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कर्नाटक चुनाव : बजरंग दल पर बैन लगाने के वादे से क्या कांग्रेस को नुकसान होगा?

Karnataka Elections: कांग्रेस का एक वर्ग क्यों मानता है कि पार्टी को बजरंग दल पर बैन का वादा नहीं करना चाहिए था?

नाहीद अताउल्ला
कर्नाटक चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>कर्नाटक चुनाव : 'बजरंग दल बैन' पर बहस से कांग्रेस को नुकसान?</p></div>
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कर्नाटक चुनाव : 'बजरंग दल बैन' पर बहस से कांग्रेस को नुकसान?

(इमेज: कामरान अख्तर/द क्विंट)

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बजरंग दल द्वारा आत्मरक्षा प्रशिक्षण शिविर शुरू करने के विवाद को कम करने का प्रयास किया था. रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने कहा था कि "बजरंग दल बीजेपी नहीं है" इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि "विकास" पर जोर देने वाली बीजेपी के साथ इस संगठन की "बराबरी नहीं करनी चाहिए."

हालांकि, छह साल बाद ऐसा प्रतीत हो रहा कि कर्नाटक में बीजेपी ने उस बयान से उलट कैंपेनिंग लाइन अपनाई है. कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों के चुनाव के लिए हाई-वोल्टेज कैंपेनिंग के अंत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को बजरंग दल का समर्थन करने में कोई झिझक नहीं हो रही है.

बजरंगी लहर

बेंगलुरु दक्षिण से बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने ट्वीट किया, "मैं बजरंगी हूं. मैं कन्नडिगा हूं और यह हनुमान की भूमि है. मुझ पर प्रतिबंध लगाने को लेकर मैं कांग्रेस को चुनौती देता हूं." ट्विटर पर सूर्या ने भगवान हनुमान की फोटो को अपनी प्रोफाइल पिक्चर भी बनाया है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शोभा करंदलाजे ने दावे के साथ कहा कि "बजरंग दल आरएसएस का एक हिस्सा है और यह राष्ट्र के लिए युवाओं के साथ काम कर रहा है. यह कभी भी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है." इन सबसे ऊपर, बड़ी बात यह है कि चुनावों से पहले कर्नाटक का दौरा कर रहे प्रधानमंत्री ने उत्तर कन्नड़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए "जय बजरंगबली" का नारा लगाया है.

कांग्रेस को 'सजा' देने के लिए मोदी ने मतदाताओं से अपील करते हुए कहा कि इस बार 'जय बजरंगबली' का नारा लगाते हुए वोट डालें. कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) ने इन बयानों पर आपत्ति जताई है.

बीजेपी द्वारा जो बयान सामने आए हैं वे INC यानी कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में किए गए एक वादे के जवाब में थे. कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है, हम मानते हैं कि कानून और संविधान पवित्र हैं और बजरंग दल, पीएफआई या उन जैसे अन्य व्यक्ति या संगठन (चाहे वे बहुसंख्यक से हों या अल्पसंख्यक से) दुश्मनी या नफरत फैलाने के लिए उसका उल्लंघन नहीं कर सकते. हम कानून के अनुसार निर्णायक कार्रवाई करेंगे, जिसमें ऐसे किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाना शामिल है. जब घोषणा पत्र जारी किया गया था तब उसमें कहा गया था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो ऐसे संगठनों को प्रतिबंध सहित कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

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बजरंग दल को लेकर बंटी हुई कांग्रेस

इस चुनावी वादे ने जहां एक ओर बीजेपी को उकसाने का काम किया है वहीं दूसरी ओर इसको लेकर कांग्रेस खेमों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है. पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि जब पहले से ही भगवा पार्टी को प्रभावित करने वाली सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस लाभ की स्थिति में दिख रही थी, ऐसे में दक्षिणपंथी संगठन पर प्रतिबंध लगाने का वादा करने की कोई जरूरत नहीं थी. हालांकि दूसरी ओर कांग्रेस में अन्य लोगों का मानना इस घोषणा से पार्टी पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा; बल्कि इसके विपरीत यह उन अनिर्णीत मतदाताओं के वोट हासिल करने में मदद कर सकता है जो इस बात पर बहस कर रहे हैं कि कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच किसे चुनना है.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोइली, जिन्होंने पहले कहा था कि राज्य सरकार किसी संगठन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती है, उन्होंने बाद में स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर बजरंग दल अपनी गतिविधियों को कानून के दायरे में रखता है तो उसे प्रतिबंधित होने को लेकर कोई चिंता या डर नहीं होना चाहिए.

क्या इस घोषणा से कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान होगा? इस आशंका को खारिज करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रमेश बाबू ने कहा कि "बजरंग दल एक संगठन है और बीजेपी एक संगठन की तुलना भगवान हनुमान से कर रही है. क्या इसका मतलब यह है कि भगवान के नाम पर खेला (उपयोग) कर रहे किसी भी संगठन या संस्था पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?"

