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बहुत कन्फ्यूजन है. वो जो साढ़े छह करोड़ कोरोना वैक्सीन बाहर भेजी गई, वो सरकार ने भेजी है या सीरम ने करार की जरूरत के हिसाब से भेजी. कन्फ्यूजन कहीं और नहीं, सरकार में है.
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ट्वीट करके कह रहे हैं कि ज्यादातर वैक्सीन तो सीरम ने अपने करार के तहत भेजी है, लेकिन इससे कुछ घंटों पहले देश स्वास्थ्य मंत्री एक लेख को ट्वीट कर शेयर कर रहे हैं, जिसमें लिखा है कि 6.5 करोड़ वैक्सीन का निर्यात भारत की उदारता का उदाहरण था. लेकिन इतना कन्फ्यूजन क्यों है? वैक्सीन एक्सपोर्ट को न डिफेंड करते बन रहा है और न इनकार....ऐसी नौबत क्यों आई, आइए समझते हैं.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने 14 मई को कहा कि 5 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन बाहर मदद के तौर पर नहीं बल्कि सीरम कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट नियमों के तहत भेजी गईं. लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एक ब्लॉग का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए बताया कि, देश में वैक्सीन की कमी के बावजूद हमने मानवता के आधार पर दुनियाभर में करीब 66 मिलियन वैक्सीन डोज भिजवाईं.
वैक्सीन एक्सपोर्ट के लिए सीरम को जिम्मेदार बताता बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा का ट्वीट
अब आपको इस पूरी पिक्चर की स्क्रिप्ट बताते हैं. जनवरी से जब भारत में वैक्सीनेसन ड्राइव शुरू हुई तो सरकार ने विदेशों को भी वैक्सीन देने की बात कही. तमाम देशों को वैक्सीन के अलग-अलग लॉट भिजवाए गए. जिसका खूब जोर शोर से प्रचार भी हुआ. तमाम मीडिया चैनलों ने बताया कि कैसे भारत दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध करवा रहा है.
28 जनवरी को खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, हम लोग वैक्सीन सप्लाई से दूसरे देशों के नागरिकों का भी जीवन बचा रहे हैं. ये सुनकर WEF में सभी को तसल्ली होगी, कि अभी तो सिर्फ दो मेड इन इंडिया वैक्सीन आई हैं. आने वाले समय में कई और वैक्सीन भारत से आने वाली हैं. जो दुनिया के देशों को मदद करने में सहायता करेगी.
16 मार्च 2021 को केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने राज्यसभा में वैक्सीन को लेकर जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अब तक कुल कितने देशों को कितनी वैक्सीन उपलब्ध करवाई गई हैं. उन्होंने एसपी नेता चौधरी सुखराम सिंह यादव के एक सवाल के जवाब में कहा,
इसके अलावा 27 मार्च को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारत के उप स्थायी प्रतिनिध के नागराज नायडू ने बड़े शान से ये बताया था कि, “भारत ने दुनिया के 70 देशों में वैक्सीन का निर्यात किया है. यहां तक कि भारत ने आज की तारीख में अपने लोगों से ज्यादा वैक्सीन विदेशों को भेजी है.”
अब यहां तक तो सब ठीक चल रहा था, पिक्चर में केंद्र सरकार किसी सुपरहीरो की तरह वैक्सीन को एयरलिफ्ट करवाकर विदेशों तक भेज रही थी. लेकिन पिक्चर की कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब कोरोना की दूसरी वेव ने भारत के हेल्थ सिस्टम की कमर तोड़कर रख दी. जो लोग टीवी के सामने बैठकर वैक्सीन मैत्री पर तालियां पीट रहे थे, उन्हें तब जाकर खयाल आया कि उन्हें तो अब तक वैक्सीन मिली ही नहीं है. मायाजाल टूटा और वैक्सीन की कमी पर ध्यान चला गया.
आम आदमी पार्टी ने भले ही देरी से लेकिन सबसे पहले इस मुद्दे को उठाना शुरू किया. सरकार से सवाल पूछा जाने लगा कि वैक्सीन कहां है? विदेश को 6 करोड़ वैक्सीन डोज क्यों भेजी गईं?
राज्यों ने वैक्सीन की कमी के सवाल पूछे तो वैक्सीन को लेकर सरकार चारों तरफ से घिर गई, सवालों की बाढ़ इतनी थी कि संबित पात्रा को बांध बनाने की कोशिश करनी पड़ी. सामने आकर बताया गया कि, दरअसल जो वैक्सीन अब तक टीवी में सरकार के प्रचार के तौर पर दिखाई जा रही थी, उसमें से 84 फीसदी हिस्सा तो वैक्सीन कंपनी का कमर्शियल करार था. संबित पात्रा की तरफ से ये खुलासा किया गया कि भारत ने तो सिर्फ 1 करोड़ 7 लाख वैक्सीन ही मदद के रूप में विदेशों को दी है. बाकी की 84 फीसदी या 5 करोड़ से अधिक वैक्सीन जो भेजी गई हैं, वो कंपनियों के अपने करार के तहत भेजी गई है.
अब खुद मोहन भागवत ने इस बात के लिए सरकार की आलोचना की है कि दूसरी लहर को लेकर पब्लिक के साथ वो बी गफलत में थी. दरअसल इसी गफलत का नतीजा है कि सरकार ने कोरोना को गए समय की बात समझ वैक्सीन बाहर जाने दिया. अब ठीकरा कंपनी पर फोड़ने की कवायद हो रही है लेकिन वैक्सीन मैत्री जैसी चीजों का इतना ज्यादा और ऊतने ऊंचे मंचों से प्रचार किया जा चुका है कि इनकार करना मुश्किल है. हर्षवर्धन के ट्वीट को आप इसी नजर से देख सकते हैं.
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