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चुनाव की तारीखों का ऐलान और चुनाव पूर्व दो सर्वेक्षण एकसाथ आए. एक पूर्वानुमान एबीपी न्यूज-सी वोटर का है, तो दूसरा इंडिया टीवी-सीएनएक्स का. महत्वपूर्ण बात ये है कि अब जनता का मूड बदलने के लिए वक्त बहुत कम है.
इसी लिहाज से इस पूर्वानुमान का महत्व है. हालांकि जो लोग पूर्वानुमान को नहीं मानते, वे कुछ अलग तरीके से सोचने के लिए स्वतंत्र हैं. दोनों पूर्वानुमानों में एक बात खास है कि एनडीए को बहुमत नहीं मिल रहा है. अपने दम पर बीजेपी के लिए बहुमत पाना तो बहुत दूर की बात है.
2014 में बीजेपी को अपने दम पर 282 सीटें मिली थीं, जबकि एनडीए को 336 सीटें.
इसका अर्थ ये है कि बीजेपी को एक सर्वे में 62 सीटें या फिर दूसरे सर्वे में 71 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है, जबकि एनडीए को एक सर्वे में 72 सीटें और दूसरे सर्वे में 91 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है.
बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान यूपी से होता नजर आ रहा है. एबीपी-सी वोटर और इंडिया टीवी-सीएनएक्स, दोनों का पूर्वानुमान यूपी में बीजेपी के बारे में यही है कि उसे 28 सीटें मिल रही हैं. इसका मतलब ये हुआ कि बीजेपी को सिर्फ यूपी में 43 सीटों का नुकसान हो रहा है.
अगर ये नुकसान किसी तरह से बीजेपी ने कम कर लिया और उसे घटाकर वह उस स्तर पर ले आए, जिसके बाद नुकसान महज 16 हो, तो बीजपी की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता. दोनों सर्वे के मुताबिक अधिकतम 27 सीटें ही एनडीए को बहुमत से कम हो रही हैं. यूपी में 16 सीटों के नुकसान तक सीमित कर लेने के बाद बीजेपी यह भरपाई कर ले रही है.
बीजेपी या एनडीए को सत्ता से दूर करने की रणनीति भी विपक्ष उत्तर प्रदेश में बना सकता है. अब जब पूर्वानुमान साफ-साफ कह रहे हैं कि ये एसपी-बीएसपी गठबंधन ही है, जिसकी वजह से बीजेपी या एनडीए सत्ता से दूर हो रहा है, तो विपक्ष के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्यों नहीं यूपी में महागठबंधन का सपना साकार कर दिया जाए?
अगर एसपी-बीएसपी के साथ कांग्रेस ने महागठबंधन कर लिया, तो कांग्रेस का आंकड़ा पूर्वानुमानों में 4 से आगे जाएगा. एसपी-बीएसपी गठबंधन भी 47 सीटों से निश्चित रूप से आगे जाएगा. अगर 8 से 10 सीटों का अंतर और बढ़ गया, तो बीजेपी और एनडीए के लिए मैजिक फिगर सही मायने में सपना हो जाएगा.
साफ है कि अगली सरकार की चाबी यूपी के पास है. मगर दूसरे तरीके से कहें, तो असली चाबी कांग्रेस के पास है.
कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी को अखिलेश यादव से भी सीख लेनी चाहिए और अखिलेश का शुक्रगुजार भी होना चाहिए कि उन्हीं की वजह से बीजेपी सत्ता से दूर होती दिख रही है. अगर अखिलेश ने कुर्बानी नहीं दी होती, तो आज एसपी-बीएसपी 47 सीटों पाती हुई नजर कतई नहीं आती.
कांग्रेस को बीजेपी ही नहीं, शिवसेना से भी सीख लेनी चाहिए कि इतने तीखे संवाद के बावजूद उन्होंने अपने-अपने अस्तित्व के लिए महाराष्ट्र में एक-दूसरे से हाथ मिलाया. अगर ऐसा नहीं होता, तब भी बीजेपी और शिवसेना और समग्रता में एनडीए को भारी नुकसान उठाना पड़ता. तब चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एनडीए के लिए कोई और अप्रिय कहानी बता रहा होता.
राहुल गांधी के लिए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के लिए दरअसल आखिरी मौका है. वह अपने राजनीतिक भूल को सुधार सकते हैं. एक ऐसी भूल जिसके बाद शायद उसे सुधारने के लिए पांच साल बाद भी अनुकूल माहौल न आए. मगर वे चाहें तो अभी के अभी इस भूल को सुधार सकते हैं. क्या राहुल बड़ा दिल दिखलाएंगे? समय रहते यूपी में महागठबंधन बनाएंगे?
(प्रेम कुमार जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में विचार लेखक के अपने हैं. इन विचारों से क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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Published: 11 Mar 2019,05:52 PM IST