Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019रोज का डोज: चुनाव आयोग का एक्शन, जैसे ऊंट के मुंह में जीरे का फोरन

रोज का डोज: चुनाव आयोग का एक्शन, जैसे ऊंट के मुंह में जीरे का फोरन

चुनावों को वाकई आदर्श बनाना है तो चुनाव आयोग को टीएन शेषन का जमाना याद करना चाहिए

संतोष कुमार
चुनाव
Updated:
चुनाव आयोग को आदर्श आचार की गारंटी देनी होगी
i
चुनाव आयोग को आदर्श आचार की गारंटी देनी होगी
(फोटो:आई स्टॉक)

advertisement

क्या चुनाव लड़ रहे नेताओं को चुनाव आयोग से डर लगता है? क्या उन्हें इस बात का अहसास रहता है कि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कुछ गलत किया तो सजा भुगतनी होगी? इन सवालों का औचित्य समझ में आ जाएगा जब लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार कर  रहे कुछ नेताओं के बयान देखेंगे.

  • मैं कलेक्टर से मायावती के जूते साफ कराऊंगा - आजम खान, एसपी
  • आजम खान का वो बयान जो उन्होंने कथित रूप से जया प्रदा पर दिया, जिसे हम यहां लिख नहीं सकते
  • राजबब्बर के @#&$ को दौड़ा-दौड़ा कर मारूंगा - गुड्डू पंडित, बीएसपी नेता
  • भाड़ में गया कानून, आचार संहिता को भी देख लेंगे - संजय राउत, शिवसेना

सोमवार को चुनाव आयोग ने बीएसपी चीफ मायावती, यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी, एसपी नेता आजम खान और बीजेपी की नेता मेनका गांधी को चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया. इन सब पर दो से तीन दिन तक चुनाव प्रचार से दूर रहने को कहा गया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये एक्शन काफी है? इस आदेश के आने के बाद मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर ढेर सारे आरोप लगा दिए.

क्या आज एक वोटर को इस बात की तसल्ली है कि चुनाव प्रचार में सबकुछ सही तरीके से हो रहा है? क्या वाकई नेताओं का आचार आदर्श कहा जा सकता है? ऊपर दिए गए बयानों के बाद भी इन नेताओं पर कड़ी कार्रवाई न होना, इस सवाल का जवाब अपने आप दे देता है. आम तौर पर धारणा यही बन गई है कि चुनाव आयोग सिर्फ सलाह देगा, आचार संहिता के उल्लंघन पर नोटिस देगा, कोई ठोस एक्शन नहीं लेगा.

माया,योगी, मेनका और आजम पर चुनाव आयोग का एक्शन भी तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा -’क्या वाकई आपके पास ताकत नहीं है? चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा - हम आपके अधिकारों को रिव्यू करेंगे और मुख्य चुनाव आयुक्त को कोर्ट में बुलाएंगे.’ कोर्ट ने आयोग से जो पूछा है कि दरअसल वो काफी अहम है. सच्चाई ये है कि चुनाव आयोग के पास पर्याप्त अधिकार हैं. हम आपको मोहिंदर सिंह गिल बनाम चुनाव आयोग केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी दिखाते हैं -

इलेक्शन कमिशन सुपर अथॉरिटी है, रिटर्निंग ऑफिसर किंगपिन हैं, बूथ पर बैठे प्रेजाइडिंग ऑफिसर कारिंदे हैं...
<b>मोहिंदर सिंह गिल बनाम चुनाव आयोग </b>केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

संविधान के आर्टिकल 324 में चुनाव आयोग को पूरे अधिकार दिए गए हैं. चुनाव आयोग अगर चाह ले तो कोई भी नेता रास्ते से भटक नहीं सकता. भारतीय लोकतंत्र में इसके उदाहरण भी मिलते हैं. जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तो उन्होंने बिहार में बेहद ताकतवर नेता लालू प्रसाद यादव को पानी पिला दिया था. 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों के समय उन्होंने मतदान की तारीखों में चार बार बदलाव किए. लालू रैलियों से लेकर मुख्य चुनाव अधिकारी के दफ्तर तक शिकायतें करते रह गए लेकिन टीएन शेषन टस से मस नहीं हुए.

जब वोटिंग के लिए पहचान पत्र लागू करने पर नेताओं ने आपत्ति जताई तो टीएन शेषन ने कहा दिया पहचान पत्र नहीं तो चुनाव नहीं होंगे. आखिर पार्टियों को मानना पड़ा.

मोहिंदर सिंह गिल बनाम चुनाव आयोग के केस में ही सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 324 के तहत मिले चुनाव आयोग सीमाओं से परे बताया था.  कुल मिलाकर निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव हों, ये हमारे लोकतंत्र की बुनियाद हैं और लोकतंत्र की इस बुनियादी जरूरत की गारंटी देने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है. लेकिन इस बार चुनाव प्रचार के दौरान जो सब हो रहा है उससे इसकी गारंटी शायद ही मिलती है.

आखिर मतदाताओं को सीधे-सीधे धमकी दे रहीं मेनका गांधी को इतनी हल्की सजा क्यों? क्यों नहीं उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए? चुनाव आयोग ने खुद 2000  करोड़ कैश जब्त किए हैं. क्या वोटर को ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि ये पैसा जिन नेताओं के लिए था, उन्हें चुनाव लड़ने नहीं दिया जाएगा.

मोदी बायोपिक की रिलीज पर रोक का निर्देश जारी करते हुए चुनाव आयोग ने खुद मोहिंदर सिंह गिल बनाम चुनाव आयोग के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का उल्लेख किया है - ‘संविधान बनाने वालों ने चुनाव आयोग को अपने अधिकार इस्तेमाल करने के पूरे हक दिए हैं. ऐसी परिस्थितियों में जहां कानून खामोश है वहां मुख्य चुनाव आयुक्त हाथ बांधे नहीं रह सकते. वो भगवान से अपना कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरणा देने के लिए प्रार्थना नहीं कर सकते, या किसी और से शक्तियां नहीं मांग सकते. कर्तव्य के साथ अधिकार भी मिलते हैं ताकि आप अपना दायित्व ठीक से निभा सकें.’ सवाल है कि चुनाव आयोग अपने इन अधिकारों का इस्तेमाल कब करेगा. लोकसभा चुनाव 2019 से बेहतर मौका और क्या हो सकता है?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

AAP-कांग्रेस : मेल नहीं, झोल बढ़ते जा रहे

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की राह में गाठें बढ़ती जा रही हैं. कांग्रेस चाहती है गठबंधन सिर्फ दिल्ली के लिए हो, लेकिन आम आदमी पार्टी बाकी राज्यों में भी सीट शेयरिंग पर अड़ी है. यहीं मामला फंसा है. अब तक दूसरे-तीसरे  क्रम के नेता बयान दे रहे थे लेकिन अब  टॉप लीडरशिप उलझ गई है. सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद इस मामले पर ट्वीट किया.

दिल्ली में कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन का मतलब होगा बीजेपी की हार. कांग्रेस यह सुनिश्चित करने के लिए AAP को दिल्ली की 4 सीटें देने को तैयार है. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने एक और यू टर्न लिया है! हमारे दरवाजे अभी भी खुले हैं, लेकिन वक्त निकला जा रहा है....
राहुल गांधी का ट्वीट

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से इस तीखे बयान के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने जवाब दिया-

‘कौन सा U-टर्न? अभी तो बातचीत चल रही थी. आपका ट्वीट दिखाता है कि गठबंधन आपकी इच्छा नहीं मात्र दिखावा है. मुझे दुःख है आप बयानबाजी कर रहे हैं. आज देश को मोदी-शाह के खतरे से बचाना अहम है. दुर्भाग्य कि आप UP और अन्य राज्यों में भी मोदी विरोधी वोट बांट कर मोदी जी की मदद कर रहे हैं.’
केजरीवाल का ट्वीट

जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं  कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की गुंजाइश कम होती जा रही है. दोस्ती से पहले हो रहे इस झगड़े से जितने दुखी इन दोनों पार्टियों के नेता नहीं हो रहे, उससे ज्यादा खुश बीजेपी का डर हो रहा है. कांग्रेस-AAP का बढ़ता झगड़ा खासकर दिल्ली में बीजेपी का संकट घटाता जा रहा है.

योगी को अपने किले में ही इतना डर क्यों?

सोमवार को बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की 21वीं लिस्ट जारी की. इस लिस्ट में दो नामों पर चर्चा जरूरी है. बीजेपी ने गोरखपुर से भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार रवि किशन को टिकट दिया है. साथ ही संतकबीर नगर से प्रवीण निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है.ताज्जुब ये है कि जो आदित्यनाथ योगी देश भर में घूम-घूमकर बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं, उनके अपने गढ़ में बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. अपने किले को बचाने के लिए योगी हर जुगत लगा रहे हैं. बीजेपी ने गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव में उपेन्द्र दत्त शुक्ला को चुनाव मैदान में उतारा था, हालांकि उन्हें गठबंधन के उम्मीदवार प्रवीण निषाद से शिकस्त मिली थी.

अभी ये बात चल ही रही थी कि प्रवीण की निषाद पार्टी समाजवादी पार्टी  से गलबहियां कर रही हैं, योगी ने ऐसा दांव फेंका कि निषाद पार्टी बीजेपी के साथ आ गई लेकिन निषाद का डर खत्म होने के बाद भी गोरखपुर में योगी का डर खत्म नहीं हुआ.

प्रवीण को साथ मिलाकर पार्टी ने गोरखपुर के करीब 3.5 लाख निषाद वोटरों पर निशाना साधा तो ब्राह्मण रवि किशन को उतारकर 2 लाख ब्राह्मण वोट मैनेज करने की कोशिश की है. पार्टी को ये उम्मीद भी होगी कि रवि किशन का स्टार पावर भी उसके काम आएगा. गोरखपुर को लेकर योगी का डर पूरे राज्य में उनके काम और उसपर जनता के रुख की ओर इशारा करता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 15 Apr 2019,09:09 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT