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निषाद पार्टी के साथ आने से गोरखपुर में बच पाएगी योगी की प्रतिष्ठा?

योगी आदित्यनाथ के सामने अपना ‘गढ़’ बचाने की चुनौती

विक्रांत दुबे
चुनाव
Published:
योगी के सामने अपना ‘गढ़’ बचाने की चुनौती
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योगी के सामने अपना ‘गढ़’ बचाने की चुनौती
(फोटो: पीटीआई)

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गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव ने योगी आदित्यनाथ को ऐसा जख्म दिया था, जिसे वो सालों तक नहीं भूल पाएंगे. इस उपचुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में योगी के पास एक मौका है, जो इस जख्म पर जीत का मरहम लगा सकता है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इस दिशा में आगे भी बढ़ते नजर आ रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने पासा फेंकते हुए निषाद पार्टी को अपने खेमे में ले लिया. एक तरह से कहें तो एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के मुंह से निषाद पार्टी को छीन लिया. 

योगी जानते हैं कि यूपी जीतकर भी अगर गोरखपुर हार गए तो उनके लिए इस जीत के खास मायने नहीं रह जाएंगे. लिहाजा योगी ने अपने सभी राजनीतिक घोड़े खोलते हुए उपचुनाव की जीत से चमकने वाली निषाद पार्टी, जो गठबंधन से कुछ घंटे पहले तक एसपी के साथ थी, उसे अपने खेमे में ला दिया है.

निषाद पार्टी के प्रवीण ने UP में रोका था BJP का विजय रथ

फूलपुर और गोरखपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी. हार इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि इन दोनों ही सीटों पर सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. लेकिन विपक्ष ने ऐसी व्यूह रचना की जिसमें दोनों दिग्गज फंस गए. कहा जाता है कि इस जीत ने विपक्ष को यूपी के अंदर फिर से खड़ा होने का हौसला दिया. बीजेपी के खिलाफ एसपी-बीएसपी करीब आए और यूपी में देखते ही देखते बाजी पलट दी. खासतौर से दो दशक से अजेय रहने वाली गोरखपुर सीट पर बीजेपी की हार ने विपक्ष का रुतबा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. योगी के लिए यह हार किसी सदमे से कम नहीं थी. विधानसभा की हाहाकारी जीत, उपचुनाव की हार में खो गई. या यूं कहें कि जीत की चमक फीकी पड़ गई. दूसरी ओर गोरखपुर में जीत के साथ ही निषाद पार्टी रातों रात सियासी फलक पर छा गई. एसपी-बीएसपी-निषाद पार्टी के गठबंधन ने बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया.

योगी के सामने ‘गढ़’ बचाने की चुनौती

जानकार बताते हैं कि गोरखपुर में अपने किले को बचाने के लिए योगी आदित्यनाथ बेहद परेशान हैं. एसपी-बीएसपी से वह जैसे-तैसे निपट लेंगे लेकिन गोरखपुर के चुनाव में अहम रोल अदा करने वाले निषादों से पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा. मगर सियासी दांवपेंच के माहिर खिलाड़ी बन चुके योगी आदित्यनाथ ने मजबूत दांव खेला और जो निषाद पार्टी, समाजवादी पार्टी के साथ बैठक पर बैठक कर रही थी, वो अचानक बीजेपी के पाले में आ गई.

दो सीटों के साथ सरकार में एंट्री पर समझौता!

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी, निषाद पार्टी को दो सीटें देने पर राजी हो गई है. इसके तहत गोरखपुर पर निषाद पार्टी के सुप्रीमो डॉ. संजय निषाद या फिर उनके बेटे प्रवीण निषाद चुनाव लड़ सकते हैं. दूसरी सीट जौनपुर की है, जहां से बाहुबली धनंजय सिंह के चुनाव लड़ने की खबर है. हालांकि एक सीट पर उसे बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ना पड़ सकता है. साथ ही बीजेपी निषाद पार्टी के सुप्रीमो संजय निषाद या फिर उनके बेटे प्रवीण निषाद को यूपी सरकार में जगह भी दे सकती है.

