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बिहार में फिर एक बार एनडीए की सरकार बनने जा रही है और नीतीश कुमार ही राज्य के सीएम होंगे. तमाम एग्जिट पोल के नतीजों को झूठा साबित करते हुए बिहार की जनता ने बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को ही चुना. वहीं अगर महागठबंधन की बात करें तो सत्ता हाथ में आते-आते छिटक सी गई. क्योंकि एनडीए और महागठबंधन में सिर्फ 15 सीटों का ही फासला रहा. इसके लिए कांग्रेस समेत तमाम ‘अपने’ ही जिम्मेदार रहे. वो अपने जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हाथ छोड़ दिया.
बिहार चुनाव के लिए वोटिंग खत्म होते ही एग्जिट पोल सामने आए, तमाम बड़े एग्जिट पोल ने बताया कि तेजस्वी यादव इस बार बिहार की सत्ता पर बैठने जा रहे हैं. इसे लेकर आरजेडी के नेता और तेजस्वी यादव भी उत्साहित नजर आए, परदे के पीछे जीत की तैयारियां भी शुरू हो चुकी थीं. लेकिन नतीजों के रुझानों ने बता दिया कि मामला उतना आसान नहीं है, जितना दिखाया गया था. आखिरकार महागठबंधन को 110 सीटों के साथ विपक्ष में ही बैठने का मौका दिया गया.
अब हम आपको ये बताते है कि कौन से वो फैक्टर हैं, जिन्होंने महागठबंधन के हाथों में आती दिख रही सत्ता की चाबी को छीन लिया. इस लिस्ट में पहले तेजस्वी के अपनों से शुरुआत करते हैं.
ये वही पार्टी है जिसने पिछले चुनावों में यानी 2015 में जेडीयू और आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन तब कांग्रेस को 70 नहीं बल्कि सिर्फ 41 सीटें लड़ने के लिए मिली थीं. इस चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट पिछले सभी चुनावों से बेहतर रहा था.
अब तमाम चुनावी जानकार तेजस्वी के कांग्रेस को इस चुनाव में 70 सीटें देने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं. तो कुल मिलाकर कांग्रेस के बुरे स्ट्राइक रेट ने महागठबंधन की हार में एक बड़ा रोल अदा किया.
अब कांग्रेस के बाद ऐसे भी कुछ दल थे, जिन्होंने महागठबंधन से अलग चुनाव लड़ा. असदुद्दीन ओवैसी पार्टी एआईएमआईएम और पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) मिलकर एक गठबंधन के तहत बिहार में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. इस गठबंधन का नाम संयुक्त जनतांत्रिक सेक्यूलर गठबंधन (यूडीएसए) रखा गया. एआईएमआईएम ने कुल 24 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से ज्यादातर सीटें सीमांचल क्षेत्र में थीं. इस मुस्मिल बहुल इलाके से ओवैसी की पार्टी को जमकर समर्थन मिला और पार्टी ने 5 सीटें अपने नाम कर दीं.
ओवैसी फैक्टर ने भी महागठबंधन को बड़ी चोट पहुंचाने का काम किया. पार्टी ने कुल 1.24% वोट शेयर अपने नाम किया. साथ ही एआईएमआईएम को 5 लाख 23 हजार से भी ज्यादा वोट मिले.
अब महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, अलग चुनाव लड़ने वाली एआईएमआईएम के बाद चुनाव से ठीक पहले बागी हुए छोटे दलों ने भी महागठबंधन को पीछे धकेलने का काम किया. विकास साहनी की पार्टी विकासशील इंसां पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की. चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हाथ छोड़कर वीआईपी एनडीए में शामिल हुई थी. जिसका खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ा.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) से भी महागठबंधन के रिश्ते बिगड़े और उन्होंने भी चुनाव से पहले ऐलान कर दिया कि वो इस कांग्रेस-जेडीयू के गठबंधन से अलग हो रहे हैं. इसके बाद मांझी ने नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही. जिसके बाद पार्टी ने बिहार में 4 सीटों पर कब्जा किया. जो महागठबंधन के लिए भारी पड़ीं.
तो कुल मिलाकर अपनों ने ही महागठबंधन को सत्ता से दूर धकेलने का काम किया. जहां कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने सीटें कम कर दीं, वहीं बागी हुए दलों और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बाकी का काम पूरा कर दिया. अगर जोड़कर देखें तो इन सभी दलों की कुल सीटें लगभग उतनी ही हैं, जितना एनडीए और महागठबंधन की जीत-हार में अंतर है.
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