advertisement
गोवा (Goa) में सोमवार, 10 जनवरी को शोर था कि आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस (Congress) ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) से गठबंधन की पेशकश पर विचार कर रही है. लेकिन कुछ सोर्स बेस्ड न्यूज रिपोर्ट्स के आधार पर और 10 दिन बाद यह साफ हो गया कि इस कथित गठबंधन की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं.
वैसे 10 दिन राजनीति में बहुत अधिक होते हैं और गोवा में इस दौरान जो घटनाएं घटीं, उनसे देश के इस सबसे छोटे राज्य की एक दिलचस्प तस्वीर देखने को मिलती है. पता चलता है कि वहां क्या पक रहा है. 14 फरवरी को वहां 40 विधानसभा सीटों पर वोट पड़ने वाले हैं.
द क्विंट ने राजनीतिक विश्लेषकों और सीनियर पत्रकारों से बातचीत की, ताकि टीएमसी की पेशकश, कांग्रेस के इनकार, और निकट भविष्य में दोनों पार्टियों के साथ आने (या न आने) की संभावनाओं की वजहों को समझा जा सके.
इस आर्टिकल में हम इन बिंदुओं पर चर्चा करेंगे.
टीएमसी ने आखिरी मिनट में गठबंधन की पेशकश क्यों की?
क्या कांग्रेस ने टीएमसी की पेशकश को ठुकराकर गलती की है?
गठबंधन के साथ, या उसके बिना, चुनावी गणित क्या कहता है?
जनवरी के पहले हफ्ते में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की संभावनाओं ने तूल पकड़ी. 15 जनवरी को गोवा में टीएमसी की चुनाव प्रभारी महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया कि टीएमसी ने कांग्रेस को एक “निश्चित प्रस्ताव” दिया है और कांग्रेस ने जवाब देने के लिए समय मांगा है.
हालांकि कांग्रेस के सीनियर नेताओं, जैसे केसी वेणुगोपाल, पी. चिदंबरम और दिनेश गुंडुराव ने इस बात से बार-बार इनकार किया कि उन्हें कोई ठोस प्रस्ताव मिला है और वे लोग यही कहते रहे कि कांग्रेस गोवा में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी.
सीनियर पत्रकार अजय ठाकुर का कहना है, “यह टीएमसी के लिए एक रियैलिटी चेक है. गोवा एक छोटा, लेकिन ताकतवर राज्य है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप एक दिन हवाई जहाज में बैठकर यहां आएं, लोगों से कहें कि मुझे वोट दें और फिर यहां से चले जाएं. आम आदमी पार्टी (आप) यहां पिछले सात सालों से भी ज्यादा समय से अपना आधार बना रही है और उसे कुछ कामयाबी भी मिली है. अब चुनाव से ऐन पहले टीएमसी ने गोवा के लोगों के मूड और यहां की कॉफी की खुशबू को भाप लिया है.”
गोवा में अपने शुरुआती दिनों में टीएमसी ने धुआंधार अभियान छेड़ा. उसने न सिर्फ बीजेपी, बल्कि कांग्रेस पर भी निशाना साधा.
उन्होंने कहा, “मोदी कांग्रेस की वजह से ज्यादा ताकवतर बन रहे हैं. कांग्रेस बीजेपी की टीआरपी है. अगर उसने (कांग्रेस) ने कोई फैसला नहीं किया तो देश को नुकसान होगा. देश को नुकसान क्यों होना चाहिए? उनके पास बहुत से मौके थे.”
सिर्फ यही नहीं- कई कांग्रेसी नेताओं, जैसे लुईजिन्हो फलेरियो, लवू मामलेदार (यह अब वापस कांग्रेस में आ गए हैं) अलेक्सो लोरेंको ने टीएमसी का दामन थाम लिया.
यहां एडवोकेट और गोवा राज्य विधि आयोग के पूर्व सदस्य क्लियोफाटो एल्मीडा काउटिन्हो कहते हैं कि जब टीएमसी ने गठबंधन की पेशकश की तो ज्यादातर लोगों को यकीन हुआ कि ये लोग यहां खत्म हो चुके हैं और खेल से बाहर हैं.
वे कहते हैं, “प्रशांत किशोर-आईपैक फार्मूला गोवा में काम नहीं करेगा. टीएमसी की गठबंधन की पेशकश, राज्य में अपना वजूद बचाने की कोशिश थी. अगर यह मुमकिन होता तो वे 8-10 सीटों पर लड़ सकती थी, और उनमें से 1 या 2 जीत सकती थी. यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होती.”
