोना के टीके को फिलहाल इस बीमारी का प्रमुख हथियार माना जा रहा है. लेकिन टीके के कमी की समस्या से पूरी दुनिया जूझ रही है. वैक्सीन की समुचित मैन्युफैक्चरिंग न हो पाने के कारण इसकी आपूर्ति में भयंकर कमी देखी जा रही है.
एक समय दुनिया को वैक्सीन निर्यात करने वाला भारत आज खुद टीके की कमी से जूझ रहा है.
भारत के कई राज्यों में टीकाकरण केंद्र वैक्सीन की कमी के कारण बंद गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने ब्रिटेन और कनाडा से यह अपील की है कि उनकी सरकारों ने जो अतिरिक्त टीके खरीद लिए हैं, वे उनका वितरण विकासशील और गरीब देशों को करें. बता दें कि इन देशों ने इतनी अधिक मात्रा खरीद रखी है कि ये अपनी पूरी आबादी को तीन से अधिक बार टीकाकरण करा सकते हैं.
जनवरी 2021 में दुनिया के कुछ अमीर देशों ने अपनी आबादी से दो-तीन गुना वैक्सीन के डोज बुक कर लिए थे.
पिछले महीने ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि कोविड-19 वैक्सीन की अधिकांश डोज अब तक धनी देशों में स्थानीय आबादी के लिये ही सम्भव हो पाई हैं. अप्रैल में विश्व भर में 70 करोड़ से ज्यादा डोज दी जा चुकी हैं, जिनमें से 87 फीसदी अपेक्षाकृत धनी देशों में दी गई थीं, जबकि निम्न आय वाले देशों को केवल 0.2 प्रतिशत खुराकें ही मिल पायी थीं.
टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने जेनेवा में एक प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा था कि "वैक्सीन के वैश्विक वितरण में स्तब्धकारी असंतुलन बना हुआ है. औसतन उच्च आय वाले देशों में हर चार में से एक व्यक्ति को एक वैक्सीन डोज मिल चुकी है. वहीं निम्न आय वाले देशों में यह आँकड़ा 500 में से एक है.’
टीकों के लेकर दुनिया में दोतरफा रवैया देखने को मिला है. जहां एक ओर बड़े देशों ने वैक्सीन पर कब्जा जमाने का काम किया है, वहीं गरीब देशों में टीके का टोटा साफ देखा जा सकता है. लेकिन यह वसुधैव कुंटुम्बकम की बात करने वालों को शोभा नहीं देता है. क्योंकि यदि वायरस जब चीन के वुहान से एक महीने में ही दुनिया में फैल सकता है तो ऐसे में केवल कुछ देश पूरी तरह वैक्सीनेटेड होने के बाद भी खतरे का पुन: सामना कर सकते हैं.
वहीं इससे आर्थिक गतिरोध भी बना रहेगा. क्योंकि किसी दो देशों के बीच होने वाला व्यापार तभी बेहतर हो सकता है जब दोनों देश में स्थिति ठीक हो अगर कहीं भी परिस्थिति अनुकूल नहीं रही तो अर्थिक गतिविधियों में बाधा पैदा हो सकती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि विश्व में अब एक विभाजन उभरता दिखाई दे रहा है. ऐसा लगता है कि ज्यादा टीकाकरण वाले देशों में महामारी को मोटे तौर पर खत्म माना जा रहा है, जबकि वैक्सीन की कमी से जूझ रहे देश संक्रमण की तेज लहर की चपेट में हैं.
दुनिया में ऐसे दर्जनों देश हैं जहाँ कोरोना टीकाकरण शुरू नहीं हो सका है, क्योंकि उनके पास टीका खरीदने के लिए पैसे और इसे बनाने के लिए साधन नहीं हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक पिछले साल से बार-बार ये कहते आ रहे हैं कि गरीब और कम आय वाले देश टीकाकरण में पीछे छूट गए हैं.
यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फोर ने अमीर देशों से कोविड-19 वैक्सीन की अतिरिक्त खुराकें अन्य जरूरतमन्द देशों को उपलब्ध कराने की बात कही है. उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि अगर कमजोर हालात वाले देशों को वैक्सीन उपलब्ध नहीं हुई तो कोविड-19 महामारी का खतरनाक फैलाव जिस तरह भारत में तेजी से हुआ है, उसी तरह अन्य देशों में भी फैल सकता है.
हेनरिएटा फोर ने कहा है कि जरूरत से ज्यादा मात्रा में बची खुराकें तत्काल जरूरतमन्द देशों को मुहैया कराया जाना एक न्यूनतम उपाय है और ऐसा अभी करना होगा.
हेनरिएटा फोर ने इस तरफ भी ध्यान दिलाया कि अगर वायरस बेकाबू होकर ऐसे ही फैलता रहा तो इस वायरस के और भी अधिक घातक रूपों या प्रकारों (वैरिएंट्स) के उभरने का जोखिम बरकरार रहेगा.
