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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने शुक्रवार को दक्षिण अफ्रीका में मिले कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को 'ओमिक्रॉन' नाम दिया है और इसे 'वेरिएंट कंसर्न' घोषित कर दिया है. इसके पहले अब तक WHO ने वेरिएंट ऑफ कंसर्न का लेबल चार और वेरिएंट को दिया था. जैसे, अल्फा, जो पहली बार यूके में मिला था, बीटा- जो दक्षिण अफ्रीका में, गामा- जिसे पहली बार ब्राजील और डेल्टा जिसे पहली बार अक्टूबर 2020 में भारत में देखा गया था.
इस बीच भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के ताजा हालातों पर अहम बैठक बुलाई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम से ऐसे देश जहां कोरोना का नया वैरियंट फैला है, वहां से उड़ानों पर प्रतिबंध की मांग की है.
ओमिक्रॉन के बारे में WHO ने क्या कहा?
महामारी की शुरुआत के बाद से दक्षिण अफ्रीका में तीन बार कोरोना का पीक आया, जब दूसरी बार पीक आया था, तब डेल्टा वेरिएंट प्रमुख कारण था.
WHO का कहना है कि ओमिक्रॉन में बड़ी संख्या में म्यूटेशंस होते हैं, जो चिंता का विषय है.
WHO ने यह भी कहा कि शुरुआती जानकारी से पता चलता है कि कोरोना के दूसरे वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन तेजी से फैलता है.
ओमिक्रॉम पहली बार 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीकी वैज्ञानिकों द्वारा रिपोर्ट किया गया था, लेकिन माना जा रहा है कि ये हफ्तेभर पहले से ही फैलना शुरू हो गया था. दक्षिण अफ्रीका के लगभग सभी प्रांत में ओमिक्रॉम के मामले दर्ज हुए हैं.
ओमिक्रॉन का ओरिजिन आखिर कहां से हुआ?
दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने कोरोना के बढ़ते मामलों को पिछले दो हफ्तों में गौटेंग प्रांत जहां घनी आबादी वाले शहर प्रिटोरिया और जोहान्सबर्ग हैं को ओमिक्रॉन से जोड़ा है.
लेकिन वैरिएंट का पता पहली बार 11 नवंबर को बोत्सवाना में लगाया गया था. हॉन्ग कॉन्ग से भी दो मामले सामने आए, दक्षिण अफ्रीका के यात्रियों में ही ओमिक्रॉन पाया गया था.
इजरायल ने गुरुवार शाम को इससे जुड़े एक मामले की सूचना दी और बेल्जियम के ऐसे व्यक्ति में ओमिक्रॉन पाया गया जो टर्की और मिस्र की यात्रा कर के आया था.
इस तरह का म्यूटेशन आखिर कैसे हुआ?
ओमिक्रॉन को लगभग 32 म्यूटेशन वाला स्ट्रेन बताया गया है, जो डेल्टा में हुए म्यूटेशन का दोगुना है. ऐसा माना जा रहा है कि यह वेरिएंट किसी इम्यूनोकॉम्प्रोमाइस्ड व्यक्ति से उभरा होगा जिसे कोई बहुत पुराना इंफेक्शन हो जो ठीक नहीं हुआ हो.
ये म्यूटेशंस चिंता का विषय क्यों बना?
म्यूटेशन की प्रक्रिया वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर होती है. जब कोई व्यक्ति पॉजिटिव हो जाता है तो वायरस यही स्पाइक प्रोटीन के जरिए व्यक्ति की कोशिका में घुसता है.
अब वैज्ञानिकों को इस चिंता है कि लोगों के शरीर में बना एंटीबॉडीज इससे लड़ने में सक्षम नहीं होगा. WHO का कहना है कि अभी शुरुआती दौर में वैज्ञानिक ओमिक्रॉम से जुड़ी जानकारियों की जांच कर रहे हैं ताकि यह बेहतर ढंग से समझा जा सके कि वायरस रिइंफेक्शन और वैक्सीन को कैसे प्रभावित करेगा.
कितनी तेजी से फैल सकता है ओमिक्रॉन?
फिलहाल इसका कोई ठोस जवाब तो नहीं मिला है, लेकिन अगर इससे संक्रमित आंकड़ों पर नजर डालें तो 16 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में इसके केवल 273 मामले थे और इस हफ्ते तक यह बढ़कर 1200 हो गए हैं. ज्यादातर मामले गौटेंग प्रांत से थे जहां ये वैरिएंट एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है.
ओमिक्रॉन के खिलाफ वर्तमान में उपयोग होने वाली कोरोना वैक्सीन कितनी असरदार है?
वैज्ञानिकों को चिंता है कि वैक्सीन इस वेरिएंट के खिलाफ कम सुरक्षा ही प्रदान कर सकती है. इस पर निष्कर्ष निकालने से पहले रियल वर्ल्ड स्टडी, रिइंफेक्शन के मामलों का अध्ययन करना होगा.
फाइजर पहले ही घोषणा कर चुका है कि जरूरत पड़ने पर वह 100 दिनों में अपनी वैक्सीन में बदलाव कर सकता है.
क्या कोरोना की जांच करने वाला RT-PCR टेस्ट ओमिक्रॉन को डिटेक्ट कर पाएगा?
हां बिल्कुल, दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने इस वेरिएंट का तेज गति से पता लगाने के लिए RTPCR टेस्ट का ही उपयोग किया, क्योंकि जीनोम सिक्वेंसिंग में ज्यादा समय लग जाता है. , कोरोना वायरस में कुल 29 जीन पाए जाते हैं, जिनमें से 2-3 जीन की RT-PCR पहचान कर सकता है. इसलिए ओमिक्रॉन में पाए जाने वाले जीन की पहचान RT-PCR के टेस्ट की मदद से हो गई.
क्या ओमिक्रॉन अधिक गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है?
यह कहना जल्दबाजी होगी. दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक उन लोगों के हेल्थ की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं ओमिक्रॉन की वजह से पॉजिटिव पाए गए हैं. लेकिन यह शुरुआती दिन है क्योंकि गंभीर बीमारी शुरू होने में कुछ हफ्ते लग जाते हैं.
(ये वीडियो क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है)
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