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Punjab Lok Sabha Election: पंजाब की 13 लोकसभा सीटों के लिए चुनावी रण अब तैयार है. आम आदमी पार्टी (AAP) और शिरोमणि अकाली दल ने सभी 13 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. वहीं कांग्रेस ने अब तक 12 उम्मीदवारों की घोषणा की है. बीजेपी ने अभी तक चार सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.
पंजाब में वोटिंग चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को होगी.
यहां मुकाबले को यह तथ्य रोचक बना रहा है कि पूरे देश में एक साथ INDIA गठबंधन के बैनर तले लड़ने वाली AAP और कांग्रेस पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ रही है. दोनों पार्टियां चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और गोवा में गठबंधन कर चुनाव लड़ रही हैं. लेकिन पंजाब में AAP सत्तारूढ़ पार्टी है और कांग्रेस मुख्य विपक्ष है. दोनों पार्टियां पिछले दो वर्षों से लगातार जुबानी जंग में लगी हुई हैं.
इस दावे को करने के लिए कोई सबूत नहीं है, खासकर दोनों पक्षों के बीच कड़वे आरोप-प्रत्यारोप को देखते हुए. इसके बावजूद AAP और कांग्रेस ने जिस तरह उम्मीदवारों का चयन किया है, वह एक दिलचस्प पैटर्न को उजागर करता है.
ऐसा लगता है कि दोनों पार्टियां, चाहे डिफॉल्ट रूप से या जानबूझकर, अकाली-विरोधी और बीजेपी-विरोधी वोटों के विभाजन को कम करती दिख रही हैं.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पंजाब में AAP और कांग्रेस का आधार एक न होकर भी एक जैसा है. दोनों को समाज के सभी वर्गों से वोट मिलते हैं, जबकि शिरोमणि अकाली दल ग्रामीण सिख वोटों पर और बीजेपी शहरी हिंदू वोटों पर बहुत अधिक निर्भर है. चूंकि अकाली दल और बीजेपी अब गठबंधन में नहीं हैं, किसी खास सीट को जीतने के लिए सभी पार्टियां चाहेंगी कि उनके प्रतिद्वंद्वियों का वोट बंट जाए. वजह है कि वे अब अपने पूर्व सहयोगी के वोटों के समर्थन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं.
चूंकि AAP और कांग्रेस का वोटर आधार समान है, इसलिए एक पार्टी द्वारा दूसरे के वोट में सेंध लगाने की गुंजाइश काफी अधिक है. लेकिन जिस तरह से दोनों ने अपने उम्मीदवारों का चयन किया है, उससे ऐसा होने की गुंजाइश कम होती दिख रही है.
आइए नजर डालते हैं कुछ सीटों पर.
फरीदकोट
कांग्रेस ने मौजूदा सांसद मोहम्मद सादिक को हटाकर अमरजीत कौर साहोके को मैदान में उतारा है. मोहम्मद सादिक एक लोकप्रिय लोक गायक और पंजाब में एक जाने-माने चेहरे हैं. वो भदौर से विधायक और फरीदकोट से सांसद रहे हैं. उन्हें टिकट न दिए जाने के पीछे उनकी उम्र को वजह बताया जा रहा है. लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनकी जगह जिसको लाया गया है (अमरजीत कौर साहोके), उसका कद राजनीतिक रूप से हल्का है और "राजनीतिक परिदृश्य में बहुत सक्रिय नहीं रहा है".
फरीदकोट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है और पार्टियां आमतौर पर यहां मजहबी सिख उम्मीदवारों को मैदान में उतारती हैं.
यहां कांग्रेस की तरफ से "हल्के उम्मीदवार" को उतारना हैरान करता है क्योंकि यह पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग के प्रभाव का प्राथमिक क्षेत्र है. वह फरीदकोट लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गिद्दड़बाहा से विधायक हैं और उम्मीद की जा रही थी कि वह एक मजबूत उम्मीदवार पर जोर देंगे.