14 जनवरी को एक लोकल टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए पी. चिदंबरम ने कहा था कि गोवा में “असली लड़ाई” बीजेपी और कांग्रेस के बीच है और टीएमसी को इस सच्चाई पर सोचना चाहिए.
उन्होंने कहा था, “अगर कोई भी बीजेपी विरोधी फ्रंट को सहयोग देना चाहता है तो उसे निश्चित रूप से कांग्रेस से संपर्क करना चाहिए. लेकिन टीएमसी ने जिस आक्रामक शैली में अभियान छेड़ा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का शिकार किया, उससे कड़वाहट ही पैदा हुई.”
शायद यही मुख्य कारण था कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया.
जैसा कि अजय ठाकुर कहते हैं, “गोवा के चुनावों में जीत का अंतर सिर्फ 50 वोट भी रहे हैं. कई सीटों पर 50-100 वोटों से भी फर्क पड़ जाता है. ऐसी स्थिति में टीएमसी, कांग्रेस, एनसीपी और आम आदमी पार्टी, सभी उसी सेक्युलर या एंटी बीजेपी वोट के लिए एक दूसरे से होड़ कर रहे हैं.”
काउटिन्हो भी यही बात दोहराते हैं, “टीएमसी उसी जगह को हथियाने की कोशिश कर रही है, जो कांग्रेस पार्टी के पास है. वे लोग मिलकर बीजेपी की जगह पर कब्जा नहीं कर रहे. यहां तक कि टीएमसी और आम आदमी पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन भी इसी वजह से एक बेतुकी बात है.”
द क्विंट को पता चला है कि कांग्रेस के आंतरिक सर्वेक्षणों के अनुसार, पार्टी को खुद ब खुद 20-22 सीट मिलने का अनुमान है. यह कई ओपिनियन पोल्स के अनुमान से एकदम उलट है जिसमें एक एबीपी-सी वोटर का पोल भी है. इसमें बीजेपी की साफ जीत का अनुमान लगाया गया है, इसके बाद आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर है और कांग्रेस को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ रहा है.
हालांकि कांग्रेस के लिए यह बात काम कर रही है कि उसमें फिर से जान आ गई है. वह महज एक विधायक तक सिमटकर रह गई है. बीजेपी के पूर्व मंत्री और कलंगुट के एमएलए माइकल लोबो के कांग्रेस में शामिल होने से पार्टी को उत्तरी गोवा में काफी तवज्जो मिली है, जहां लोबो का बहुत असर है. टीएमसी में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ने वाले कई विधायक भी घर वापसी की सोच रहे हैं.
गोवा के लोकल चैनल्स के चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से सरकार विरोधी लहर महसूस की जा रही है, करीब 60 से 65 प्रतिशत तक. यह देखना दिलचस्प है कि पांच खिलाड़ी इस जगह को छीनने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी और शिवसेना शामिल हैं, और एक नया दल भी है, रेवोल्यूशनरी गोवन्स.
द क्विंट ने राज्य के पूर्व चुनाव आयुक्त प्रभाकर टिंबले से बातचीत की. वह कहते हैं कि “टीएमसी राज्य में हलचल पैदा करने के लिए सारे दांव चल रही है और तमाम तरह के गठजोड़ की कोशिश कर रही है.”
टिंबले कहते हैं, “संयुक्त विपक्ष का मतलब है कि ये सभी पार्टियां, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी, एमजीपी, एनसीपी, शिवसेना और गोवा फॉरवर्ड, हरेक 3-4 सीटों पर लड़े. इससे बहुत ज्यादा कंफ्यूजन पैदा होगा.”
अजय कहते हैं, “महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) चुनाव के बाद बनी थी. कांग्रेस शायद गोवा में भी इस पर विचार कर सकती है.”
दूसरी तरफ काउटिन्हो कहते हैं कि सरकार विरोधी लहर के बावजूद सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और ओपिनियन पोल्स में बीजेपी टॉप पर है. वह कहते हैं, “टीएमसी-कांग्रेस भले चुनाव पूर्व गठबंधन न करें लेकिन चुनाव के बाद एक साथ आ सकती हैं. आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और टीएमसी ने एंटी बीजेपी स्पेस में भीड़ बढ़ा दी है. इससे चुनाव पूर्व गठबंधन की गुंजाइश बहुत कम है. हालांकि फिलहाल चुनाव बाद के किसी भी गठबंधन से इनकार नहीं किया जा सकता.”
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)