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"भारत में जाति नहीं जाती है." चाहे आप रेगिस्तान में चले जाइए या पहाड़ पर. पहाड़ से याद आया पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव. फिर मन में सवाल आया कि क्या बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा की तरह पहाड़ी इलाके में भी जाति की राजनीति होती है? या जाति कोई चुनावी फैक्टर है? इन सवालों के जवाब इस आर्टिकल में आपको आगे मिलेंगे.
आपको पढ़ने और समझने में आसानी हो इसलिए इस आर्टिकल को हम अलग-अलग हिस्सों में बांट रहे हैं. ताकि आपको हर सवाल का जवाब साफ-साफ मिल सके. जैसे कि ये खबर हम क्यों लिख रहे हैं? पूरा मामला क्या है? बड़ी बात क्या है?
ये खबर क्यों जरूरी: हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर 2022 को विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं. ऐसे में जाति का समीकरण जानना जरूरी है ताकि वोटिंग पैटर्न समझा जा सके.
बड़ी बात: हमने आर्टिकल के शुरू में जाति को लेकर सवाल पूछा था कि हिमाचल प्रदेश में क्या बाकी राज्यों की तरह जाति फैक्टर है, दरअसल इस सवाल के जवाब के लिए हिमाचल की जातियों को जानना होगा. 2011 की जनगणना के मुताबिक हिमाचल प्रदेश की आबादी 70 लाख से भी कम है.
शायद यही वजह है कि राज्य ने 6 में से 5 राजपूत मुख्यमंत्री दिए हैं. अब अगर दूसरी जातियों की बात करें तो करीब 25 फीसदी अनुसूचित जाति, 5 फीसदी अनुसूचित जनजाति, 13-14 फीसदी ओबीसी और 5 फीसदी (करीब 2 फीसदी मुसलमान) दूसरे समुदाय से हैं.
अहम सवाल: क्या जाति फैक्टर है? इसका जवाब हां और न दोनों में है. क्योंकि हिमाचल प्रदेश में जातिय हिंसा या जाति को लेकर वोटिंग पैटर्न कम दिखता है. लेकिन मुख्यमंत्री आज तक सवर्णों के अलावा कोई नहीं बना.
यहां एक बात और देखने वाली है कि बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह यहां ओबीसी, दलित या पिछड़ी जातियों का जाति के आधार पर कोई बड़ा नेता नहीं खड़ा हुआ.
विस्तार: भले ही राजपूत और ब्राह्म्ण सत्ता की चाभी लिए बैठे हों, लेकिन करीब 30 फीसदी SC/ST आबादी जीत-हार के लिए बड़ा फैक्टर है. राज्य में दलित और आदिवासी जोकि करीब कुल आबादी का 30 फीसदी हैं. लाहौल स्पीति जिले में सबसे ज्यादा 81% आबादी अनुसूचित जनजाति यानी कि ST है. वहीं किन्नौर में 57 % आबादी एसटी है. अनूसूचित जाति (SC) की सबसे ज्यादा आबादी 30.34% सिरमौर जिले में रहती है. इसके बाद मंडी में 29%, सोलन में 28%, कुल्लू 28%, शिमला में 26% जिले में अनूसूचित जाति की आबादी है.
अनुसूचित जाति के वोटरों को रिझाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही कोशिशों में लगी है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अभी हाल ही में दलित शिक्षाविद डॉक्टर सिकंदर कुमार को बीजेपी ने राज्यसभा भेजा है. यही नहीं साल 2020 में बीजेपी ने दलित समुदाय से आने वाले सुरेश कश्यप को हिमाचल प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया था. सुरेश कश्यप शिमला संसदीय सीट से लोकसभा सांसद हैं और पच्छाद विधानसभा सीट से दो बार विधायक भी रह चुके हैं.
वहीं अगर राजपूतों की बात करें तो लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में इनकी काफी आबादी है और मंडी, शिमला, कुल्लू, हमीरपुर और कांगड़ा के कुछ हिस्सों में उनका दबदबा है.
2017 के विधानसभा चुनावों में राजपूतों की पसंदीदा पार्टी बीजेपी रही थी, उस चुनाव में बीजेपी को राजपूतों का 49% वोट मिला था, कांग्रेस के खाते में 36% वोट गया था. हालांकि अगर आरक्षित सीटों की बात करें तो साल 2017 में कुल 17 आरक्षित सीटों में से 13 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी.
लेकिन वोट फीसद की बात करें तो साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 48% दलित वोट कांग्रेस के खाते में गया था और 47% वोट BJP को मिला था.
पिछले चुनाव में OBC मतदाताओं की पसंदीदा पार्टी बीजेपी रही थी, 2017 में बीजेपी को OBC का 48% वोट मिला था, वहीं कांग्रेस के खाते में 43% वोट गया था, इसके अलावा दूसरी पार्टियों को करीब 9% वोट मिला था.
हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने एक अहम आरक्षण कार्ड खेला. हिमाचल का हाटी समुदाय की अनुसुचित जन जाति की सूची में शामिल किया. हाटी समुदाय ने आरक्षण को लेकर चुनाव के बहिष्कार की बात कही थी.
हाटी समुदाय सिरमौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों- शिलाई, पांवटा, रेणुका और पछड़ में केंद्रित है. लेकिन वे शिमला और सिरमौर में फैली कम से कम नौ सीटों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि हाटी समुदाय को आरक्षण दिए जाने के फैसले से अनुसूचित जाति के लोग नाराज हैं. दलितों का कहना है कि हाटी समुदाय के अनुसूचित जनजाति में शामिल होने से उनके खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज नहीं होगा.
ऐसे में भले ही हाटी समुदाय को बीजेपी का समर्थन मिल जाए लेकिन इस मुद्दे पर दलितों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है.
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Published: 05 Nov 2022,04:04 PM IST