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Jammu Kashmir Assembly Election 2024: जम्मू-कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव हुए और यहां की राजनीति ने मानों 360 डिग्री का टर्न ले लिया. अब जम्मू-कश्मीर एक राज्य नहीं है. 2014 में सरकार बनाने वाली महबूबा मुफ्ती की पार्टी के पास आज निर्दलीयों से आधी भी सीट नहीं है. 10 साल पहले 15 सीट जीतने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार बनाने जा रही है और उमर अब्दुल्ला नई सरकार में मुख्यमंत्री होंगे.
जम्मू-कश्मीर की सत्ता में नेशनल कॉन्फ्रेंस की वापसी शानदार है. 2014 की 15 सीटों से इस बार 42 सीटों पर आना. लेकिन उतनी ही बड़ी बात यह है कि महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) 2014 की 28 सीटों से घटकर इस बार 3 सीट पर आ गई है.
पीडीपी को कभी पूरी घाटी में मजबूत उपस्थिति की वजह से एनसी के बराबर टक्कर का माना जाता था. 2002 में इसने सत्ता हासिल की और 2014 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन 2014 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के पार्टी के फैसले ने कई कश्मीरियों को नाराज कर दिया. पार्टी स्पष्ट रूप से अपनी जमीन खोती दिख रही है.
अगर कांग्रेस की बात करें तो उसकी सीटें 17 से गिरकर 6 पर आ गई हैं. यहां तक कि गुलाम नबी आजाद ने भी कोई प्रभाव नहीं डाला.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के सीएम बनने के लिए तैयार हैं. उनके लिए यह जीत और भी खास है. अब्दुल्ला 2024 का संसदीय चुनाव उत्तरी कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से हार गए थे. अब वापसी करते हुए उन्होंने न केवल बडगाम और गांदरबल की दोनों सीटें जीत ली हैं बल्कि अब सीएम की कुर्सी पर भी बैठने वाले हैं.
शायद नहीं. 2014 और 2024, अगर इन दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन की तुलना करें तो पाएंगे कि भले ही बीजेपी ने कोई बढ़त हासिल नहीं की हो फिर भी उसने अपनी पकड़ कमजोर भी नहीं होने दी है. बीजेपी को जम्मू में अपनी ताकत पता थी और पार्टी कश्मीर में अपनी कमजोरी से भी वाकिफ थी.
आर्टिकल 370 हटाने, परिसीमन करके जम्मू की 6 सीटें बढ़ाने, एसटी की सीटें रिजर्व करने और 25 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देना... बीजेपी ने तमाम रणनीतियां अपनाई थीं. बीजेपी ने इसकी मदद से जिस माइलेज की उम्मीद की थी, वो भले न मिला हो लेकिन पार्टी का स्ट्राइक रेट कम भी नहीं हुआ है. फायद नहीं
इतना ही नहीं 2014 में जम्मू-कश्मीर में पार्टी का वोट शेयर करीब 23 फीसदी था. इस बार, बीजेपी ने इसमें बढ़ोतरी की है और यह आंकड़ा लगभग 26 फीसदी है.
इसका मतलब यह भी है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस मिलकर जम्मू में बीजेपी के कोर वोट को हिला नहीं सकी है. इ
एकदम नहीं. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अपना प्रदर्शन अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. 2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 18 फीसदी वोटों के साथ 12 सीटें हासिल हुई थीं. हालांकि इस बार पार्टी लगभग 12% वोटों के साथ केवल 6 सीटों पर आ गई है.
नेशनल कान्फ्रेंस की कड़ी मेहनत कांग्रेस के कमजोर चुनावी कैंपेन के विपरीत थी. यहां तक कि खुद उमर अब्दुल्ला ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि कांग्रेस को केवल कश्मीर में प्रचार करने के बजाय जम्मू को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहां उसके अधिकांश उम्मीदवार थे.
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में कुल 25 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें जम्मू से 7 उम्मीदवार थे. रुझानों को देखें तो ये सभी सातों उम्मीदवार चुनाव हारते हुए नजर आ रहे हैं. यानी अन्य राज्यों के चुनाव में जो बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट देते हुए दिखती है उसने जम्मू-कश्मीर में 25 उम्मीदवार उतारे लेकिन पार्टी का ये प्रयोग भी फेल होता दिखा.
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Published: 08 Oct 2024,06:26 PM IST