मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'INDIA' ने एकतरफा चुनाव कैसे पलटा? 6 फैक्टर में छुपा है राहुल-अखिलेश, ममता का गेम प्लान

'INDIA' ने एकतरफा चुनाव कैसे पलटा? 6 फैक्टर में छुपा है राहुल-अखिलेश, ममता का गेम प्लान

Lok Sabha Election 2024: राहुल गांधी ने कांग्रेस को दोगुनी सीटों पर कैसे पहुंचाया.

आशुतोष कुमार सिंह
चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>India Alliance Lok Sabha Election 2024</p></div>
i

India Alliance Lok Sabha Election 2024

(Photo- नमिता चौहान)

advertisement

340, नहीं 370, अरे नहीं 400 पार होगा... लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के पहले ऐसे हर दांव बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की प्रचंड जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे. जब एग्जिट पोल इसी तर्ज पर आए तो बीजेपी के लिए 'बागों में बहार' ही थी. न्यूज चैनल्स पर एंकर्स और बीजेपी के प्रवक्ता, दोनों मुस्कान को मंद रखने की जहमत नहीं उठा रहे थे. शेयर मार्केट नजर बनाए था और कॉन्फिडेंस से पैसे लगा रहा था. कट टू दो दिन बाद कहानी अलग थी.

एकतरफा कहे जाने वाले मुकाबले को बराबरी की लड़ाई बनाने की कहानी किसने लिखी? आखिर राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने यूपी में ऐसा क्या किया कि पूरा चुनाव ही पलट गया?

बीजेपी धर्म पर खेलती रही, विपक्ष चुनाव को जनता के मुद्दे पर लाता रहा

राम मंदिर, मंगलसुत्र, घुसपैठिए, मुस्लिम.... इलेक्शन कमिशन को छोड़कर शायद सबको दिख रहा था कि पीएम मोदी और बीजेपी के लिए धर्म चुनावी मुद्दा है. पार्टी मंच से लगातार इंडिया गुट को इस मुद्दे पर घेर रही थी.

बीजेपी जनता को सिर्फ अपना कथित धार्मिक रिपोर्ट कार्ड नहीं दिखा रही थी बल्कि वो बार-बार इशारा विपक्ष की पार्टियों की ओर भी कर रही थी जिन्होंने राम मंदिर के उद्घाटन को राजनीतिक समारोह बताकर नकार दिया था. इसी कड़ी में आगे मछली, मुस्लिम और मंगलसूत्र जैसे प्रहार आते गए.

इसके बावजूद राहुल से लेकर अखिलेश तक ने बीजेपी की पिच पर खेलने से इंकार कर दिया. उन्होंने चुनाव महंगाई, बेरोजगारी और जातीय जनगणना जैसे मुद्दे पर लड़ा. विपक्ष कहता रहा कि उसके लिए धर्म निजी आस्था का विषय है.

यूपी में पेपर लीक हुआ तो राहुल मंच पर ही अभ्यर्थी को माइक पकड़ा रहे थे. इंडिया गुट एकसुर में अग्निवीर योजना को खत्म करने का वादा कर रहा था.

मोदी का फ्रंटफुट पर सामना, राहुल से अखिलेश तक एग्रेसिव प्रचार  

खटा-खट, खटा-खट और खटा-खट. इंडिया गुट को 'मोदी फैक्टर' का तोड़ चाहिए था और राहुल से अखिलेश तक ने फ्रंटफुट पर खेलते हुए ठीक वहीं किया. मोदी के एग्रेसिव प्रचार का जवाब उसी अंदाज में दिया. 2014 और 2019 में सोशल मीडिया के एलगोरिदम जिस राहुल गांधी को इमैच्योर करार दिया जा रहा था वो 5 साल बाद मंच से मोदी को ललकार रहे थे. जिस राहुल की फिसली जुबान को मीम बनाकर राइट विंग के 'ट्विटरवीर' ट्रोल करते थे अब वो राहुल खुद पीएम मोदी के भाषणों की बातों को निकालकर मंच से निशाना साध रहे थे. अब सोशल मीडिया के एलगोरिदम में राहुल नैरेटिव बदल चुके थे.

कुछ ऐसा ही अप्रोच इंडिया गुट के दूसरे बड़े नेताओं का रहा. तेजस्वी ने अपने पिता लालू वाला अंदाज अपनाया. वो मंच पर बीजेपी और सीधे मोदी पर निशाना साधते हुए गाना सुना रहे थे. कोई कसर बाकी रही तो स्पीकर से मोदी के पुराने वादों को चलाकर चुटकी ले रहे थे.

अखिलेश से केजरीवाल तक सबकी राजनीतिक बैटिंग का स्टाइल यही रहा. ऐसे में जनता के सामने मैसेज यही गया कि इंडिया गुट पिच पर टिकने के लिए आया है और उसे आमने-सामने की टक्कर से कोई गुरेज नहीं है.

