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झारखंड (Jharkhand) की 14 लोकसभा सीटों में से आदिवासियों के लिए रिजर्व पांच सीटों पर बीजेपी (BJP) चुनाव हार गई है. इनमें जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) भी शामिल हैं. आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर बीजेपी की हार के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. इसके दूरगामी परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बीजेपी 8, JMM 3 और कांग्रेस 2 बाकी आजसू 1 सीट जीती है.
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा को जीत की बधाई दी. खूंटी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा ने अर्जुन मुंडा को डेढ़ लाख मतों के अंतर से हराया है.
उधर, आदिवासियों के लिए रिजर्व सिंहभूम सीट पर बीजेपी की गीता कोड़ा को करारी हार का सामना करना पड़ा है. जेएमएम की जोबा माझी ने गीता कोड़ा को 1,68,402 वोटों के अंतर से हराया है. जेएमएम और बीजेपी दोनों के लिए प्रतिष्ठा की सीट रही दुमका में भी सीता सोरेन चुनाव हार गई हैं.
झारखंड में लोकसभा की बाकी नौ सीटों में से आठ पर बीजेपी और एक सीट गिरीडीह पर बीजेपी की सहयोगी आजसू पार्टी जीत गई है.
इस बार बीजेपी को तीन सीटों का नुकसान हुआ है. बीजेपी की सहयोगी आजसू पार्टी ने गिरिडीह सीट पर अपनी जीत कायम रखी है. हालांकि बीजेपी जिन आठ सीटों पर चुनाव जीती है, उनमें भी पिछले चुनावों की तुलना में जीत का अंतर कम हुआ है.
जाहिर तौर पर जीत-हार के फासले और आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर बीजेपी की हार के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. इसके दूरगामी प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता. दरअसल इसी साल नवंबर- दिसंबर में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुई थीं. जबकि जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन ने भी जेएमएम से राह अलग कर बीजेपी का दामन थामा था.
जोबा माझी की जीत के साथ सिंहभूम से कोड़ा दंपती का दबदबा और बीजेपी का दांव नाकाम होता दिख रहा है. उधर सात टर्म के विधायक नलिन सोरेन दुमकी सीट पर जेएमएम का परचम लहराने में कामयाब हो गए हैं.
संथाल परगना में ही राजमहल की रिजर्व सीट पर जेएमएम के विजय हांसदाक ने जीत की हैट्रिक लगाई है. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार ताला मरांडी को शिकस्त दे दी है.
इससे पहले 2014 और 2019 में मोदी लहर में भी विजय हांसदाक ने जीत दर्ज की थी. दूसरी तरफ विधायक लोबिन हेंब्रम का जेएमएमम से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राजमहल के चुनावी मैदान में कूद जाने का भी कोई खासा असर नहीं हो सका.
लोहरदगा रिजर्व सीट पर कांग्रेस के सुखदेव भगत ने बीजेपी के समीर उरांव से चार लाख से अधिक वोटों हासिल कर अपनी जीत दर्ज कर ली है. पूर्व सांसद समीर उरांव बीजेपी में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. लोहरदगा में कांग्रेस की 20 वर्षों बाद वापसी हुई है. इससे पहले 2004 में यहां कांग्रेस की जीत हुई थी.
लोहरदगा में ही जेएमएम के बागी विधायक चमरा लिंडा को जनता ने खारिज कर दिया है. वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतरे थे.
इस बीच राज्य में गांडेय विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी और लोकसभा चुनावों में जेएमएम की खेवनहार बनकर उभरीं कल्पना सोरेन ने जीत दर्ज की है.
कल्पना सोरेन ने बीजेपी के उम्मीदवार दिलीप कुमार वर्मा को 26 हजार वोटों के अंतर से हराया है. कल्पना सोरेन के राजनीतिक भविष्य के लिए यह उपचुनाव महत्वपूर्म था. अब देखा जा सकता है कि पार्टी अथवा सरकार में उनकी क्या भूमिका होगी.
बीजेपी ने जिन आठ सीटों पर चुनाव जीता है, उनमें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित पलामू के अलावा सामान्य सीटों में रांची, जमशेदपुर, धनबाद, कोडरमा, गोड्डा, चतरा, हजारीबाग शामिल है. हालांकि इन सीटों पर जीत का अंतर भी पिछले चुनावों की तुलना में कम हुआ है.
चुनाव आयोग ने अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित पलामू की सीट पर चुनाव के नतीजे घोषित कर दिए हैं. बीजेपी के वीडी राम यहां से लगातार तीसरी बार चुनाव जीते हैं. उन्होंने राजद की ममता भुइयां को 2,88, 807 वोटों के अंतर से हराया है.
इसी तरह गोड्डा में बीजेपी के निशिकांत दुबे ने लगातार चौथी बार जीत दर्ज की है. रांची से संजय सेठ को कांग्रेस की युवा उम्मीदवार यशस्वनी सहाय ने कड़ी टक्कर दी है. उधर कोडरमा में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी की उम्मीदवार अन्नपूर्णा देवी ने भाकपा- माले के उम्मीदवार विनोद सिंह को 3 लाख वोटों से हराया है. इसके अलावा धनबाद, जमशेदपुर की सीट भी बीजेपी के खाते में आ गई. इससे बीजेपी खेमे में फिलहाल राहत है.
झारखंड में तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा बीजेपी में आदिवासी नेताओं का बड़ा चेहरा रहे हैं. 2019 में उन्होंने खूंटी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को महज 1445 वोटों से हराया था. खूंटी संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें दो पर जेएमएम, दो पर कांग्रेस और दो पर बीजेपी का कब्जा रहा है.
खूंटी लोकसभा क्षेत्र के खरसावां विधानसभा क्षेत्र से अर्जुन मुंडा तीन बार विधायक भी रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में तमाड़ और खरसावां की बढ़त ने उनकी जीत का रास्ता तय किया था, लेकिन इस बार जेएमएम के विधायक विकास मुंडा और दशरथ गागराई ने तमाड़ और खरसावां में दरक लगाने से रोक लिया है.
इस बार के चुनावी नतीजे सबसे ज्यादा जेएमएम को बूस्टअप करता दिख रहा है. इंडिया ब्लॉक के साथ गठबंधन के तहत जेएमएम ने पांच सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें तीन आदिवासियों के लिए रिजर्व सीट- दुमका, राजमहल और सिंहभूम में जेएमएम ने जीत दर्ज की है.
जेएमएम ने यह प्रदर्शन अपने दल के सर्वमान्य नेता शिबू सोरेन और सबसे बड़े कर्ता- ॉधर्ता हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में कर दिखाया है. उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से शिबू सोरेन इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे और न ही उन्होंने चुनावी रैलियां, सभा की है.
जेएमएम को एक और सेटबैक का सामना तब करना पड़ा, जब 31 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. हेमंत सोरेन अभी जेल में बंद हैं. जेएमएम की इस जीत के पीछे कल्पना सोरेन की रणनीति और फायरब्रांड कैंपेन भी अहम माना जा सकता है.
आदिवासियों के लिए रिजर्व सीटों पर बीजेपी की संभावित हार इसके भी संकेत हैं कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा के बाद जेएमएम कैडरों और आदिवासियों की गोलबंदी ने बीजेपी को पीछे धकेलने में अहम रहा है.
इसके अलावा चुनावी नतीजे में जनगणना को लेकर आदिवासियों के सरना कोड का मुद्दा भी असर डालता दिख रहा है. आदिवासियों की सालों पुरानी इस मांग को चुनाव के मौके पर जेएमएम और कांग्रेस ने बहुत कायदे से उछाला था. दरअसल हेमंत सोरेन की सरकार ने साल 2020 में झारखंड विधानसभा से ‘सरना धर्म कोड बिल’ को सर्व सम्मति से पारित कराकर केंद्र को भेजा है.
सिंहभूम की जंग में इस बार जेएमएम की उम्मीदवार जोबा माझी समेत मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, मंत्री दीपक बिरूआ समेत मझगांव से जेएमएम के विधायक निरल पूर्ति और चक्रधरपुर से विधायक सुखराम उरांव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना था.
जेएमएम ने इस बार कोड़ा दंपती के दबदबा के साथ बीजेपी की रणनीति को नाकाम करने में सफलता पाई है. 31 सालों बाद जेएमएम की इस सीट पर वापसी कोल्हान में दल के लिए फायदेमंद हो सकता है.
आदिवासियों के लिए रिजर्व दुमका संसदीय सीट से जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन के नाम आठ बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है. शिबू सोरेन के इस ट्रैक रिकॉर्ड के कारण ही देश भर की निगाहें इस सीट पर होती है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन ने दुमका में शिबू सोरेन को कड़े संघर्ष में 47 हजार 590 वोटों से हराया था.
इस बार बीजेपी ने सुनील सोरेन को उम्मीदवार घोषित कर दिया था, लेकिन सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद सुनील सोरेन का टिकट वापस लेते हुए पार्टी ने सीता सोरेन पर दांव लगाया.
संथालपरगना और कोल्हान की तीनों आदिवासी सीटों पर जेएमएम ने कब्जा कर लिया है. लोकसभा चुनाव के इस नतीजे का असर झारखंड में इसी साल विधानसभा चुनाव पर सीधे तौर पर पड़ सकता है.
दरअसल, आदिवासी बहुल संथालपरगना और कोल्हान के रास्ते सत्ता में पहुंचने का रास्ता प्रभावी माना जाता है. पूरे राज्य में विधानसभा की 28 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम गठबंधन ने 26 सीटों पर कब्जा जमा लिया था.
खूंटी, सिंहभूम और दुमका संसदीय सीट पर जेएमएम की जीत ने बीजेपी को सकते में डाला है. बीजेपी को इस सेटबैक से उबरने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है.
दूसरी तरफ जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं सीता सोरेन और बगावत करने वाले बोरियो के विधायक लोबिन हेंब्रम का राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल उटने लगे हैं. दरअसल संथालपरगना की राजनीति में यह माना जाता रहा है कि गुरुजी (शिबू सोरेन) का हाथ और जेएमएम का सिंबल छोड़कर अपना वजूद स्थापित करना बहुत आसान नहीं होता.
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