कांग्रेस की तरफ से कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से कथित तौर पर मुकाबला AAP और शिरोमणि अकाली दल के राजविंदर सिंह के बीच हो गया है. बीजेपी ने गायक हंस राज हंस को मैदान में उतारा है, जो उत्तर पश्चिमी दिल्ली से पार्टी के सांसद हुआ करते थे. लेकिन मुख्य रूप से ग्रामीण सीट पर उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
होशियारपुर
इस सीट पर परंपरागत रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखा जाता रहा है. 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान हार के बावजूद, कांग्रेस ने होशियारपुर निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में आश्चर्यजनक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि, पार्टी की संभावनाओं को तब झटका लगा जब क्षेत्र से उनका सबसे प्रमुख चेहरा - विधायक राजकुमार चब्बेवाल - AAP में चले गए.
पार्टी ने यहां से यामिनी गोमर को मैदान में उतारा है, जो 2014 में AAP के टिकट पर इस सीट से तीसरे स्थान पर रहीं थीं. AAP के टिकट पर चुनाव लड़ रहे चब्बेवाल को अब इस सीट से प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी के पास वर्तमान में यह सीट है और वह भी यहां दावेदार है.
आनंदपुर साहिब
कांग्रेस ने इस सीट से अपने मौजूदा सांसद मनीष तिवारी को चंडीगढ़ से उम्मीदवार बनाया है. उसने संगरूर से पूर्व सांसद विजय इंदर सिंगला को आनंदपुर साहिब से मैदान में उतारा है.
सिंगला आनंदपुर साहिब से नहीं हैं. वह संगरूर शहर से सांसद और विधायक रह चुके हैं और अपने क्षेत्र में प्रभावी माने जाते हैं. हालांकि, आनंदपुर साहिब से उम्मीदवार के तौर पर वह कितने प्रभावी होंगे, इस पर सवाल हैं.
AAP के मालविंदर सिंह कंग, जो पिछले कुछ समय से आनंदपुर साहिब से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, अब इस सीट पर बढ़त बनाए हुए हैं. दूसरे दावेदार अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा हैं.
बठिंडा
यहां से शिरामणि अकाली दल (बादल गुट) की हरसिमरत कौर बादल मौजूदा सांसद हैं. इस सीट पर मुकाबला कई मोर्चे पर है. AAP ने मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां को उतारा है. अकाली दल से कांग्रेस नेता बने जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू पार्टी के उम्मीदवार हैं. गैंगस्टर से एक्टिविस्ट बने लक्खा सिधाना को शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) ने उतारा है और बीजेपी ने पूर्व नौकरशाह परमपाल कौर पर भरोसा जताया है.
कांग्रेस के सिद्धू किसी भी लिहाज से कमजोर उम्मीदवार नहीं हैं. हालांकि, मुकाबला काफी हद तक हरसिमरत कौर और खुड्डियन के बीच माना जा रहा है. गुरमीत सिंह खुड्डियां ने 2022 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को हराया था.
गुरदासपुर
कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और डेरा बाबा नानक से चार बार के विधायक सुखजिंदर रंधावा को गुरदासपुर से मैदान में उतारा है. रंधावा वर्तमान में इस सीट से चुनाव लड़ने वाले एकमात्र दिग्गज हैं. उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के पूर्व विधायक दिनेश सिंह बब्बू होंगे. AAP ने बटाला विधायक शेरी कलसी को मैदान में उतारा है, जो वास्तव में अपने निर्वाचन क्षेत्र के बाहर नहीं जाने जाते हैं.
इससे मुकाबला मुख्य रूप से रंधावा और बब्बी के बीच होगा.
लुधियाना
मौजूदा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के बीजेपी में शामिल होने के बाद इस सीट पर कांग्रेस संकट से गुजर रही है. काफी माथापच्ची के बाद, पार्टी ने 29 अप्रैल को राज्य कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग को खड़ा किया है.
अब उनका मुकाबला बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बिट्टू, AAP विधायक अशोक पाराशर पप्पी और शिरोमणि अकाली दल के रणजीत सिंह ढिल्लों से है.
पप्पी पहली बार के विधायक हैं और अपने निर्वाचन क्षेत्र के बाहर उन्हें ज्यादा नहीं जाना जाता है. साथ ही एक हिंदू ब्राह्मण उम्मीदवार होने के नाते, उनके द्वारा बीजेपी के बिट्टू को अधिक नुकसान होने की संभावना है क्योंकि उच्च जाति के हिंदू उनका मुख्य वोटबैंक रहे हैं. वारिंग को शहर में भी कुछ समर्थन मिलेगा लेकिन उनकी किस्मत काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि वह मुख्य रूप से तीन ग्रामीण क्षेत्रों में किस हद तक अपनी पकड़ बनाते हैं. AAP के उम्मीदवार चयन ने वहां उनके लिए मामला आसान कर दिया है.
