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ओडिशा देश के चुनिंदा राज्यों में है, जो 2014 चुनाव में नरेन्द्र मोदी लहर से अछूता था. कारण था, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अभेद्य लोकप्रियता. पटनायक की बीजू जनता दल ने ओडिशा में लोकसभा की 21 में से 20 सीटों पर कब्जा किया.
लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को राज्य में उल्लेखनीय बढ़त की उम्मीद है. पिछले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य में कई बार दौरा किया, जिसे देखकर ये कयास लगाए जा सकते हैं. कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री इस बार राज्य की एक लोकसभा सीट, और शायद पुरी सीट से चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाएं.
लेकिन बीजेपी के प्रयासों का मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर कोई असर पड़ता नहीं दिखता. हाल में उन्होंने घोषणा की कि बीजू जनता दल लोकसभा और विधानसभा चुनाव की 33 फीसदी सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाएगा. सोमवार, 18 मार्च को पटनायक ने बीजेडी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की, जिसमें ये घोषणा साफ-साफ झलक रही थी. पहली सूची के नौ उम्मीदवारों में तीन महिलाएं थीं.
पटनायक ने पहली लिस्ट में भारी फेरबदल किया है. इनमें वर्तमान सांसद और विधायक भी शामिल हैं. कई लोगों का मानना है कि ये फैसला चुनाव में पार्टी प्रदर्शन पर भरोसे का नतीजा है.
पोल आईज के चुनाव पूर्व सर्वे पर ध्यान दिया जाए, तो ये विश्वास बेजा नहीं है. सर्वे के मुताबिक, पटनायक की बीजेडी राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर कब्जा कर सकती है.
सर्वे कहता है कि बीजेडी को राज्य में करीब 50 फीसदी वोट मिल सकते हैं. इस लिहाज से उसे बीजेपी की तुलना में 25 फीसदी की बढ़त प्राप्त है.
बीजेडी के विशेषकर जगतसिंहपुर, बरहामपुर, कटक और कांडमाल जैसे लोकसभा क्षेत्रों में बढ़त मिल सकती है.
सर्वे के मुताबिक, ओडिशा में बीजेडी का परचम लहराना तय है, फिर भी इसके विजय सफर के रास्ते में तीन रोड़े आ सकते हैं:
पोल आईज का सर्वे फरवरी में किया गया था. मुमकिन है कि ओडिशा में चार चरणों में होने वाले चुनावों के दौरान समीकरण बदल जाएं. उदाहरण के लिए बरहामपुर बीजेडी का मजबूत गढ़ माना जाता है. यहां वरिष्ठ विधायक रमेश चायु पटनायक के समर्थकों ने चेतावनी दी है कि अगर उनके नेता को टिकट नहीं दिया गया, तो वो बगावत करेंगे. दूसरी ओर पटनायक को बरहामपुर विधानसभा सीट से टिकट नहीं दिया गया है. ये देखना होगा कि उन्हें राज्यसभा सीट के लिए टिकट दिया जाता है या नहीं.
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बरहामपुर की ही तरह पटनायक ने कंधमाल लोकसभा सीट से वर्तमान सांसद प्रत्यूष राजेश्वरी के बजाय शिक्षा विभाग के बैरन अच्युता सामंत को टिकट दिया है. देखना है कि क्या उम्मीदवार बदलने से बीजेडी में अंदरूनी कलह पैदा होगी?
इसी प्रकार बारगढ़ में पटनायक ने वर्तमान सांसद प्रभास कुमार सिंह को टिकट नहीं दिया है. प्रभास कुमार सिंह स्थानीय बहुल ‘कुलीत’ समुदाय से हैं. उनकी जगह प्रसन्ना आचार्या को टिकट दिया गया है, जो बारगढ़ के नहीं, संभलपुर के रहने वाले हैं.
कुछ नेताओं के बीजेडी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का भी पार्टी पर असर पड़ सकता है, मसलन, केन्द्रपाड़ा के सांसद बैजयंत 'जय' पांडा तथा नवरंगपुर सांसद बालभद्र मांझी. चुनाव तक दलबदल की अन्य संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
पोल आइज के सर्वे के मुताबिक बीजेडी सिर्फ तीन सीटों पर पीछे है, केयोंझर, सम्भलपुर और कोरापुट. पूर्वानुमान के मुताबिक बीजेपी को क्योंझर में ठीक-ठाक और सम्भलपुर में थोड़ी बढ़त मिली हुई है, जबकि आश्चर्यजनक रूप से कोरापुट में कांग्रेस को हल्की बढ़त प्राप्त है.
हालांकि सुन्दरगढ़, क्योंझर तथा मयूरभंज के जनजातीय इलाकों में बीजेपी लोकप्रिय है, लेकिन कोरापुट जैसे दक्षिणी जनजातीय क्षेत्रों में ऐसा नहीं है.
इस लिहाज से गमांग तथा पांगी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या गमांग कांग्रेस के वोटों को बीजेपी की ओर खींचने में सफल होते हैं या नहीं.
बीजेपी की मुख्य चुनौतियां यही हैं – कांग्रेस के वोटों और साथ में अन्य बीजेडी विरोधी वोटों को अपने पाले में खींचना.
पोल आइज सर्वे के मुताबिक, अगर बीजेडी 50 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रहती है, तो ये पहली बार होगा, जब बीजेडी का वोट शेयर कांग्रेस तथा बीजेपी के कुल वोट शेयर से अधिक होगा.
पिछले दो चुनावों में इस बात का काफी फायदा मिला था कि विपक्षी वोट, दो राष्ट्रीय दलों में बंट गए थे. अगर बीजेपी या कांग्रेस किसी विशेष सीट पर सभी विपक्षी वोटों को एकजुट करने में सफल होती है, तो बीजेडी के लिए सात सीटों पर जीत हासिल करना मुश्किल हो जाएगा:
ये उन तीन सीटों के अलावा होंगी, जहां बीजेडी पहले ही विपक्षी दलों से पीछे है.
ओडिशा की 21 लोकसभा सीटों पर बीजेडी को क्लीन स्वीप करने से रोकने में अगला रोड़ा है, लोकसभा सीटों और विधानसभा सीटों में वोटों का बंटवारा. ओडिशा में साल 2004 से विधानसभा सीटों पर लोकसभा के साथ चुनाव हो रहे हैं.
2014 में बीजेपी को विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव में 3.9 फीसदी वोट अधिक मिले थे, जबकि दोनों चुनाव साथ-साथ हुए थे. ये आंकड़ा विशेषकर आठ लोकसभा सीटों पर अधिक था.
इनमें चार सीट बीजेपी के लिए महत्त्वपूर्ण हैं – बारगढ़, जाजपुर, बालासोर तथा बोलनगीर. इन सीटों पर बीजेपी को विधासभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनाव में अधिक वोट मिले थे. पोल आइज के सर्वे के मुताबिक, अगर बीजेपी इन सीटों पर विपक्षी वोटों को एकजुट करने में सफल हो जाती है, तो बीजेडी को कड़ा मुकाबला दे सकती है.
लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि नवीन पटनायक ने क्यों बीजेपुर का अपना दूसरा चुनाव क्षेत्र बनाया है, जो बारगढ़ लोकसभा सीट के तहत आता है. गंजाम जिले में पड़ने वाले हिंजिली सीट के अलावा ये सीट चुनी गई है. निश्चित रूप से इस कदम को उत्तरी ओडिशा में बीजेडी का वोट शेयर बनाए रखने की पटनायक की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है, जहां बीजेपी सेंध लगा रही है. बीजेपी की भावी योजना में बारगढ़ का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जहां इस साल के आरम्भ में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी दौरा कर चुके हैं.
सुनीता बिस्वाल को अपना उम्मीदवार बनाया था. झारसुगोडा के रहने वाले हेमानंद बिस्वाल ओडिशा के पहले जनजातीय मुख्यमंत्री थे.
पोल आइज का सर्वे संकेत देता है कि ओराम को इस बार जीत हासिल करने में कठनाई हो सकती है. लिहाजा बिस्वाल को उम्मीदवार बनाकर पटनायक ने दिग्गज बीजेपी नेता को हराने के लिए अच्छा व्यूह तैयार किया है.
विधानसभा चुनाव में पटनायक आसानी से अपनी सत्ता बनाए रख सकते हैं, और लोकसभा में भी उनके पास अच्छी तादाद में सीट आ सकती हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें दलबदल और बीजेडी विरोधी वोटों को संभावित रूप से एकजुट होने पर लगाम कसना होगा.
(सर्वे की कार्यपद्धति: ये सर्वेक्षण 10 राज्यों के सभी विधानसभा क्षेत्रों में फरवरी में किया गया था. हर विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर अनियमित तरीके से चुनकर 50 व्यक्तियों का इंटरव्यू किया गया.)
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Published: 19 Mar 2019,06:24 PM IST