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Haryana Election Result 2024: हरियाणा में मंगलवार, 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती शुरु हुई तो कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी सच साबित होती दिखी. कांग्रेस कार्यालय में जश्न शुरू हो गया. नेता-कार्यकर्ता जश्न मनाने लगे. लेकिन देखते ही देखते- वक्त, हालात और जज्बात... सब बदल गए. सभी एग्जिट पोल्स को गलत साबित करते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जीत की ऐतिहासिक हैट्रिक लगाई है. हरियाणा के 57 साल के इतिहास में पहली बार कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. वहीं सत्ता में वापसी का सपना देख रही कांग्रेस को फिर निराशा हाथ लगी.
चलिए आपको बताते हैं कि हरियाणा में कैसे सभी एग्जिट पोल फेल साबित हुए हैं, कांग्रेस से कहां चूक हुई और बीजेपी कैसे बाजीगर बनी? इसके साथ ही प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में किस पार्टी का कैसा प्रदर्शन रहा वो भी बताएंगे?
हरियाणा में इस बार सियासी मुकाबला 'जाट बनाम गैर जाट' का था. रोहतक, सोनीपत, झज्जर, जींद, भिवानी जाट लैंड कहलाते हैं. वहीं पानीपत, सिरसा, हिसार, कैथल और फेतहाबाद में भी इस समुदाय की मजबूत पकड़ है. जाट बेल्ट कहे जाने वाले इन 10 जिलों में विधानसभा की कुल 46 सीटें हैं.
नतीजों पर नजर डालें तो जाट बेल्ट में बीजेपी और कांग्रेस दोनों का ग्राफ बढ़ा है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने 15 सीटें जीती थी, जबकि इस बार उसे 19 सीटें मिली हैं. कांग्रेस ने इस क्षेत्र में 5 सीटों की बढ़ोतरी के साथ 23 सीटों पर कब्जा जमाया है. तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी इसी क्षेत्र से जीते हैं.
इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) ने अपनी दोनों सीटें इसी क्षेत्र में जीती हैं. पार्टी का वोट शेयर भी बढ़ा है. 2019 के 2.44 फीसदी से बढ़कर यह 4.41 फीसदी हो गया है.
INLD ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ गठबंधन किया था. माना जा रहा है इससे जाट-दलित वोट बैंक में डेंट लगा है, नहीं तो कांग्रेस को फायदा होता.
पिछले चुनाव और इस चुनाव के वोट शेयर की तुलना करें तो पता चलता है कि जाट बेल्ट में जेजेपी के दम पर कांग्रेस का ग्राफ काफी बढ़ा है. बीजेपी के भी वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई है. 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 29 फीसदी था, जो इस बार बढ़कर 41 फीसदी हो गया है. बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले थे, जो तीन फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 37 फीसदी पर पहुंच गया है. वहीं जाटों ने दुष्यंत चौटाला को नकार दिया है. पिछली बार 20 फीसदी वोट पाने वाली जेजेपी इस बार मात्र 1.56 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी है.
एक और गौर करने वाली बात यह है कि, कांग्रेस पार्टी के 50 फीसदी से भी कम जाट उम्मीदवार चुनाव जीत पाए हैं. कांग्रेस ने 27 जाट उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिनमें से मात्र 12 ही जीत पाए हैं. इसका मतलब है कि कांग्रेस के जाट उम्मीदवारों के खिलाफ बीजेपी के गैर-जाट वोटर्स खड़े थे.
हरियाणा में ओबीसी की आबादी करीब 40 फीसदी है, जबकि 20 फीसदी आबादी दलित है. कुल मिलाकर प्रदेश में गैर-जाटों की संख्या 75 प्रतिशत है.
ओबीसी वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी ने पहले नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया. फिर सैनी के नेतृत्व वाली सरकार ने ग्रुप-ए और ग्रुप-बी के सरकारी पदों पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 15% से बढ़ाकर 27% कर दिया. सैनी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ओबीसी की क्रीमी लेयर को ₹6 लाख से बढ़ाकर ₹8 लाख कर दिया.
दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र में ओबीसी समुदाय का प्रभाव है. इस क्षेत्र में तीन लोकसभा सीटें हैं- गुरुग्राम, फरीदाबाद और भिवानी-महेंद्रगढ़. कुल 90 सीटों में से 27 विधानसभा सीटें इसी क्षेत्र में हैं. 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदाता शहरी इलाकों में रहते हैं.
चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने पाल, कश्यप और कम्बोज जैसी कई ओबीसी जातियों के साथ बैठकें की थी. माना जा रहा है कि बीजेपी को इसका भी फायदा मिला है. इसके साथ ही उन्होंने एससी समुदाय के साथ भी बैठकें कीं, खास तौर पर रविदासी, जोगी, बाजीगर और अन्य जातियों के साथ.
प्रदेश में 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. पिछले बार के मुकाबले कांग्रेस ने दो सीटोंं की बढ़ोतरी के साथ 9 पर जीत दर्ज की है. उसका वोट शेयर 44 फीसदी है. बीजेपी ने भी 3 सीटों का इजाफा किया है. पार्टी ने 43 फीसदी वोट शेयर के साथ 8 सीटें जीती हैं.
यहां भी जेजेपी को बड़ा नुकसान हुआ है. पिछली बार 4 सीट जीतने वाली जेजेपी को इस बार एक भी आरक्षित सीट नहीं मिली है. पार्टी का वोट शेयर करीब 1 फीसदी है.
मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने भी चुनाव लड़ा था, लेकिन कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकी. 2019 के मुकाबले बीएसपी का वोट शेयर दो फीसदी गिर गया है. पार्टी को 1.82 फीसदी वोट मिले हैं.
जब गुरमीत राम रहीम को 15वीं बार पैरोल दी गई तो बीजेपी की काफी आलोचना हुई, साथ ही डेरा सच्चा सौदा प्रमुख का समर्थन लेने का आरोप भी लगाया गया.
डेरा अनुयायियों के गढ़ माने जाने वाले 28 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 पर कांग्रेस, 10 पर बीजेपी, दो पर इंडियन नेशनल लोकदल और एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है.
हरियाणा के 6 जिलों- फतेहाबाद, कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, करनाल और हिसार में फैले इन 28 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को बीजेपी से अधिक सीटें मिलीं हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चुनाव से पहले डेरा प्रमुख ने अपने अनुयायियों से बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील भी की थी. हालांकि, बीजेपी को इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ है.
अगर नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में एक फीसदी से भी कम का अंतर है, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच 11 सीटों का फासला है. वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) का वोट शेयर 1.79 फीसदी है.
चुनाव से पहले दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चाएं चल रही थी, लेकिन बात नहीं बन सकी. जानकारों का मानना है कि अगर दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा होता तो बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ता.
एक दशत तक सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी के लिए वोट शेयर में बढ़ोतरी कोई छोटी बात नहीं है. बीजेपी का वोट शेयर 2019 में 36 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में लगभग 40 प्रतिशत हो गया है.
हालांकि, कांग्रेस का वोट शेयर इससे कहीं ज्यादा बढ़ा है- 2019 में 28 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 39 प्रतिशत तक पहुंच गया है. लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि कांग्रेस- जेजेपी, आईएनएलडी, बीएसपी और निर्दलीयों की कीमत पर बढ़ी है, न कि बीजेपी की. कांग्रेस बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने में नाकाम रही है, जिसकी वजह से सत्ता में वापसी का उसका इंतजार और बढ़ गया है.
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