हेनरिएटा फोर के अनुसार नए आँकड़ों के विश्लेषण से मालूम होता है कि जी-7 संगठन और योरोपीय संघ के देश अगर अपने यहाँ जून, जुलाई और अगस्त में उपलब्ध होने वाली कुल खुराक की मात्रा केवल 20 प्रतिशत हिस्सा भी दान करें, तो वो लगभग 15 करोड़ 30 लाख खुराकें अन्य जरूरतमन्द देशों को दान कर सकते हैं.
कई अमीर देश विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के तहत आगे आए हैं और गरीब या कम आय वाले देशों की मदद की जिम्मेदारी ली है. उन्होंने कोवैक्स नाम के एक वैश्विक टीके की पहल की है जिसमें डब्ल्यूएचओ, ग्लोबल वैक्सीन अलायंस या गावी और कई विकसित देश शामिल हैं. कोवैक्स का उद्देश्य दान के माध्यम से 92 निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए समान तरीके से कोविड -19 वैक्सीन पहुँचाना है, इस योजना के तहत वैक्सीन देने का काम फरवरी में शुरू किया गया था.
इस पहल के लिए सबसे अधिक दान देने का वादा अमेरिका ने किया है उसके बाद जर्मनी और ब्रिटेन हैं. भारत ने इस पहल के लिए डेढ़ करोड़ डॉलर दिए हैं.
यूनिसेफ की हेनरिएटा फोर ने कहा है कि कोवैक्स कार्यक्रम इस महामारी से बाहर निकलने का एक रास्ता दिखाता है, मगर इसके तहत अभी आपूर्ति पर्याप्त नहीं है और इसके लिये भारत की स्थिति भी, आंशिक रूप से जिम्मेदार है.
हेनरिएटा फोर ने कहा कि भारत के भीतर ही वैक्सीन की बेतहाशा बढ़ती माँग का मतलब है कि निम्न व मध्यम आय वाले देशों को मई महीने के अन्त तक वैक्सीन की जो 14 करोड़ खुराकें मुहैया कराई जानी थीं, वो अब कोवैक्स कार्यक्रम को उपलब्ध नहीं होंगी. जून महीने में भी अतिरिक्त 5 करोड़ वैक्सीन खुराकें उपलब्ध नहीं होने की सम्भावना है. इस स्थिति को वैक्सीन राष्ट्रवाद ने और भी ज़्यादा बदतर बना दिया है और सीमित उत्पादन व धन की कमी के कारण, कोविड-19 वैक्सीन की उपलब्धता का कार्यक्रम निर्धारित लक्ष्य से इतना पीछे चल रहा है.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया है कि वे दुनिया के अन्य देशों को 80 मिलियन यानी आठ करोड़ कोरोना वैक्सीन की डोज देंगे. व्हाइट हाउस की तरफ दी गई जानकारी के मुताबिक बाइडेन पहले ही जॉनसन एंड जॉनसन की छह करोड़ वैक्सीन देने की योजना बना चुके थे, वहीं अब इसमें फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन भी शामिल की गई हैं.
पूरी दुनिया में वैक्सीन असमानता है. कुछ देशों के पास आबादी की तुलना में पांच गुना वैक्सीन है, तो कुछ देशों के पास आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं. पिछले साल अक्टूबर से ही 100 से ज्यादा देश, खासकर भारत और साउथ अफ्रीका ने पेटेंट अधिकार हटाने को लेकर मांग की थी, लेकिन फार्मा कंपनियां इसे रोक रही थीं. कंपनियां महामारी के बजाए अपना मुनाफा देख रही थीं. लेकिन यह बात गौर करने वाली है कि इन कंपनियों ने वैक्सीन बनाने के लिए जो रिसर्च की है वह पब्लिक फंड से की है यानी कि जनता (सरकार द्वारा प्रदान किए गए फंड) के पैसे से ऐसे में अपने मुनाफे के लिए ये कंपनियां अब पेटेंट साझा करने पर आनाकानी कर रही हैं.
बाइडेन प्रशासन ने कोरोना के वैक्सीनों से जुड़े इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स को स्थगित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को अपना समर्थन दिया है.
अमेरिका के पेटेंट छोड़ने के बाद कई देश जो नहीं मान रहे थे, उन्होंने भी अपनी सहमति देना शुरू कर दिया है. फ्रांस और इटली पेटेंट अधिकार हटाने के पक्ष में आ चुके हैं. रूस भी इस पर बातचीत के लिए तैयार है. यूके की सरकार ने कहा है कि वो अमेरिका और WTO के साथ इस पर काम कर रहा है.
वहीं फार्मा कंपनियों ने आपत्ति जताते हुए यह तर्क दिया है कि पेटेंट सुरक्षा को स्थगित करना वैक्सीन R&D कंपनियों के ‘रिस्क टेकिंग' और इनोवेशन की प्रकृति को कमजोर करेगा.
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