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पूर्वांचल में मिल सकती है अच्छी मदद

निषाद पार्टी के साथ आने से पूर्वांचल में बीजेपी को काफी मदद मिल सकती है. बीजेपी की कोशिश है कि पिछले चुनाव की तरह इस बार भी गैर-यादव ओबीसी पर पकड़ बनी रहे. इसमें खासतौर से कुर्मी, राजभर और निषाद हैं. अनुप्रिया पटेल के सहारे बीजेपी पहले ही कुर्मी जाति को अपने पाले में लाने की कोशिश कर चुकी है, अब निषाद पार्टी के भरोसे निषादों पर डोरे डालने की कोशिश हो रही है. पूर्वांचल की एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर निषाद वोटर हैं. अगर आंकड़ों की बात करें तो, पूरे प्रदेश में लगभग पांच प्रतिशत के आसपास निषाद मतदाता हैं और इनकी कई उपजातियां भी हैं. जैसे- मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप और सोरहिया.

  • यूपी में निषादों की संख्या लगभग 5 प्रतिशत के आसपास है
  • भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर, अंबेडकरनगर, अयोध्या, बस्ती, देवरिया, आजमगढ़, मछलीशहर, लालगंज, डुमरियागंज, और फतेहपुर निषाद निर्णायक भूमिका में

निषादों की सियासी हैसियत को देखते हुए हर पार्टी उन्हें अपने पाले में लाने के लिए बेचैन है. हाल ही में प्रियंका गांधी की प्रयागराज से वाराणसी गंगा यात्रा का मकसद भी कहीं ना कहीं निषाद जाति को रिझाना था.

अखिलेश के दांव से गोरखपुर सीट में फिर पेंच

बीजेपी और निषाद पार्टी के गठबंधन की खबरों के बीच समाजवादी पार्टी ने योगी आदित्यनाथ पर काउंटर अटैक कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर सीट से रामभुवाल निषाद को मैदान में उतारकर बाजी को पलट दिया है. रामभुवाल निषाद गोरखपुर के कद्दावर नेता रहे हैं. निषादों के बीच उनकी अच्छी पकड़ है, ऐसे में अगर बीजेपी संजय निषाद या फिर उनके बेटे प्रवीण को मैदान में उतारती है तो निषाद वोट का बंटना तय है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी के नाम को रोककर रखा है. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि अगर कांग्रेस ने किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को यहां से मैदान में उतारा तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है.

  • गोरखपुर में निषाद निर्णायक रोल अदा करते हैं
  • जीत उसी पार्टी की होती है जिसके साथ निषाद होते हैं
  • गोरखपुर में करीब 3.5 लाख मुस्लिम, 4.5 लाख निषाद, 2 लाख दलित, 2 लाख यादव और 1.5 लाख पासवान मतदाता हैं

निषादों को लेकर क्या है बीजेपी की रणनीति?

जानकार बता रहे हैं कि बीजेपी किसी भी कीमत पर निषादों को खोना नहीं चाहती है. इसलिए उन्हें अपने साथ रखने के लिए हर कीमत चुका रही है. बीजेपी की रणनीति पर गौर करें तो गोरखपुर में एसपी के पूर्व सांसद रहे यमुना निषाद की पत्नी राजमति निषाद और उनके बेटे अमरेन्द्र निषाद अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

सूत्रों की मानें तो फतेहपुर लोकसभा सीट से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति का टिकट पार्टी ने सिर्फ इसलिए नहीं काटा है क्योंकि वो निषाद बिरादरी से आती हैं. बात प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र से सटी हुई लोकसभा सीट मछलीशहर की करें तो बीजेपी के रामचरित्र निषाद सांसद हैं. रामचरित्र निषाद बिरादरी में अच्छी पैठ रखते हैं और सूत्रों की मानें तो खराब परफॉर्मेंस के बाद भी उन्हें टिकट दिया जा सकता है.

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