जालंधर
AAP को जालंधर में संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि उसके मौजूदा सांसद सुशील कुमार रिंकू और उसके अधिक प्रभावशाली विधायकों में से एक शीतल अंगुराल चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में चले गए.
पार्टी ने पूर्व अकाली नेता पवन कुमार टीनू को मैदान में उतारा है.
भले ही चन्नी जालंधर में अधिक प्रभावशाली रविदाससी और अद धर्मी दलित उपजातियों से नहीं हैं, लेकिन सीएम के रूप में उनकी उपस्थिति ने 2022 के विधानसभा चुनावों में क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूती दी थी क्योंकि इससे दलित वोट एकजुट हुए.
बीजेपी ने AAP के पूर्व सांसद और पूर्व कांग्रेस विधायक सुशील कुमार रिंकू को मैदान में उतारा है. पार्टी को शहरी इलाकों में अच्छे वोट मिलने की उम्मीद है लेकिन ग्रामीण इलाकों में उसे संघर्ष करना पड़ सकता है.
अकाली दल ने पूर्व कांग्रेस नेता मोहिंदर सिंह कायपी को मैदान में उतारा है. शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी, दोनों ने पूर्व कांग्रेसियों को मैदान में उतारा है. इससे AAP के उम्मीदवार चयन से कांग्रेस को कम से कम नुकसान हो सकता है.
संगरूर की लड़ाई
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प सीटों में से एक संगरूर है, जहां मौजूदा सांसद शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत सिंह मान, AAP मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर, कांग्रेस के सुखपाल सिंह खैरा और शिरोमणि अकाली दल के इकबाल सिंह झुंडन के बीच चार मोर्चे पर मुकाबला है. बीजेपी ने अभी तक इस सीट से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.
सुखपाल सिंह खैरा संगरूर से नहीं हैं और कपूरथला जिले के रहने वाले हैं. लेकिन उन्हें कांग्रेस में सबसे अधिक पंथ समर्थक नेता के रूप में जाना जाता है, जो सिख मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि खैरा या तो खुद जीत सकते हैं या सिमरनजीत मान को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त वोट पा सकते हैं. ऐसे में वो डिफॉल्ट रूप से AAP के गुरमीत सिंह मीत हेयर की मदद कर सकते हैं.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा क्योंकि खैरा को AAP सरकार के सबसे उग्र आलोचकों में से एक माना जाता है और वह अपने वर्तमान कार्यकाल के दौरान जेल भी जा चुके हैं.
AAP का मानना है कि राज्य सरकार विरोधी और पंथ समर्थक वोट मान और खैरा के बीच बंट जाएंगे. दूसरी ओर, मान के समर्थकों ने खैरा के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाया है और उन पर "पंथ के साथ विश्वासघात" करने का आरोप लगाया है.
खैरा की उम्मीद खुद को सबसे मजबूत आवाज के रूप में पेश करने की है जो केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों से मुकाबला कर सके. साथ ही मान और AAP, दोनों की जगह पर कब्जा कर सके.
अभी तक पंजाब में किसी भी पार्टी को जिताने या हराने वाली कोई साफ लहर नहीं दिख रही है. लेकिन मतदाताओं के सभी वर्गों के बीच आधार होने के कारण AAP और कांग्रेस, अकाली दल या बीजेपी से अधिक सीटों पर मुकाबले में है.
जैसे-जैसे वोटिंग का दिन नजदीक आएगा, माहौल इन दोनों पार्टियों में से किसी एक के पक्ष में और अधिक निर्णायक रूप से जा सकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. यदि ऐसा होता है, तो उम्मीदवारों का चयन एक सीमा के बाद ज्यादा मायने नहीं रखेगा.
हालांकि, जैसा कि ऊपर बताई गई सीटों से पता चलता है, AAP और कांग्रेस, दोनों पार्टियां अपने प्रतिद्वंद्वियों जैसे अकाली दल, बीजेपी और सिमरनजीत मान को यथासंभव हद तक सीमित करने की कोशिश कर रही हैं.
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