मनमुटाव, अलग लड़ने की जिद लेकिन फिर भी गठबंधन बना रहा

मैं वेज हूं लेकिन चिकन की ग्रेवी-ग्रेवी खा लेता हूं. कुछ यही हाल था इंडिया गुट में शामिल कुछ पार्टियों का- वे गठबंधन में भी थीं और चुनावी मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ भी. 'मैं गठबंधन में हूं' कहने के साथ ही ममता बनर्जी उसी लाइन में बंगाल की जंग अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकीं थी.

ऐसा ही हाल पंजाब में था. केजरीवाल के लिए दिल्ली और हरियाणा ग्रेवी थी यानी वो यहां कांग्रेस के साथ गठबंधन को तैयार हो गए लेकिन पंजाब में जिससे सत्ता की चाबी छिनी थी उससे हाथ मिलाने को राजी न हुए. नेशनल कॉन्प्रेंस और पीडीपी, दोनों इंडिया गुट में शामिल थीं लेकिन कश्मीर में दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे.

ये सब होने के बावजूद अपने-अपने राज्य की इन प्रमुख शक्तियों ने गठबंधन नहीं छोड़ा. जनता के बीच एक इमेज गया कि ये 'साथ-साथ' हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मोदी के सामने चेहरा न तय करके तुलना से बच गए

मोदी नहीं तो कौन? बार-बार उठते यह सवाल सिर्फ टीवी पर बैठे एंकर्स या फिर बीजेपी के प्रवक्ता के नहीं थे. चाय की टपरी पर बैठी जनता भी यह पूछ रही थी. और यह सवाल सिर्फ इस बार के चुनाव में नहीं, 2019 में भी पूछा गया. इंडिया गठबंधन की ओर से इसका जवाब नहीं आया. अब नतीजों को देख रहा है कि इंडिया गठबंधन की यह रणनीति काम आई.

मोदी के सबसे कट्टर आलोचक भी इसे स्वीकार करेंगे कि पिछले 10 सालों में मोदी ने खुद को ब्रांड के रूप में स्थापित कर लिया है. बीजेपी इस बार के चुनाव में सरकार के काम से ज्यादा 'मोदी की गारंटी' के नाम पर वोट मांग रही थी. खुद पीएम मोदी ने अपने 155 चुनावी रैलियों में 2862 बार 'मोदी' कहा. इसका जवाब में जनता के सामने चेहरा रखने की जगह इंडिया गुट ने संयुक्त मोर्चा खड़ा किया. मोदी के सामने चेहरा न तय इंडिया गुट मोदी से तुलना से बच गया.

संविधान और सामाजिक न्याय की बात

राहुल गांधी मंच पर जब जा रहे थे तो उनके हाथ में संविधान था. राहुल बार-बार बोल रहे थे कि यह संविधान बचाने का चुनाव है. इंडिया गुट बीजेपी पर आरोप लगा रहा था कि अगर तीसरी बार मोदी सरकार आती है तो आरक्षण खत्म हो जाएगा. मजबूरन मोदी को भी आश्वासन देना पड़ा कि ऐसा कोई इरादा नहीं है.

सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना और 'जितनी आबादी उतना हक' का नारा इंडिया ब्लॉक के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा. बिहार में जाति जनगणना करने के बाद डेटा जारी हुआ तो राहुल से तेजस्वी तक उसका हवाला देकर दलितों और पिछड़े वर्ग को बताते रहे कि तमाम मोर्चों पर आपकी हिस्सेदारी आबादी के अनुपात में नहीं है.

इस बीच बीएसपी मैदान में नहीं दिख रही थी, अखिलेश-तेजस्वी जैसे नेता गठबंंधन में ही थे. ऐसे में इस रणनीति ने इंडिया गुट को दलित-OBC वोट के करीब कर दिया.

यूपी में पीडीए की सोशल इंजीनयरिंग

इंडिया गुट ने यूपी में बड़ा माइलेज हासिल किया है. इसके लिए अखिलेश यादव क्रेडिट ले सकते हैं. उन्होंने जिस तरह टिकट बंटवारा किया उसमें पीडीए की सोशल इंजीनयरिंग दिखी. पीडीए यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक

एसपी के 62 उम्मीदवारों में से यादव समुदाय के केवल 5 उम्मीवार थे. जबकि 2019 में एसपी के 37 उम्मीदवारों मे 10 यादव चेहरे थे.

ऐसा करके समाजवादी पार्टी ने अपने मूल यादव-मुस्लिम वोट बैंक को तो बनाए रखा लेकिन साथ ही बीजेपी के गैर-यादव ओबीसी वोट में भी सेंध लगा दी. वोट शेयर के मामले में समाजवादी पार्टी भले बीजेपी से पीछे है लेकिन सीट कहीं ज्यादा.

अभी इस कहानी में कई टर्न बाकि हैं. फाइनल नतीजे सामने आने के पहले ही बैठकों का दौर शुरू हो गया. नबंर बीजेपी और एनडीए के पाले में नजर आ रहा लेकिन इंडिया गठबंधन की पार्टियां एक और आखिरी लड़ाई के लिए तैयार नजर आ रही है. क्या पता तरकश में एक और तीर बाकी हो.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT