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गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 (Gujarat Elections 2022) की बिसात बिछ गयी है और राजनीतिक गलियारों में बढ़ते सियासी पारे के बीच हर तिकड़म अपनाए जा रहे हैं. बीजेपी के लिए पीएम नरेंद्र मोदी डोर-टू-डोर कैंपेन में व्यस्त हैं तो AAP के लिए सीएम केजरीवाल भी दिल्ली से अप-डाउन कर रहे हैं. प्री-पोल सर्वे और राजनीतिक एक्सपर्ट एक बार फिर गुजरात में बीजेपी की लहर बता रहे हैं. लेकिन गुजरात में ऐसे 7 जिले हैं जहां भगवा पार्टी के लिए राह आसान नहीं रही है. 2017 के पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी का इन 7 जिलों में खाता भी नहीं खुला था. समझने की कोशिश करते हैं कि यहां पिछली बार मोदी फैक्टर काम क्यों नहीं कर पाया था और इस बार क्या कुछ समीकरण दिख रहे हैं?
गुजरात के अमरेली जिले में 2017 के चुनावों में बीजेपी कांग्रेस से पूरी तरह मात खा गयी थी और इसमें आने वाली पांचों विधानसभा सीटों पर हार गई थी. इस बार सत्ताधारी भगवा पार्टी इनमें से कुछ सीटों पर जीत हासिल कर अपनी प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करेगी क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जो कभी बीजेपी का गढ़ भी था.
2017 के चुनाव में पाटीदार कोटा आंदोलन का मुद्दा हावी था. बीजेपी को मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा और वह अमरेली जिले में खाली हाथ लौटी. यह जिला भी शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए आंदोलन के केंद्र में से एक था.
फेरबदल का फैक्टर: बीजेपी के लिए राहत की बात है कि इस बार के चुनाव में पाटीदार कोटा आंदोलन का मुद्दा हावी नहीं है. बीजेपी के लिए आम आदमी पार्टी की उपस्थिति भी कारगर साबित हो सकती है.
पीएम मोदी के ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ और सरदार सरोवर डैम प्रोजेक्ट के गढ़ नर्मदा जिले में भी बीजेपी को 2017 के चुनावों में करारी शिकस्त मिली थी. डेडियापाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के सहयोग से भारतीय ट्राइबल पार्टी के अध्यक्ष महेश वसावा ने बीजेपी के सीटिंग विधायक मोतीसिंह वसावा को 21,700 मतों से हराया था जबकि नांदोड़ सीट पर भी बीजेपी के सीटिंग विधायक और वन एवं आदिवासी विकास राज्य मंत्री शब्दशरण तडवी कांग्रेस के प्रेमसिंह वसावा से हार गए थे.
फेरबदल का फैक्टर: बीजेपी के लिए मुश्किल है कि यहां के आदिवासियों को पीएम मोदी के टूरिज्म और रोजगार के वादे नहीं खेती पर निर्भर उनकी आजीविका के लिए वो जमीन वापस चाहिए जो विकास के नाम पर उनसे ले लिए गए. बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती यह भी है कि AAP ने दोनों सीटों से भारतीय ट्राइबल पार्टी के प्रभावशाली पूर्व नेताओं को मैदान में उतारा है. AAP ने नांदोड़ उम्मीदवार प्रफुल्ल वसावा ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था, जबकि डेडियापाड़ा से उम्मीदवार चैतर वसावा भी जमीन पर मजबूत हैं.
आदिवासी बहुल डांग विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. 2017 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार मंगल गावित ने बीजेपी के विजय पटेल को 768 वोटों से हराया था. हालांकि, आगे मंगल गावित ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और बीजेपी ने 2020 के उपचुनाव में विजय पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सूर्यकांत गावित के खिलाफ 60,095 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी.
इसबार कांग्रेस ने डांग जिले से पूर्व कांग्रेस विधायक चंद्रभाई पटेल के बेटे मुकेश पटेल को मैदान में उतारा है जबकि AAP ने सुनील गामित पर भरोसा जताया है. बीजेपी की ओर से सीटिंग विधायक विजय पटेल ही उम्मीदवार हैं.
