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'गांधी' बिना कांग्रेस का पहला चुनाव:गुजरात फेल-हिमाचल पास,निकला जीत का फॉर्मूला?

कांग्रेस के लोकल नेताओं ने कितना कमाल किया?

शादाब मोइज़ी
गुजरात चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>राहुल और प्रियंका भारत जोड़ों यात्रा पर साथ</p></div>
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राहुल और प्रियंका भारत जोड़ों यात्रा पर साथ

(फोटो: कांग्रेस)

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"कांग्रेस का आधार अब भी ‘परिवारवाद’ है." ये वो बात है जो बीजेपी और उसके नेता न जाने कब से अपनी रैलियों, चुनाव प्रचार, संसद में भाषण, नुक्कड़, टीवी डिबेट, बातचीत में करते रहे हैं. लेकिन इस बार यानी गुजरात से लेकर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बीजेपी से उसका परिवारवाद का मुद्दा छीन लिया.

इन दोनों ही जगहों के विधानसभा चुनाव के प्रचार में गांधी परिवार फ्रंटफुट पर खेलती नजर नहीं आई. तो ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस कितनी कामयाब हुई और कितनी फेल?

'गांधी परिवार के बिना' का मतलब यहां राहुल और सोनिया गांधी का चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका से दूर रहना हुआ.

कांग्रेस को क्या फायदा हुआ?

दरअसल, गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे अब आ चुके हैं. बीजेपी ने अपने गुजरात में अपने और कांग्रेस के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. बीजेपी ने गुजरात के इतिहास में सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी बन गई है, बीजेपी का लगभग 53% वोट शेयर है, जो कि गुजरात में हुए किसी भी विधानसभा चुनाव में BJP के लिए सबसे ज्यादा है.

वहीं कांग्रेस का ये अबतक का सबसे खराब परफॉर्मेंस है. 2017 के चुनावों में 42 फीसदी वोट लाकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने वाली कांग्रेस इस बार सिर्फ 27% वोट ला पाई है. कांग्रेस 17 सीट ही जीत पाने में कामयाब रही.

ये तो हो गए आंकड़े, अब आते हैं गांधी परिवार वाले सवाल पर. दरअसल, इस पूरे चुनाव में गांधी परिवार के चशम-ओ-चिराग राहुल नदारद दिखे. राहुल गांधी कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा पर हैं. जिस वजह से उन्होंने सिर्फ सूरत और राजकोट में चुनाव प्रचार किया. अब ये अलग बात है कि एक राज्य का चुनाव नजदीक था और पार्टी का सबसे बड़ा नेता कथित दूर की सोचकर चुनाव प्रचार से दूर था.

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वहीं कांग्रेस के नए बने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आखिरी वक्त में चुनावी प्रचार में उतरे. इसका भी असर गुजरात चुनाव में पड़ा ही होगा.

वहीं अगर पिछले चुनाव को देखें तो राहुल गांधी के आक्रामक प्रचार और पाटीदार आंदोलन, दलित अत्याचार के मुद्दे से निकले नेताओं को साथ लाने की स्ट्रैटेजी से कांग्रेस ने 2017 में 77 सीटें जीती थीं, और बीजेपी सिर्फ 99 पर रह गई थी. लेकिन इस बार राहुल का गुजरात में एक्टिव न होना भी पार्टी को कुछ नुकसान तो कर ही गया.

गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष

बता दें कि 1999 के बाद यह पहला मौका है या कहें पहला चुनाव है जहां कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखता है. 1999 में सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी को हटाने के बाद अध्यक्ष पद संभाला था. दलित समाज से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. ऐसे में ये चुनाव उनके लिए भी अहम है.

हिमाचल प्रदेश में गांधी परिवार के बिना कांग्रेस?

गुजरात की तरह ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने खुद को विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर रखा. हालांकि प्रियंका गांधी ने कई जगह सभाएं की और पार्टी की रणनीति बनाने में हिस्सा लिया. प्रियंका गांधी की रैलियों में भीड़ भी आई. लेकिन कांग्रेस ने इस पूरे प्रचार को गांधी परिवार पर फोकस नहीं होने दिया.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने लोकल नेताओं पर भरोसा जताया. लोकल मुद्दों पर बीजेपी को घेरने की रणनीति बनाई. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल से आते हैं, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के की राजनीतिक विरासत भी यहीं से जुड़ी है, लेकिन फिर भी बीजेपी कांग्रेस के सामने हार गई.

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