जेल में बंद अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) के परिवार ने घोषणा की कि वह पंजाब की खडूर साहिब (Khadoor Sahib) सीट से आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) लड़ने वाला है. यह घोषणा अमृतपाल सिंह की मां बलविंदर कौर ने 26 अप्रैल को अपने बेटे से मुलाकात के बाद की है. इस कदम को पंजाब (Punjab) की राजनीति में गेमचेंजर के रूप में देखा जा रहा है.
वारिस पंजाब दे संगठन का प्रमुख अमृतपाल सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत आरोपों का सामना कर रहा है और करीब एक साल से असम के डिब्रूगढ़ की जेल में कैद है.
बलविंदर कौर ने कहा, "उसने (अमृतपाल) कहा कि उसकी चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है. हालांकि, वह अपने समर्थकों की इस मांग पर चुनाव लड़ने के लिए सहमत हुआ है."
यह घोषणा अमृतपाल सिंह के वकील राजदेव सिंह खालसा के यह कहने के कुछ ही दिनों बाद आई कि अमृतपाल सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सहमत हो गया है. हालांकि, अमृतपाल के परिवार ने कहा था कि पहले उन्हें उससे बात करने की जरूरत है. और फिर 26 अप्रैल को इस खबर की पुष्टी हुई.
इसके चार पहलू हैं. चलिए आपको बताते हैं.
अमृतपाल सिंह का फैसला इतना अहम क्यों है?
अमृतपाल सिंह कथित तौर पर खालिस्तान या एक अलग सिख मातृभूमि का समर्थक है. इसलिए, माना जा रहा है कि भारतीय संविधान के तहत चुनाव लड़ना महत्वपूर्ण घटना है.
हालांकि, अमृतपाल चुनाव लड़ने वाला पहला खालिस्तान समर्थक नेता नहीं हैं. संगरूर से वर्तमान सांसद सिमरनजीत सिंह मान का भी कहना है कि वह "अहिंसक" और संवैधानिक तरीकों का उपयोग करके "खालिस्तान के लिए प्रयास" कर रहे हैं.
अगर अमृतपाल सिंह जीतता है तो उसे भी भारतीय संविधान के तहत शपथ लेनी होगी जैसे मान ने तीन बार चुने जाने के बाद ली थी.
लेकिन इस वजह से अमृतपाल उन सिविल सोसाइटी संगठनों से अलग हो जाएगा जो अहिंसा का पालन करते हैं लेकिन चुनावी राजनीति से दूर रहते हैं. यह उसे खालिस्तान समर्थन को लेकर 2020 जनमत संग्रह समूह से भी अलग कर देगा, जिससे ज्यादातर प्रवासी भारतीय जुड़े हैं और जिसका नेतृत्व सिख फॉर जस्टिस द्वारा किया जाता है.
अमृतपाल सिंह एक तरह से सिमरनजीत सिंह मान की राह पर चलते दिख रहा है. मान ने भी जेल से 1989 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. अभी अमृतपाल सिंह को पंजाब से दूर असम में कैद किया गया है, सिमरनजीत सिंह मान को बिहार के भागलपुर में 5 साल जेल में बिताना पड़ा था. बेशक, मान की कैद बहुत लंबी थी और उन्हें कैद में काफी टॉर्चर किया गया था.
अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब को ही क्यों चुना?
अमृतपाल सिंह का गांव जल्लूपुर खेड़ा अमृतसर जिले की बाबा बकाला तहसील में पड़ता है. यह खडूर साहिब लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. तो यह सबसे स्पष्ट कारण है, लेकिन यही एकमात्र कारण नहीं है.
खडूर साहिब को पंथिक सीट के रूप में जाना जाता है. पंजाब की अन्य सभी सीटों की तुलना में खडूर साहिब में सिख धर्म-राजनीति का प्रभाव सबसे अधिक है.
सिमरनजीत सिंह मान ने 1989 का चुनाव भी तरनतारन सीट से जीता था. हालांकि परिसीमन के बाद इस सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया और वही अधिकांश क्षेत्र अब नव निर्मित खडूर साहिब सीट के अंतर्गत आ गए हैं.
चूंकी ये पंथिक सीट रही है इसलिए ये शिरोमणि अकाली दल का गढ़ रही है. कांग्रेस ने पिछले 50 सालों में केवल दो बार ये सीट जीती है- 1992 (तब नतीजों को संदिग्ध मानते हुए अकालियों ने बहिष्कार किया था, और दूसरा 2019 में.)
इस वर्चस्व का कारण जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक स्थिति) भी है. यह पंजाब की ग्रामीण लोकसभा सीट है और सबसे अधिक सिख बहुमत वाली सीट भी है.
खडूर साहिब के बारे में एक और दिलचस्प पहलू यह है कि यह पंजाब की एकमात्र लोकसभा सीट है जिसमें माझा में छह खंड, दोआबा में दो और मालवा का एक क्षेत्र शामिल है.
अमृतपाल सिंह की एंट्री का मौजूदा राजनीतिक खिलाड़ियों पर क्या असर पड़ेगा?
अमृतपाल सिंह की एंट्री से शिरोमणी अकाली दल (बादल), सिमरनजीत मान की अकाली दल (अमृतसर), कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी पर अलग-अळग तरीके से असर पड़ेगा.
SAD - शिरोमणी अकाली दल (बादल)
पंथक एकता के लिए अब सुखबीर बादल को अमृतपाल सिंह का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. SAD (बादल) ने अभी तक खडूर साहिब से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया और विरसा सिंह वल्टोहा के नाम चर्चा में थे. अब इसकी संभावना कम ही है कि अकाली दल अमृतपाल सिंह के खिलाफ कोई मजबूत उम्मीदवार उतारेगा.
क्योंकि SAD अगर अमृपाल के खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी तो उनपर पंथिक हित को धोखा देने का आरोप लगाया जा सकता है, एक ऐसा टैग जिसे वह 2015 के बेअदबी मामलों के बाद से हटाने की कोशिश कर रहे हैं.
बल्कि संभवानएं तो ये हैं कि अकाली दल इस सीट पर अमृतपाल सिंह को समर्थन दे सकता है. अकाली दल वैसे भी अमृतपाल के मैदान में रहते हुए जीत नहीं पाता, इसलिए पार्टी के लिए सबसे अच्छा विकल्प अमृतपाल का समर्थन करके पंथिक मतदाताओं के बीच कुछ सद्भावना हासिल करना होगा. इससे संभवतः पार्टी को अन्य सीटों पर मदद मिल सकती है.
SAD - शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर)
सुखबीर बादल की तरह सिमरनजीत मान भी अमृतपाल सिंह की उम्मीदवारी को समर्थन देने के लिए मजबूर हो सकते हैं. उनकी पार्टी ने पहले ही खडूर साहिब से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था. अब उन्हें उम्मीदवार वापस लेना पड़ सकता है.
जबकि अमृतपाल सिंह की राजनीति में छवि मान की छवि जैसी हो सकती है, मान इस क्षेत्र में सबसे प्रमुख खिलाड़ी हैं, जो तीन दशकों से अधिक समय से इस राजनीतिक लाइन पर स्थिर बने हुए हैं.
मान ने अब तक अमृतपाल सिंह के पक्ष में बोला है, लेकिन यह देखना बाकी है कि अमृतपाल के राजनीति में उतरने के बाद समीकरण बदलते हैं या नहीं.
यह संभव है कि अमृतपाल की एंट्री से इस चुनाव में SAD (अमृतसर) के अधिक प्रमुख उम्मीदवारों जैसे कि संगरूर में सिमरनजीत मान और बठिंडा में लाखा सिधाना के बीच कुछ हलचल पैदा हो सकती है.
कांग्रेस
कांग्रेस के लिए, यह एक अलग तरह की दुविधा होगी- एक मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाए या एक कमजोर उम्मीदवार को. अब तक कपूरथला के विधायक राणा गुरजीत सिंह, उनके बेटे और सुल्तानपुर लोधी के विधायक राणा इंद्र प्रताप और खडूर साहिब के पूर्व विधायक रमनजीत सिक्की के नाम चर्चा में थे.
खासकर राणा गुरजीत मजबूत उम्मीदवार होंगे.
AAP पहले ही मंत्री लालजीत भुल्लर को मैदान में उतार चुकी है.
AAP और कांग्रेस दोनों ही इस सीट पर दलित और हिंदू मतदाताओं पर काफी हद तक निर्भर रहेंगे. इसलिए कांग्रेस राणा गुरजीत जैसे मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारती है, इससे अमृतपाल विरोधी वोट बंटने का खतरा रहता है.
सिमरनजीत मान की सीट संगरूर में कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से अपने सबसे पंथ समर्थक चेहरे सुखपाल सिंह खैरा को मैदान में उतारा है. कुछ लोगों का कहना है कि यह मान को नुकसान पहुंचाने और AAP की मदद करने का एक तरीका है जो दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ और गुजरात में कांग्रेस की सहयोगी है लेकिन पंजाब में उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी है.
बीजेपी
बीजेपी के लिए अमृतपाल का चुनाव लड़ना मौका भी है और जोखिम भी. पार्टी का आकलन है कि यह कदम शहरी हिंदू मतदाताओं को बीजेपी की ओर धकेल सकता है.
पंजाब अभियान में शामिल एक बीजेपी पदाधिकारी ने द क्विंट को बताया कि, "यह एक राष्ट्रीय चुनाव है. इन जैसी ताकतों के सिर उठाने के साथ, पंजाब के लोग- सिर्फ हिंदू ही नहीं- पीएम नरेंद्र मोदी को एकमात्र ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे जो सुरक्षा की गारंटी दे सकते हैं."
हालांकि, बीजेपी को अभी भी ग्रामीण सिख मतदाताओं के बीच कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है और अमृतपाल के उभरने से इस वर्ग और पार्टी के बीच दूरी बढ़ने की ही संभावना है.
अमृतपाल सिंह के समर्थकों के लिए इसका क्या मतलब है?
2023 में अजनाला हिंसा के बाद वारिस पंजाब दे को बड़े पैमाने पर कार्रवाई का सामना करना पड़ा. अमृतपाल सिंह और उनकी कोर टीम के कई लोग जेल में हैं और कई अन्य समर्थक निष्क्रिय हो गए हैं.
चुनावी मैदान में उतरकर, अमृतपाल सिंह अपने समर्थकों को एकजुट होने और उन मुद्दों को उठाने का मंच दे सकता है - जिसकी बात अमृतपाल खुद करता है, जैसे- सिख पहचान, नशीली दवाओं का खतरा और ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां.
इस कदम को उसके आंदोलन को पुनर्जीवित करने और जमीन पर अपनी ताकत दिखाने के साधन के रूप में भी देखा जा सकता है. हालांकि, अमृतपाल सिंह के आलोचकों का कहना है कि उसकी गिरफ्तारी के बाद बड़े पैमाने पर कोई विरोध प्रदर्शन नहीं होने से पता चलता है कि उसकी लोकप्रियता सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित थी.
खडूर साहिब चुनाव को अमृतपाल सिंह के लिए जमीन पर अपना समर्थन दिखाने के एक साधन के रूप में देखा जा रहा है. अगले कुछ दिनों में कांग्रेस और अकाली दल के उम्मीदवारों की घोषणाओं पर नजर रहेगी.
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