फेरबदल का फैक्टर: उपचुनाव में मिली जीत के बाद यहां बीजेपी की स्थिति मजबूत लग रही है. 2017 के चुनाव में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 14 सीटों में से केवल पांच जीतने वाली बीजेपी (बाद के उपचुनाव में 2 और) के लिए कांग्रेस-AAP के बीच का मुकाबला संजीवनी का काम कर सकता है.
2017 के चुनाव में तापी जिले के अंदर भी बीजेपी का खाता नहीं खुला था और पार्टी को यहां की दोनों विधानसभा सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा था. 2017 में कांग्रेस के सुनील गामित ने निजार सीट बीजेपी के कांटी गामित से 23,000 वोटों से छीन ली थी जबकि व्यारा सीट पर भी कांग्रेस के ईसाई उम्मीदवार पुनाजी गामित ने बीजेपी के अरविंदभाई चौधरी को 24,414 वोटों से हराया था.
फेरबदल का फैक्टर: बीजेपी ने इस बार अपनी रणनीति बदली है और गुजरात चुनाव के पिछले 20 वर्षों में पहली बार व्यारा से एक ईसाई उम्मीदवार को खड़ा किया है. बीजेपी के मोहन कोंकणी का मुकाबला व्यारा से चार बार के कांग्रेस विधायक पुनाजी गामित से होगा. मुकाबले को AAP उम्मीदवार बिपिन चौधरी त्रिकोणीय बना रहे हैं.
अरावली जिला साबरकांठा से अलग कर 2013 में ही अलग जिला बना. इस जिले में मोडासा विधानसभा, भीलोड़ा विधानसभा सीट, बायड विधानसभा सीट आती हैं और तीनों पर ही बीजेपी को 2017 के चुनावों में हार मिली थी.
बायड से गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला के बेटे सिंह वाघेला कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी ने बेन परमार को टिकट दिया है. आदिवासी बहुल सीट भीलोड़ा पर कांग्रेस के उम्मीदवार डॉक्टर अनिल जोशीआरा चुनाव जीतते रहे थे और कोरोना के बीच उनकी मौत हो गयी. इस बार यहां पर कांग्रेस ने राजेंद्र पारगी को चुनावी मैदान में उतारा है तो बीजेपी की तरफ से पूनमचंद बरांडा मैदान में हैं.
पुल हादसे के बाद से ही खबरों में चल रहे मोरबी जिले की तीनों विधानसभा सीट- मोरबी, टंकारा और वांकानेर पर बीजेपी को 2017 में हार का सामना करना पड़ा था.
मोरबी सीट से 2017 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर बृजेश मेरजा ने बीजेपी को हराया था. हालांकि, मेरजा ने 2020 में पाला बदल लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार बनकर मेरजा ने कांग्रेस के जयंतीलन पटेल को हराया था.
इसके अलावा वांकानेर सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व कायम है और 15 साल से BJP की यहां एंट्री नहीं हुई है. देखना होगा कि कांग्रेस उम्मीदवार और सीटिंग विधायक मोहम्मद जावेद पीरजादा पार्टी के लिए जीत का चौका लगा पाते हैं या नहीं.
फेरबदल का फैक्टर:
मोरबी पुल हादसे में 153 लोगों की मौत के बाद बीजेपी सरकार पर खूब सवाल उठे थे. हालांकि पीएम मोदी ने हादसे के बाद यहां का दौरा कर नाराजगी को दूर करने की कोशिश की थी. बीजेपी ने भी जिस कांतिलाल अमृतिया को टिकट दिया है उनका हादसे के दौरान नदी में छलांग लगाकर लोगों को बचाने का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था.
2017 में भगवा पार्टी गिर सोमनाथ जिले की सभी 4 सीटें - सोमनाथ, तलाला, कोडिनार और ऊना - कांग्रेस से हार गई थी.
याद रहे कि 1990 के दशक में बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से ही अपनी रथ यात्रा निकाली थी. 2007 के चुनाव में भी पार्टी ने यहां 4 में से 3 सीटें जीती थीं लेकिन उसके बाद से यहां पार्टी का प्रदर्शन खराब होता गया है.
फेरबदल का फैक्टर: ANI से बात करते हुए सोमनाथ से बीजेपी उम्मीदवार मानसिंह परमार ने कहा है कि 2017 में बीजेपी ने यहां जाति के फैक्टर को नजरअंदाज कर दिया था लेकिन इस बार पार्टी ने चारों सीट पर इस बात का ध्यान रखा है.
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