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Lok Sabha Election Results 2024: भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को मामूली बहुमत मिलता दिख रहा है. यह साफ प्रतीत होता है कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत के जादुई आंकड़े को पार नहीं कर पाएगी. आर्टिकल लिखे जाने तक बीजेपी 237 सीटों पर आगे थी.
ऐसी स्थिति में सबकी नजर बीजेपी के चुनाव पूर्व सहयोगियों पर है. इसमें सबसे बड़ी खिलाड़ी नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी होगी. खबर लिखे जाने तक जेडीयू 14 सीटों पर और टीडीपी 16 सीटों पर आगे थी.
चंद्रबाबू नायडू के लिए यह जीत सोने पर सुहागा है क्योंकि उनकी पार्टी आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने दम पर भारी बहुमत की ओर बढ़ रही है. इस स्टोरी को लिखने के समय, टीडीपी अपने दम पर आंध्र प्रदेश विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत की ओर बढ़ रही थी. हालांकि उसने जन सेना पार्टी और बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा है.
2018 में करारी हार के छह साल बाद, नायडू 2024 के चुनावों से पहले एनडीए में फिर से शामिल हो गए थे. 2019 के लोकसभा चुनावों और उसके साथ हुए विधानसभा चुनावों में टीडीपी का सफाया हो गया. यह जीत उनके लिए एक बड़ी वापसी है और वो चौथी बार आंध्र प्रदेश के सीएम बनेंगे.
ऐसा लगता है कि उनका दांव सफल हो गया क्योंकि एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 से अधिक सीटों पर बढ़त हासिल कर ली है. हालांकि यह आंकड़ा 2019 से कम है.
दोनों पार्टियां एनडीए के साथ रहेंगी या पाला बदल लेंगी, इस पर अटकलें जोरों पर हैं.
नायडू को आंध्र प्रदेश में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के समर्थन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इसकी संभावना नहीं है कि वह अपने विजयी गठबंधन को अस्थिर कर देंगे.
नीतीश कुमार भी अपनी नई ताकत का इस्तेमाल यह आश्वासन पाने के लिए कर सकते हैं कि बीजेपी बिहार में उनकी सरकार को परेशान नहीं करेगी और उन्हें 2025 तक सरकार चलाने देगी.
हालांकि, नीतीश के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उनके पाला बदलने की संभावना हमेशा बनी रहेगी.
अगर यह माना जाए कि नीतीश और नायडू, दोनों एनडीए के भीतर बने रहेंगे, तब उनका केंद्र सरकार की नीतियों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है. टीडीपी और जेडीयू दोनों कभी भी बीजेपी के साथ अपने पहले के गठबंधन के दौरान भी हिंदुत्व समर्थक नहीं रहे हैं.
दोनों पार्टियां अल्पसंख्यक वोटों पर गंभीर रूप से निर्भर नहीं हैं, लेकिन वे अल्पसंख्यकों के बीच समर्थन चाहती हैं और सरकार के बहुत मजबूत हिंदुत्व समर्थक रुख के साथ सहज नहीं होंगी.
इन दोनों पार्टियों का बीजेपी के पुराने नेताओं के साथ-साथ आरएसएस के अंदर अपना स्वतंत्र समीकरण भी है. इससे उन्हें पीएम मोदी के मुकाबले अहमियत देगा.
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