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लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी विपक्ष को 2014 लोकसभा चुनाव से भी बुरी मात देती दिख रही है. विपक्ष का पूरा गेम खराब हो चुका है. लेकिन एक वक्त तक मजबूत दिख रहे विपक्ष का आखिर में ये हाल कैसे हुआ? आखिर किसने बिगाड़ा विपक्ष का गेम? इसके लिए तीन पार्टियों को जिम्मेदार माना जा सकता है. अगर इन्हें विपक्ष के लिए 'तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा' कहें तो गलत नहीं होगा.
बीएसपी अध्यक्ष मायावती विपक्ष के लिए इस लोकसभा चुनाव में विलेन साबित हुई हैं. देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की 80 लोकसभा सीटों से विपक्ष को खासी उम्मीदें थीं. एनडीए के खिलाफ यहां भी महागठबंधन बनाने की खूब तैयारी हुई, लेकिन मायावती के हठ ने कांग्रेस को महागठबंधन से दूर रखा. कांग्रेस समेत सभी लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि अगर महागठबंधन नहीं बना तो वोट कटने का सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा. लेकिन मायावती कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी. इसीलिए यूपी में मायावती विपक्ष के लिए एक स्पॉयलर साबित हुईं. अपनी पार्टी के साथ-साथ उन्होंने विपक्ष का खेल भी बिगाड़ दिया.
यूपी में महागठबंधन इसलिए भी जरूरी था क्योंकि यहां जिस भी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलती हैं, पूरे देशभर में उसका असर दिखता है. अगर यहां कांग्रेस और एसपी-बीएसपी का गठबंधन होता तो पूरे देश में विपक्षी एकता का बड़ा संदेश भी जाता.
दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की वजह से भी विपक्ष कमजोर हुआ. चुनाव से ठीक पहले दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर कई कोशिशों के बावजूद भी बात नहीं बन पाई. कांग्रेस दिल्ली में गठबंधन के लिए तैयार थी, लेकिन आम आदमी पार्टी की हरियाणा और पंजाब में भी सीटों की मांग ने पूरा खेल बिगाड़ दिया.
दिल्ली में AAP-कांग्रेस के अलग-अलग लड़ने का सबसे ज्यादा फायदा सीधे बीजेपी ने उठाया. जो नतीजों में भी दिख रहा है. दिल्ली में सातों सीटें बीजेपी के खाते में जा सकती हैं.
महाराष्ट्र में बहुजन वंचित आघाडी के संयोजक प्रकाश आंबेडकर ने चुनाव पूर्व दावा किया था कि उनकी पार्टी राज्य की 48 सीटें जीतेगी. महाराष्ट्र में कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन प्रकाश आंबेडकर की पार्टी ने चुनाव पूर्व बने गठबंधन में शामिल होने से इंकार कर दिया था. प्रकाश अंबेडकर भी केजरीवाल की तरह ज्यादा सीटें चाहते थे.
चुनाव में भी आंबेडकर ने गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस सरकार बनाने के लिए चुनाव प्रचार किया. इस वजह से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को भी नुकसान हुआ और प्रकाश आंबेडकर की पार्टी के हाथ भी कुछ नहीं लगा. आंबेडकर ने राज्य की सभी 48 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.
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