हालांकि, अपेक्षाओं के उलट तटीय क्षेत्र में हिजाब, हलाल मांस, और अजान के खिलाफ विरोध और मंदिर त्योहारों में मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार सहित कई घातक मुद्दों के चुनावी मैदान में होने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा लग रहा है कि इन सबके बीच 'बजरंग दल प्रतिबंध' एकमात्र ऐसा विषय बन गया है जिसने गति पकड़ी है. वहीं अगर चुनावी बहस की बात की जाए तो इसके प्रमुख मुद्दे राष्ट्रवाद और विकास हैं.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने अफसोस जताते हुए कहा कि "बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का विवाद उस समय हवा बिगाड़ने वाला बन गया जब हम इस बात को लेकर राहत थे कि ये मुद्दे (हिजाब और हलाल) चुनाव में चर्चा के बिंदु नहीं हैं. यह मुद्दा हिंदू वोटर्स को एकजुट करेगा, जो इन क्षेत्रों (तटीय कर्नाटक) और कुछ हद तक मुंबई कर्नाटक में एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी के लिए मतदान करने पर विचार कर रहे थे."

बजरंग दल का कर्नाटक में क्या प्रभाव है?

विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने अक्टूबर, 1984 में समाज को 'जागृत' करने के लिए राम-जानकी रथ यात्रा शुरू करने का जब फैसला किया, तब बजरंग दल का जन्म हुआ. विहिप (VHP) को इस बात का विश्वास नहीं था कि उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार रथ यात्रा को राज्य से गुजरने की अनुमति देगी, इसलिए इसने युवाओं से आह्वान किया वे इस यात्रा की रक्षा करें. इस आह्वान के जवाब में सैकड़ों युवा अयोध्या में एकत्रित हुए और राम जन्मभूमि आंदोलन या अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर भगवान राम के लिए मंदिर बनाने के प्रयास के तहत यूपी में युवाओं को एकजुट करने के अल्पकालिक और स्थानीय लक्ष्य के साथ बजरंग दल की स्थापना की गई.

बजरंग दल अब वीएचपी का यूथ विंग है. वह दक्षिण कन्नड़, उडुपी और उत्तर कन्नड़ के तटीय क्षेत्रों में और मलनाड में भी सक्रिय है, जिसमें शिवमोग्गा और चिक्कमगलुरु जिले शामिल हैं.

बीजेपी पर यह लगाया गया है कि वह इन पांच जिलों को अपने हिंदुत्व एजेंडे की प्रयोगशाला में बदल रही है और सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर रही है. इसने बजरंग दल को इस क्षेत्र में अपनी काऊ विजिलिंग (गौरक्षक) और मोरल पुलिसिंग जैसे गतिविधियों को बढ़ावा देने में मदद की है.

जुलाई 2022 में, मंगलुरु में एक पब में घुसने और महिलाओं सहित छात्रों द्वारा आयोजित एक पार्टी को जबरन रोकने का आरोप बजरंग दल पर लगाया गया था. इससे पहले, 2009 में श्री राम सेना नामक एक अन्य दक्षिणपंथी संगठन एक पब में घुस गया था और पार्टी में जाने वालों की पिटाई की थी, जिनमें से कई महिलाएं भी थीं. इसके साथ ही 2022 में जब हिजाब के विरोध में भगवा शॉल का प्रदर्शन चल रहा था उसमें बजरंग दल सबसे आगे था.

कांग्रेस के एक नेता के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कांग्रेस पर "भगवान हनुमान को बंद करने" का आरोप लगाने वाले बयानों से कांग्रेस के वोटों पर कम से कम 20 प्रतिशत का असर पड़ने की उम्मीद है. पीएम ने कहा था कि "दुर्भाग्य देखिए कि जब मैं हनुमान की भूमि का सम्मान करने आया हूं, तब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में हनुमान जी को बंद करने का फैसला किया है. पहले तो उन्होंने भगवान श्री राम को बंद किया और अब वो उन लोगों को बंद करना चाहते हैं जो "जय बजरंगबली" कहते हैं."

मीडिया विश्लेषक एन के मोहन राम का कहना है कि मोदी का बयान, जिसमें उन्होंने मतदाताओं से वोट डालने से पहले 'जय बजरंगबली' का जाप करने को कहा है, यह धर्म का हवाला देकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन का ममला है. ऐसे में चुनाव आयोग को उस बयान पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए था.

जहां एक ओर यह सब चल रहा था, वहीं इसी बीच KPCC (कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी) अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने यह घोषणा करके नुकसान को कम करने की कोशिश की कि उनकी पार्टी राज्य में प्रमुख हनुमान मंदिरों के विकास की देखरेख के लिए एक विशेष समिति का गठन करेगी. भगवान हनुमान का जन्म स्थल मानी जानी वाली अंजनाद्री पहाड़ियों के विकास की देखरेख के लिए एक अन्य समिति गठित करने का भी वादा शिवकुमार ने किया है.

(नाहिद अताउल्ला बेंगलुरु के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हैं.)

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